इस पोस्ट में हम बात करेंगे ऐसी गलतीयो की जो अक्सर साधक ध्यान में करते हैं जब आप इन इन गलतीयो को जानकर, समझकर उनको सुधार कर देंगे तो आपकी जो ध्यान में जो उन्नतीस हैलो पहले से ओर भी ज्यादा हो जाएंगी।
ध्यान में होने वाली गलतीया
1. आसन का चुनाव - अक्सर हमे लगता है हमें ध्यान की शुरुआत आसन में बैठकर करना चाहिए। चुंकि हम ध्यान से पहले योगा नहीं करते हैं तो हम साधारण इन कठीन आसनों में एकदम से नहीं बैठ पाते। जब हम देखा देखी इन आसनों में बैठने की कोशिश करते हैं तो हमारा शरीर दर्द करने लगता है। इससे हमारा मन ध्यान में कम और उन हिस्सों में अटका रहता है जहां पर हमें दर्द होता है। इससे हमे ध्यान में बैठने में दिक्कत आने लग जाती है। इसके लिए आप सामान्य अवस्था में चौकड़ी मारकर या सुखासन मे बैठ जाएं। ध्यान में आपको किसी प्रकार की कोई असुविधा नहीं होनी चाहिए।
2. एकाग्रता - हम जबरदस्ती एकाग्रता को साधने की करते हैं तो हम सिर्फ एक ही चीज जानते हैं कि सिद्धासन में बैठ जाए और अपने आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाना शुरू कर दे। और जबरदस्ती हम अपने आज्ञा चक्र को पर अपने अटेंशन को केन्द्रीत करना शुरू कर देते हैं। नपने माथे को, सिर को, नसों को जकड़ लेते हैं। जब हम अपनी एकाग्रता जबरदस्ती करते हैं तो हमें सिरदर्द होने लगता है। हमें उल्टी आने का अहसास होने लगता है। कई बार तो हमें चक्कर आने लग जाते हैं। इससे बचने के लिए हमें सहज रूप से हर क्रिया को करना है।
जब भी आप ध्यान में बैठे चेहरे को मिला छोड़ दें, आपने मस्तिष्क के तंतुओं को शिथिल और मिला छोड़ कर रखे। अपनी आंखों को भी टाईट करके ना रखें। बस हल्का सा पलकों को गिर जाने दे यानी की आंखों को कसकर बंद ना करें। बस हल्का सा पलकों पर रखें और अपने दांतों को मुंह में कसकर ना रखें, दांतों को ढीला छोड़कर रखें, जीभ को ढीला छोड़कर रखें।
.3. जब हम ध्यान में गहरे चले जाते हैं तो कई बार हमें प्रकाश दिखाई पड़ जाता है, कई बार हमें झटका लग जाता है और कई बार हमें महसूस होता है की हमारी सांस रुक गई है। जीससे हम हमारी आंख खोल देते हैं। जिससे हम ध्यान की गहराई में नहीं जा पाएंगे। ये गलती आप ना करें। अक्सर आप ध्यान में जाएंगे तो आपको ये अनुभव आएंगे ही। आपको ऐसे अनुभव आए तो आपको ध्यान से उठना नहीं है, अपनी आंखें नहीं खोलना है, बस साक्षी बने रहिए है।
4. ध्यान करके उठने के बाद आप एकदम क्रियाशील हो जाता है। क्योंकि ध्यान में मेटाबॉलिज्म एकदम धीमा हो जाता है, और एकदम से आप उसे काम पर लगा देंगे तो जो उर्जा उपर के चक्रों में थी वापस उसे नीचे आना पड़ेगा और जो शांति आपके अन्दर पैदा हुई थी वो भंग हो जाएगी। इसलिए जब भी आप ध्यान से उठे तो एकदम क्रियाशील ना हो। ना आप किसी है बात करें , ना खाना खाएं और ना कोई ओर काम करें। ध्यान से उठने के बाद कम से आधा - पौधा घंटा आप मौन में बैठे और धीरे धीरे सक्रीयता में आने की कोशिश करें।
5. जब आप ध्यान में बैठते हैं तो अनुभव की अपेक्षा करने लग जाते है। जब आप ध्यान में कोई इच्छा करके बैठ जाएंगे तो आपको कभी भी अनुभव नहीं होंगे, क्योंकि ध्यान में जो कींमती अनुभव होते हैं वो आपकी इच्छा के बिना होते हैं। वो परमात्मा की कृपा से होते हैं।
6. कई बार आप धंयान की प्रक्रिया से गुजर रहे होते हैं तो आप जो भी बोलते हैं वो सच होने लग जाता है। फिर उसमें चाहे आप अच्छी बात बोलेंगे तो भी सच होंगी और आप बुरी बात बोल देंगे तो वो भी सच हो जाएगी। इसलिए आपकौ अपने भावों को हमेशा शुद्ध रखना है और सकारात्मक बात बोलनी है।
7. जब ध्यान में जा रहे होते हैं तो हमारी उर्जा उद्गमन करती है, यानी कि हमारी उर्जा मुलाधार से उपर के चक्रों की ओर चलना शुरू कर देती है। ओर इस दौरान आप सहवास करना शुरू कर देते हैं तो वो उर्जा को आप नीचे की चक्रों में खींच लेते है।
8. ध्यान के लिए आप किसी मंत्र का लम्बे समय से जाप कर रहे हैं तो ध्यान में गहरे जाने पर मंत्र भी आपको बाधा देने लगता है। इसका अर्थ है कि जब आपका ध्यान गहरा हो जाता है तो आपका मंत्र भी छुट जाता हैं। जब आपकी वो स्थिति आ जाएंगी तो आपका वो छुटने वाला हो चूका है वो सिद्ध हो चुका है, इससे आगे उसकी जरुरत नहीं है।
9. जब भी ध्यान में हमें विचार आतेहै तो हम उसे जबरदस्ती रोकने की कोशिश करते हैं। ऐसे में आपको जबरदस्ती नहीं करनी है। नीरंतर प्रयास करते रहे। जब नीरंतर प्रयास करते रहे तो एक समय ऐसा आएगा की आपके विचार शांत होना शुरू हो जाएंगे।
10. कई बार आप ध्यान में कल्पनाएं करने लग जाते हैं। आपको याद रखना है की ध्यान एक निर्विकार स्थिती है, वह पर कोई आकार नहीं है, वो निर्विकार है। और ध्यान एक निर्विचार स्थिति है, वहां पर कोई विचार भी नहीं है, वो एक शुन्य अवस्था है।
11. हमें ध्यान में जो अनुभव होते हैं वो दुसरो को बताना शुरू कर देते हैं तो इसमें आप अपने अहंकार को मजबूत करते है। इसलिए जो भी आपको अनुभव होते हैं वो दुसरे से शेयर ना करें।
12. जब भी आप ध्यान में बैठे तो एकदम से नहीं बैठना है और जब भी ध्यान से बाहर आए तो एकदम से नहीं आए। ध्यान शुरू करने से पहले और खत्म करने के बाद आपने दोनों हाथ जोड़कर अपने गुरु को याद करें, अपने इष्टदेव को याद करें, जिससे ध्यान अच्छी प्रकार हो।
13. जब हमारा ध्यान सघन होना शुरू हो जाता है तो हमारे अंदर एक विरक्ति की भावना पैदा होना शुरू हो जाती है, हमारे अंदर वैराग्य आना शुरू हो जाता है, और हमारा दिल करता है की हम सारे काम धंधों कौन छोड़ दें और कहीं आश्रम में जाकर रहना शुरू कर दें। यहा आपको ध्यान रखना है की इन मामलों में आपको जल्द बाजी नहीं करनी है। इस प्रकार के भावावेग से बचें।
14. कई बार ध्यान में बैठता हैतो आपको लगता है कि आप गहरे ध्यान में जा रहे है लेकिन वास्तव में आप नींद में जा रहे होते हैं। तो ये स्वाभाविक ही है क्योंकि एकदम से ध्यान नहीं लगता है। मन की एक सहज वृत्ति होती है कि जब भी वो शांत होता है तो उसे नींद आनी शुरू हो जाती है। तो ऐसे में आप लेटकर ध्यान ना करें, खाना खाने के बाद ध्यान ना करें। अपनी 8 घंटे की नींद पुरी करें। जब ध्यान में बैठे तो नहा धोकर बैठे और ब्रह्म मुहूर्त में आप उठके ध्यान करे या शाम को बैठ जाएं। थोड़ा प्राणायाम करें जिससे आपके मस्तिष्क में प्राण उर्जा आए। तो इन चीजों से अपने नींद को दूर करें।
15. कई बार ध्यान में आपको चिंकी काटने, खुजली होने, दर्द आदी अनुभव होने लगते हैं। तो ये मन की चाल होती है। आपको बस संकल्प से बैठे रहना है। थोड़ा आप अपना ध्यान उस तरफ ले जाएं जहां आपको कुछ महसूस हो रहा है तो कुछ क्षण में वो बंद हो जाएंगी।
निष्कर्ष
मैंने 15 ऐसी बांते बताई जो अक्सर ध्यान में होती है और इन गलतीयो में हम आ जाते हैं मन के झांसे में आ जाते हैं।तो इससे हमारा ध्यान बिखर जाता है। तो आगे से जब भी आप ध्यान में बैठे और इन 15 बातों में से जो भी बात आपको होती है तो सावधान हो जाएं और जो समाधान बताएं है उन उपायों को करें। मैं आशा करता हूं की ध्यान में होने वाली गलतीया आपके समझ में आ गया होगा। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे।