बन्ध क्या है
बन्ध का शाब्दिक अर्थ रोकना,ताला लगाना होता है। जिस तरह बहती हुई नदी पर बांध बनाकर पानी को रोक दिया जाता है। फिर उसी पानी का उपयोग बिजली बनाने में किया जाता है। इसी तरह से प्राणशक्ति को शरीर में रोककरके प्राणशक्ति का प्रवाह अधिक मात्रा में शरीर में दिया जाता है, ताकि शरीर को ज्यादा आक्सीजन की प्राप्ति हो, शरीर को ज्यादा प्राणशक्ति की प्राप्ति हो। शरीर में रक्त का शोधन सही प्रकार से हो सके । इस तरह से शरीर में बन्धो का उपयोग किया जाता है। आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ने में बन्नो का बहुत महत्व होता है।
बन्ध कितने प्रकार के होते हैं
बन्ध चार प्रकार के होते हैं
1. मुल ब़ंध।
2. उड्डीयान बन्ध।
3. जालंधर बन्ध।
4. महाबन्ध।
मुल बन्ध कैसे करे
- मुलबन्ध का अभ्यास आप सिद्धासन में बैठकर कर सकते हैं, सिद्धयोनी आसन में बैठकर कर सकते हैं।
- दोनों पैरों सीधे करके फैला लें।
- इसके बाद बाएं पैर की ऐडी को योनि प्रदेश के पास लगाना है। और दाए पैर को मोड़कर एड़ियां एक दूसरे के उपर रहेंगी।
- दोनों हथेलियों को घुटनों पर रखें। घुटने जमीन से लगे हुए होने चाहिए।
- कंधे थोड़े उपर उठे हुए रहेंगे।
- आंखें बंद रखें।
- सबसे पहले गहरी श्वास लेंगे। इसके पश्चात पुरी प्राणशक्ति को बाहर निकाल देंगे और श्वास को बाहर रोक देंगे और गुदा द्वार की मांसपेशियों को धीरे धीरे मुलाधार की तरफ संकुचित करेंगे।
- जब हम श्वास को बाहर ना रोक पाए इसके बाद धीरे से गहरा श्वास लेंगे और गुदाद्वार को शिथिल कर देंगें।
- शुरुआत में इसकी तीन आवृत्ति करें। बाद में धीरे धीरे समय बढ़ाकर 10 आवृत्ति तक इसका अभ्यास कर सकते हैं।
मुल बन्ध के लाभ
- मुलाधार चक्र को सक्रिय करता है जिससे कुंडलिनी जागृत होकर उपर की जाती है।
- पेट संबंधी रोग दूर होते हैं। बवासीर, पाइल्स की समस्या को दूर करता है।
- पाचनतंत्र को दुरुस्त करता है।
- ब्रम्ह नाडी को शुद्ध करता है।
सावधानियां - इसको बहुत ही नियमित और संयम के साथ करना चाहिए। इसे किसी योग प्रशिक्षक या योगगुरु के मार्ग दर्शन में ही इसका अभ्यास करना चाहिए।
गर्भवती महिलाएं इसका अभ्यास ना करें।
जीन लोगों हृदय रोगी, उच्च रक्तचाप या निम्न रक्तचाप है वो इसका अभ्यास ना करें।
बन्ध का अभ्यास तभी करना चाहिए जब आपका प्राणशक्ति से पुरी तरह नियंत्रण हो जाए। इसके लिए पहले प्रारंभिक प्राणायामो का अभ्यास करना चाहिए। जब आपकी प्राणशक्ति नियंत्रण में आ जाए तो कुंभक का अभ्यास करना चाहिए। बाहर श्वास रोकने का अभ्यास 30 सेकंड तक होना चाहिए और अंदर श्वास रोकने का अभ्यास 30 सेकंड तक होना चाहिए और इस तरह से अगर आप 5 मिनिट तक कर लेते हैं तो आपका आपके श्वास का ठीक प्रकार से नियंत्रण हो जाता है।
उड्डीयान बन्ध कैसे करे
- पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन लगाकर बैठ जाएं।
- दोनों हथेलियों को घुटनों पर रखें। कंधे उपर रहेंगे।
- दोनों नासिकाओं से श्वास अंदर खिंचकर धीरे पुरी श्वास बाहर निकाल दे।
- पेट को अंदर खिंचकर इसी स्थिति में रहे।
- शुरुआत में इसकी 3 आवृत्ति करें। बाद में समय बढ़ाकर इसकी 10 आवृत्ति कर सकते हैं
उड्डीयान बन्ध के लाभ
- आध्यात्मिक लाभ - मनिपुर चक्र को जाग्रत करता है। जिससे आपकी ऊर्जा उपर की ओर बढ़ती है।
- विष्णु नाडी को शुद्ध करता है।
- इसका प्रभाव उदर के उपर पड़ता है जिससे पेट संबंधी रोग दूर होते हैं जैसे कब्ज, एसिडिटी, जठराग्नि की समस्या, भुख कम लगना इत्यादि।
सावधानियां - जीन लोगों को डायफ्रॉम का हार्निया है वो लोग इसका अभ्यास ना करें। पेट में अल्सर है तो इसका अभ्यास ना करें।
जालंधरबन्ध कैसे करे
- पद्मासन या सिद्धासन लगातार बैठ जाएं।
- उसके बाद दोनों हथेलियों को घुटनों पर रखें। दोनों घुटने जमीन से लगे हुए होने चाहिए। कंधे उठे हुए रहेंगे। दोनों कोहनिया सीधी रखें।
- मेरुदंड को सीधा रखें। गर्दन सीधी रखें।
- उसके बाद धीरे धीरे दोनों नासिकाओ से सांस अंदर ले। सांस जितनी आप खिंच सकते हैं उतनी खिंचे और सांस को अंदर की ओर रोककर रखें।
- इसके बाद धीरे धीरे गर्दन को नीचे की ओर झुकाए। अपनी ढोडी को सीने से दबाकर रखें।
- इसके बाद धीरे सांस छोड़ते हुए गर्दन को उपर उठाकर पुरे शरीर को रिलेक्स करें।
- इस आवृत्ति शुरुआत में एक बार करें। बाद में समय बढ़ाकर 3 से 4 बार करें।
सावधानियां - जीन लोगों को अस्थमा की समस्या हो, उच्च रक्तचाप की समस्या हो वो लोग इसका अभ्यास ना करें।
जालंधरबन्ध के लाभ
- आपका विशुद्धी चक्र इस बन्ध से धीरे धीरे जागृत होने लगता है। रुद्र नाडी को शुद्ध करता है।
- वाणी में मधुरता आती है।
- गले के रोग धीरे धीरे दुर होने लगते हैं।
- शरीर में वायु धारण करने की क्षमता बढ जाती है।
महाबन्ध कैसे करे
- सिद्धासन में बैठ जाएं। दोनों हाथों को घुटनों पर रखें।
- कंधे उपर उठाकर रखें। गहरी सांस लें, फिर श्वास बाहर निकाल दे।
- पहले मुल बन्ध लगाएंगे, फिर उड्डीयान बन्ध, उसके बाद जालंधर बन्ध लगाएंगे।
- फिर धीरे धीरे तीनों बन्नो को खोल दे।
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सावधानियां - अस्थमा के रोगीयो को , गर्भवती महिलाओं को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। जब तक आपके तीनों बन्ध सिद्ध न हो जाए तब तक महाबन्ध का अभ्यास ना करें।
महाबन्ध के लाभ
- कुंडलिनी उपर की ओर उठती है। इससे चक्र जागृत होते हैं। सुषुम्ना नाड़ी शुद्ध होनी हैं।
- कन्ठ प्रदेश के लिए लाभदायक होता है। उदर के लिए लाभदायक होता है।
- प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है।
- थोइराइड में लाभ होता है।
- शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
- सायनस में लाभदायक होता है।
- सारे हार्मोन नियंत्रित होते हैं।
- इससे आयु बढ जाती है।
- मस्तिष्क की क्षमता बढ़ती है।
- ध्यान में मन लगता है।
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं बन्ध योग क्या है, बन्ध कितने प्रकार के होते है, ये आपको समझ में आ गया होगा और अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर