शरीर को शुद्ध करने के लिए हठ योग में षट्कर्म क्रिया है जो कि हमारे सम्पूर्ण शरीर को शुद्ध कर देता है, जिससे की हमारे शरीर के अनेक बिमारियों और गंदगी मिट जाती है।
षट्कर्म क्या है
मानव रुपी यंत्र को क्रियाशील बनाए रखने के लिए इसकी सफाई एवं शोधन आवश्यक है। शरीर रुपी यंत्र का बाह्य शोधन स्नान द्वारा होता है। अन्तह शोधन के लिए अनेक क्रियाए करनी पडती है। यह शरीर की आंतरिक मार्ग को साफ करने का माध्यम शुद्धि क्रिया को षट्कर्म कहते हैं, ये क्रियाएं षट्कर्म अन्तर्गत आती है। षट्कर्म शब्द को षट् का अर्थ है छः और कर्म का अर्थ है शुद्धि कर्म।
कुछ षट्कर्म संवेदनशील है। उनका अभ्यास व्यक्तिगत मार्गदर्शन में ही किया जाता है।
षट्कर्म के प्रकार
षट्कर्म अर्थात 6 कर्म, यह 6 कर्म हमारे शरीर के अलग अलग हिस्सों लिए अलग अलग भुमिका निभाते हैं और उन 6 स्थानो के साथ पुरे शरीर को एक नई उर्जा का अहसास कराती है। यह 6 कर्म - 1. धौति कर्म, 2. बस्तिकर्म,3. नेती कर्म, 4. त्राटक कर्म, 5. नौलि कर्म,6. कपालभाती।
1. धौती कर्म
धौती कर्म क्या है
यह आंतरिक सफाई का काम करता है। यह मुंह से गुहा तक पुरी अमाशय नली को साफ करती है। इसके अन्तर्गत वमन धौती, वस्त्र धौती, दण्ड धौती , गजकरणी यह अभ्यास आते हैं।
धौती कर्म कैसे करे
धौती के लिए चार अंगुल चौडा और 15 हाथ लम्बा पतला सुती वस्त्र लिया जाता है और उसे साफ पानी में एक घंटे तक भिगोकर रखा जाता है। एक घंटे बाद उस वस्त्र को धीरे धीरे निगलना होता है अर्थात घोंटना होता है। पुरे 15 हाथ वस्त्र में से आधा हाथ छोटकर बाकी सारा वस्त्र निगलना सौदा है। आधा हाथ वस्त्र इसलिए छोड़ा जाता है क्योंकि आपको पुरे वस्त्र को निकालने में आसानी हो इस प्रक्रिया को बहुत ही सावधानी से किया जाता है।
14 हाथ वस्त्र निगलने के बाद बाकी बचे वस्त्र को पकड़कर धीरे धीरे इसे बाहर निकाला जाता है। जिससे कि अमाशय में बसी सारी गंदगी कपड़े के साथ बाहर निकल आती है। इस कर्म को करने से पहले आपको कुंजल क्रिया में महारथ हासिल करना होता है। कुंजल क्रिया को आप आसानी से घर पर कर सकते हैं। कुंजल क्रिया में हल्के गुनगुने नमक मिश्रित जल को धीरे धीरे पीकर उल्टी करके बाहर निकाला जाता है।
धौति कर्म के लाभ
धौति कर्म पाचनतंत्र के उर्ध्व भाग का शोधन करती है और साथ ही यह वात, पित्त , कफ को दूर करती है तथा शरीर के प्राकृतिक संतुलन को वापस लाती है।
2. वस्तिकर्म
वस्तिकर्म क्या है
नाभी के निचले भाग को बड़ी आंत के आसपास के हिस्से को वस्ती कहते हैं। यह बड़ी आंत को धोने व मजबूत बनाने में लाभप्रद है। वस्तिकर्म में गुदाद्वार से जल को खिचा जाता है और पुनः जल को वापस छोड़ दिया जाता है। इसका अभ्यास दो तरह से होता है, जल वस्ति और वायु वस्ति।
वस्तिकर्म कैसे करे
नदी या तालाब में आप नाभी बराबर जल में प्रवेश कर जाए और उत्कटासन में बैठे जाए अर्थात जिस पोजीशन में मल त्याग किया जाता है उस स्थिति में बैठ जाए और गुदा द्वार से जल को खिंचना प्रारंभ करें। मल क्षेत्र में पुरी तरह जल भर जाने पर उस जल को तालाब या नदी से बाहर निकल कर मल द्वार से बाहर निकाल दे। इस प्रक्रिया को तब तक किया जाता है जब तक मल द्वार से साफ़ पानी ना निकलने लगे। इस क्रिया को आप घर पर टब में बैठकर भी कर सकते हैं।
वस्तिकर्म के लाभ
वस्तिकर्म से आंतों की पुरी तरह से शुद्धि हो जाती है। पुराना शरीर में जमा हुआ मल एवं कृमि दूर हो जाते हैं। पाचन संबंधी विकारो का उपचार होता है। कब्ज़ और गैस की समस्या को जड़ से नष्ट किया जा सकता है।
इससे पेट संबंधी सभी लोग दुर होते हो जाएंगे। वात, कफ, पित्त संबंधी रोगी को जल्द ही जल्द इस क्रिया से लाभ मिलता है।
3. नेति कर्म
नेति कर्म क्या है
नाक के द्वारा जब हम किसी चीज को ग्रहण करते हैं उस प्रक्रिया को नेति कहते हैं। यदि हम हम मुंह है पानी पीते हैं तो हम कहेंगे कि पानी पिया गया है, परंतु वहीं पानी यदि हम नाक डाल दें , उसे शरीर के अन्दर लेके जाकर उसे निकाल दे उस स्थिति को नेति कहेंगे । नाक के द्वारा किसी भी द्रव्य को लेकर जाना नेति कहलाता है। नेति नासिका द्वार और मस्तिष्क के अग्र भाग को साफ व स्वच्छ बनाने की क्रिया है। इस क्रिया में बहुत सारे द्रव्य आते हैं जैसे जल इसको जल नेति कहा जाता है, सुत्र से अभ्यास को सुत्र नेति कहा जाता है, दुध के माध्यम से दुग्ध नेति, घी के माध्यम से घृत नेति, नाक के अंदर सभी द्रव्यों को ले जाया जाता है और नेति का अभ्यास किया जाता है। इसमें दो क्रिया आती है जल नेति और सुत्र नेति। जल नेति में जल के द्वारा नासिका को साफ किया जाता है और सुत्र नेति में सुत के द्वारा नासिका को साफ किया जाता है।
जल नेति कैसे करे
एक विशेष प्रकार के पात्र में पानी भर कर नाक के एक छिद्र से पानी डालकर दुसरे छिद्र से पानी निकाला जाता है। इसमें श्वास की अहम भूमिका होती है। श्वास गलत तरीके से लेने से पानी मस्तिष्क में जा सकता है। इसमें धैर्य की आती आवश्यकता होती है। इसलिए इसे गुरु के समक्ष ही करें। इस प्रक्रिया को जल नेति कहते हैं।
सुत्र नेति
सुत्र नेति क्रिया में केथीएटयर का प्रयोग करते हैं। केथीएटर के स्थान पर सुत्र या धागे का प्रयोग होता था। इसके लिए आप एक पतला लम्बा केथीएटर ले ले। और अपने एक नाक के छिद्र में डालकर मुंह से निकाल लें। दुसरी बार में दुसरी छिद्र में डालकर इसी प्रक्रिया को किया जाता है। फिर आप केथीएटर को एक छिद्र से डालकर नाक के दुसरे छिद्र से निकाल लें । इसी प्रक्रिया को सुत्रनेति कहा जाता है।
नेति कर्म के लाभ
नियमित रूप से नेति कर्म करने से नासिका एवं कंठ क्षेत्र से गंदगी निकालने का काम होता है तथा यह सर्दी, ज़ुकाम एवं कफ, एलर्जी, सायनायटिस , बुखार , टोन्सिलायटिस आदि दुर करने में सहायक होती है।
4. त्राटक कर्म
त्राटक कर्म क्या है
त्राटक का अर्थ होता है किसी भी स्थान पर या वस्तु विशेष पर टकटकी लगाकर लगातार उसी स्थान पर देखते रहना। त्राटक एक बिंदु या वस्तु को लगातार देखने की क्रिया है, जिससे हमारे ध्यान करने की शक्ति बढ़ती है
त्राटक कर्म कैसे करे
त्राटक कर्म हमारे मस्तिष्क को साफ और तेज बनाने कि एक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में किसी वस्तु को निरंतर देखकर उस पर ध्यान लगाया जाता है। सभी त्राटको में अन्तह त्राटक सबसे उत्तम माना जाता है।
त्राटक कर्म के लाभ
त्राटक कर्म नेत्रों की पेशियों, एकाग्रता तथा याद्दाश्त क्षमता में लाभदायक होती है। इसका सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव मस्तिष्क पर होता है।
5. नौलि कर्म
नौलि कर्म क्या है
नौलि का अर्थ नली या मार्ग होता है। पेट की मांसपेशियों को नली का आकार देकर उसको गोल गोल घुमाया जाता है। यह उदर के अंगों की मालिश कर मजबूत बनाता है। नौलि कर्म को करने के लिए आप अपने पेट को बाए से दाएं घुमाएं इसके बाद उपर से नीचे भी घुमाएं। इसी प्रक्रिया को नौलि कर्म कहते हैं।
नौलि कर्म कैसे करे
नौलि कर्म को आप धीरे धीरे करके ही सिख सकतै है। इसके लिए आप सर्वप्रथम पेट में उपस्थित सभी हवा को बाहर निकाल दे और पेठ को अंदर खिंचकर घुमाया जाता है। इस प्रक्रिया को करने से उदर में फसि सभी मल गुदाद्वार से बाहर निकल जाते हैं। इस प्रक्रिया को आप घर पर कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को आप नित्य कर्म करने के बाद पेट खाली हो तभी करें।
नौलि कर्म के लाभ
नौलि क्रिया उदर कि पेशियों, तंत्रिकाओं, आंतों , प्रजनन संस्था , मुत्र संबंधी अंगों को ठीक करती है। अपच , अम्लता , वायु विकार इन समस्या से ग्रस्त व्यक्ति के लिए नौलि क्रिया लाभदायक प्रक्रिया है।
6. कपालभाती भांति
कपालभाती भांति क्या है
कपाल अर्थात माथा, ललाट, मस्तिष्क का अग्र भाग और भांति का अर्थ तेज , ज्ञान, प्रकाश या रौनक । कपालभाती का अभ्यास विशेष रूप से मस्तिष्क के अग्र भाग को पवित्र करने की, सांस लेने के लिए किया जाता है।
कपालभाती कैसे करे
कपालभाती प्राणायाम के लिए आप पद्मासन, सिद्धासन या सूखापन इनमें से किसी भी आसन में बैठ जाइए। इस कर्म में आपकौ श्वास को तिव्र गति से बाहर कि तरफ छोड़ना होता है और श्वास को स्वतः रुप से अंदर आने देना होत है। इस प्रक्रिया को कपालभाती कर्म कहते हैं। इसलिए आपको सिर्फ श्वास को छोड़ने पर ही ध्यान देना होता है। क्योंकि श्वास लेने की क्रिया स्वतः ही होने लगती है।
इसे करने से पहले नित्य कर्म कर लें और खाली पेट ही रहे।
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कपालभाती के लाभ
कपालभाती बिमारियों से दूर रखने के लिए अत्यंत रामबाण माना जाता है। यह कफ जनित रोगों को नष्ट करती है। यह सिर का शोधन करती है। और फेफड़ों से सामान्य श्वसन क्रिया कि तुलना में अधिक ज्यादा मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालती है। कहां जाता है कि कपालभाती हर लोगों का इलाज है।
षट्कर्म के लाभ
विभिन्न लोगों की रोकथाम में षट्कर्म में लाभ होता है। षट्कर्म की सभी क्रियाएं शरीर से विषैले पदार्थ को निकालने के लिए तथा शरीर की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए और शरीर की विभिन्न कार्यप्रणाली को सक्षक्त में उपयोगी है। लोगों को विभिन्न रोगो से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। षट्कर्म शरीर में एकत्र हुई अशुद्धियां एवं विषैले पदार्थ को दूर करती है। सभी विषाक्त पदार्थ निकल जाने से सभी इन्द्रियां, मन, बुद्धि और शरीर का रुप - रंग अच्छा होता है। बल एवं विर्य कुछ वृद्धि होती है। दिर्घायु प्राप्त होती है। षट्कर्म आपके रोगप्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाता है। शरीर में लोगों से लडने की शक्ति बढ़ती है। शुद्धि करण से शरीर, मन और चेतना पर पुर्ण नियंत्रण होता है। यह प्रक्रियाए से मनुष्य को प्रत्येक स्तर पर शक्तीशाली एवं व्यापक रुप से लोगों को दूर रखती है। जब शरीर में अत्यधिक विकार हो अथवा शरीर में वात, पित्त,कफ का असंतुलन हो तो प्राणायाम और योगासन से पुर्व षट्कर्म करना चाहिए। प्राणायाम साधना आरंभ करने से पहले सबसे पहले नाडी शुद्ध होनी चाहिए। जो षट्कर्म द्वारा होती है। जब शरीर शुद्ध होगा तो हार्मोन संतुलित रहेंगे। मस्तिष्क के कामकाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। और शरीर तथा मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में सहायता मिलती है। शुद्धि करण से मस्तिष्क को शांत रखने एवं बेचैनी, सुस्ती, नकारात्मक विचारों एवं भावनाओं को दूर करने में सहायता मिलती है। षट्कर्म तनाव से लडने एवं स्वास्थ्य सुधारने में सहायक होते हैं।
षट्कर्म का क्या उद्देश्य है
दो मुख्य प्राणो के पथ इड़ा और पिंगला के बिच संतुलन बनाती है, जिससे मानसिक शुद्धी होती है। शरीर के तीन दोष शांत , पित्त , कफ के बीच संतुलन भी बनाती है। इन दोनों में असंतुलन होने से बीमारी होती है। और शुद्धि क्रिया का मुख्य उद्देश्य शरीर की स्वच्छता है। जब शरीर के विभिन्न तंत्र साफ सुथरे होंगे तौ शरीर में ऊर्जा स्वतंत्र रुप से बहने लगेगी।
निष्कर्ष
मुझे उम्मीद है कि षट्कर्म ( शुद्धी क्रियाएं ) क्या है, विधि, उद्देश्य, लाभ आपको समझ में आ गया होगा और आपको यह पोस्ट बहुत पसंद आई होगी। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें