आज्ञा चक्र क्या है
आज्ञा चक्र का स्थान दोनों भृकुटी के मध्य, नासिका के संघ के येन के उपर होता है। एक योग विद्या में साधना की दृष्टि से ये एक अत्यधिक महत्वपूर्ण चक्र है। इस चक्र का तत्व बिज मंत्र " ॐ " है। इस चक्र में ब्रम्हा, विष्णु और महेश तिनों की शक्तियां सम्मिलित होती है। अ कार, उकार और मकार ये तिन शक्तियां इसमें सम्मिलित होती है। आज्ञा चक्र कै यंत्र का आकार लिंग के समान होता है। ये सफेद रंग से प्रकाशित है और इसके दो पंखुड़ियां होती है। इसमें क्षं और हं अक्षर के वर्णं है। इसका लोक तप है। इसके तत्व बिज की गती नांद के समान है। इस चक्र के तत्व बिज का वाहन नांद है। इस पर लिंग देवता विराजते हैं।
इस चक्र के देवता ज्ञान दाता शिव है और देवी शक्ति हाकीनी है।
आज्ञा चक्र कैसे जागृत करें
1. सबसे पहले ध्यान की अवस्था में आ जाते जिसमें आप सबसे ज्यादा आरामदाई महसूस करते हैं। इसके बाद अपने शरीर, मन और भाव को शिथिल करने की प्रक्रिया शुरू करे। शरीर और मन को आरामदायक स्थिति लाने के बाद पुरा ध्यान अपने सांसों पर ले आए। अगर ध्यान भटक जाए तो घबराए नहीं फिर से अपना ध्यान सांसों पर एकाग्र करें। सांसों के आने जाने पर जो ध्वनि उत्पन्न होतु है उसे सुनने की कोशिश करें।
2. आप अपनी आंखें बंद करले और अपना ध्यान अपना ध्यान अपने दोनों आंखों के बिच भृकुटी पर केन्द्रित करें। कुछ समय बाद आपको एक चमकिला बिन्दु दिखाई देंगी। ये बिल्कुल ऐसा ही है जैसे आप किसी गहराई में उतर रहे हो लेकिन आपको अपना ध्यान उस सुरंग की बजाय उस चमकिले बिन्दु पर रखना है। हो सकता है आपका ध्यान भटकने लगे और आपको बिन्दु के अलावा कई चीजें दिखने लगे। ऐसे में उन पर ध्यान न देने से आप उन्हें दर्लक्ष कर सकते हैं।
आप चाहें तो अपने अंगूठे को अपने आज्ञा चक्र की जगह छुआ कर रख सकते हैं। शुरुआत में इस क्षेत्र पर दबाव आपको एकाग्र रहने में मदद कर सकता है। त्राटक में हम खुली आंखों से करते हैं। इससे आपको एक फायदा और होंगा की आपके मन में आने वाले विचारो के कम्पन हटने लगेंगे और आप ज्यादा ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।
जब आप उपर के दोनों चरण पार कर लेते हैं तब आपको शून्य की अवस्था प्राप्त हौती है। इस अवस्था में आपको अपने शरीर का भान भी नहीं होता है। जब आप शून्य की अवस्था में पहुंच जाते हैं तब आप शारीरिक बंधन से मुक्त हो जाते हैं और अपने आसपास की विचरण करती तरंगों को पकड़ने लगते हैं। इससे आप काल की झलकियां देखने में कामयाब हो जाते हैं। तिहरे नेत्र जागरण की तीन अवस्था में हमें ध्यान देना चाहिए की हमारा मानसिक स्तर संतुलन की अवस्था में हो। कम या ज्यादा की अवस्था में हम उदाशिनता या फिर अहम जैसे भाव में फस सकते हैं।
यौगिक रुप से दैखा जाते तो योग साधना का सतत अभ्यास करते रहने से यह ग्रंथि विकसित की जा सकती है और वह सब देखा जा सकता है जो इस दोनों आंखों से दिखाई नही देता। हमारे शास्त्रों में तो यहां तक बताया गया है कि इसी दृष्टि यानी की तीसरी आंख में वो भी क्षमता है जिसकी मदद से किसी को शाप देना या फिर किसी को वरदान देना यह भी संभव हो सकता है।
योग शास्त्र में ऐसा माना जाता है कि लगातार त्राटक करने से यह तीसरा नेत्र खुल जाता है और ऐसा आप दीपक कु मदद से कर सकते हैं।इसके लिए आपको कंधे की सीध में तिन फुट की दुरी पर दीपक या मोमबत्ती को जलाकर रखनी होती है और इसको जलाने के बाद करीब 30 सेकंड से लेकर 1 मिनिट तक देखने के क्रम को बार बार दोहराया जाता है।
तीसरे नेत्र खुलने के दो उपाय
तीसरे नेत्र के दो उपाय है
1. आपके भीतर एक खालीपन हो जो दरवाजे को भीतर अपनी ओर खींच ले और दरवाजा कुदरती तौर पर खुल जाए। यह दरवाजा खाली जगह होने की वजह से भीतर कुछ तरफ खुल गया है। शिव ने न केवल अपने विचार, भाव, रिश्ते, अपनी चीजों को जलाया है, बल्कि अपने वजूद को भी जला दिया है। अब पुरी तरह से से खालीपन है। तो दरवाजा भीतर गिरेगा और खुल जाएंगा।
2. तिसरा नेत्र खोलने का एक और उपाय यह है कि आप सब कुछ अपने भीतर रखें। अपने भाव या विचार को प्रकट करने का आपके पास कोई रास्ता नहीं हो। आप एक शब्द भी नहीं बोले। आप देखेंगे की अगर आप चार दिन चुप रहे तो पांचवें दिन आपका गाने का मन करेगा। गाना नहीं आएगा तो भी गला फाड़कर चिल्लाना चाहेंगे क्योंकि आप अपने भीतर को खाली करना चाहते हैं। पर अगर आपने कुछ भी बाहर नहीं जाने दिया तो इतना दबाव होंगा कि आपके भीतर एक दरवाजा खुल जाएंगा।
आज्ञा चक्र जागृती के लाभ
इस चक्र के खुलने पर बहुत सी शक्तीयो की अनुभूति होती है, जिसमै मुख्य दो शक्तियों के नाम लिखे जाते हैं - पहला अणिमा, गरिमा, लघिमा इत्यादि अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति तथा दुसरा सर्वार्थसाधन सिद्धि। जो आठ प्रकार की सिद्धियां परमात्मा के द्वारा प्राप्त की जाती है, ये सभी आठ सिद्धियां यही रहती है, जो इस चक्र के खुलने पर प्राप्त होती है। ऐसे तो संसार में जितनी शक्तियां हैं जो प्राप्त करनी है, ये सभी शक्तिया मानव को पहले से प्राप्त है। केवल प्राप्त रहते हुए भी अप्राप्य - सी प्रतीत होती है। उन्हें अप्राप्त - सी प्रतीत करानेवाले अज्ञान अर्थात अविद्या रुपी अन्धकार को भजन भाव, साधना, ध्यान योग, जप, तप, नांद, बिंदु एवं कुण्डलिनी शक्ति को जागृत कर ज्ञान के प्रकाश के द्वारा समाप्त करने पर जो मिला है वह साफ हो जाता है। और तब ऐसा लगता है कि ये सभी पहले से प्राप्त है, केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद जो भ्रम था सो दुर हो गया।
जब मनुष्य के अन्दर आज्ञा चक्र जागृत हो जाता है तब मनुष्य के अन्दर अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से मनुष्य के अन्दर सभी शक्तिया जाग पड़ती है और मनुष्य एक सिद्धपुरूष बन जाता है। अतः जब हम इस चक्र का ध्यान करते हैं तो हमारे शरीर में एक विशेष चुम्बकीय उर्जा का निर्माण होने लगता है। उस उर्जा से हमारे अंदर के दुर्गुणो खत्म होकर, अपार एकाग्रता की प्राप्ति होने लगती है। विचारो में दृढ़ता और दृष्टि में चमक पैदा होने लगती है।
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं की आज्ञा चक्र क्या है और कैसे जागृत करें, ये आपके समझ में आ गया होगा और आप इससे लाभ प्राप्त कर सकेंगे। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।