आर्युवेद असल में एक जीवन विज्ञान है। जिवन को जिने कि कला है। आर्युवेद मुख्यत दो शब्दों से मिलकर बना है,आयु और वेद जहा आयु का अर्थ होता है जीवन और वेद का अर्थ होता है जानना।वह विज्ञान जिससे हम अपने जीवन के बारे में या जीवन जिने की कला के बारे में जानें उसे आर्युवेद कहते हैं।
जन्म से लेकर मृत्यु तक जो कालावधी है, उसे आयु कहते हैं।ईस कालावधी में आप अपने शरीर,मन और खुद के लिए जो कुछ करते हैं उसको ठीक से जान लेना आर्युवेद है। आर्युवेद आयु के बारे सम्पूर्ण जानकारी सही से देता है।अगर आप इसके बताए मार्ग पर जीवन व्यतीत करते करेंगे तो आप सदा निरोगी रहेंगे।अगर आप इसके विरुद्ध जीवन व्यतीत करेंगे तो आप सदा रोगी रहेंगे।
इसलिए आप आर्युवेद को जीवन का शास्त्र भी कह सकते हैं। जीवन के विभिन्न स्तर जैसे बाल्यावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था, सुबह, दोपहर, शाम,रात से शरीर में होने वाले बदलाव, ऋतु के अनुसार शरीर में होने वाले बदलाव, बिमारियों से शरीर में होने वाले बदलाव, विहार से शरीर में होने वाले बदलाव,क्रोध, ईष्र्या,भय से शरीर में होने वाले बदलाव,आचार,व विचार से शरीर में होने वाले बदलाव,इन सब जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों का वर्णन आर्युवेद शास्त्र में किया गया है।इन सभी विषयों का समावेश जिस शास्त्र में किया गया है उसे हम जीवन शास्त्र कह सकते हैं,जिसे हम आर्युवेद कहते हैं।
जब आप एक शुद्ध आर्युवेद चिकित्सा करने वाले वैध के पास जाते हैं तब शुरुआत में वे आपस आपके बिमारी के बारे में पुछेंगे, बाद में वे आपसे आपके उपर वर्णन कीये गए जीवन के बारे में भी प्रश्न पुछेंगे, जैसे आप खाने में क्या लेते हैं,खाना कब खाते हैं,कब होते हैं,मलमुत्र विसर्जन समय पर होता है क्या,भुख लगती है क्या इन सभी प्रश्नों से बिमारी की प्रत्यक्ष क्षजगह देख करके या जरुरत पड़ने पर स्पर्श करके बिमारी का निदान करते हैं और आपके प्रकृति के अनुसार औषध और परहेज बताकर उपचार किए जाते हैं।
आज सम्पूर्ण विश्व में रोग ना हो इसलिए क्या करना चाहिए इस पर चर्चा शुरू है।ईस विषय को आधुनिक भाषा में preventive medicine कहते हैं। prevention is better than cure आज यह सिद्धांत पुरे विश्व में माना जाता है।यही आर्युवेद में बताया गया है। बाकी चिकित्सा शास्त्रों की तुलना में आर्युवेद का विचार रोगों की चिकित्सा के अलावा निरोगी जीवन पर अधिक है।
आर्युवेद का इतिहास।
आर्युवेद के अवतरण के संदर्भ में कहा गया है कि उसे ब्रम्हाजी ने स्मरण किया था। स्मरण उसका किया जाता है जो पहले से मौजूद होती है, तो इससे हमें आर्युवेद की नित्यता,सात्यता समझ में आती है। ब्रम्हाजी के पश्चात ये विद्या दक्ष प्रजापति, अश्वनी कुमारो और देवता के राजा इन्द्र के पास गई।
ईन्द्रदेव ने आर्युवेद के ज्ञान को ऋषि भारद्वाज,ऋषि धनवंतरी,ऋषि कश्यप को दिया।ऋषि भारद्वाज को आर्युवेद औषधि, धनवंतरी को शल्य चिकित्सा(surgery) और ऋषि कश्यप को कौमारभृत्यम् (pediatrics) का ज्ञान दिया। ऋषि भारद्वाज ने इस ज्ञान को ऋषि अत्रि को दीया। अत्रि ऋषि के आश्रम में 6 शिष्य थे।अग्निवेश, भेल, जातुकरणा, हरीद्रा, पाराशर, खारपानी। उनमें से एक शिष्य अग्निवेश ने आर्युवेद के ज्ञान को लिखना प्रारम्भ किया। अग्निवेश ने अग्निवेश तंत्र लिखा जो बाद में महर्षि चरक ने अग्निवेश तंत्र को अच्छी तरह लिखा और चरक संहिता नाम दिया।
ऋषि धनवंतरी ने काशिराज को शल्य चिकित्सा (surgery) का ज्ञान दिया। काशिराज ने अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा (surgery) का ज्ञान दिया।उनमें से एक शिष्य थे सुश्रुत। उन्होंने सुश्रुत संहिता लिखा।तो ईस तरह से आर्युवेद का अवतरण माना गया है। आर्युवेद को अथर्ववेद से प्रेरित होकर माना गया है। और कुछ आचार्य उसे पंचम वेद के रूप में भी जानते हैं।
आर्युवेद का उद्देश्य।
स्वास्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम् आतुरस्य विकार प्रक्षणम्। अर्थात स्वास्थ्य व्यक्ति की स्वास्थ्य की रक्षा करना और आतुर व्यक्ति यानी रोगि व्यक्ति के लोगों को दुर करना। हमारे चारों ओर आर्युवेद मौजूद हैं।हम सदीयो से आर्युवेद को अपने जीवन में उतारते हुए आ रहे हैं।बस फर्क सिर्फ इतना है कि हम जहां जहां आर्युवेद उपयोग कर रहे हैं, हमें आभास ही नहीं है की ये हमारे पुराने सिद्धांतों से प्रेरित होकर हम ऐसा कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए सुबह उठकर हमें आदत है कि दो गिलास पानी पीना है, जो हमारे बायल हेबिट को मेनटेन करता है। लेकिन क्या हम जानते हैं कि ये हमारे आर्युवेद में दिनचर्या में वर्णित ऊषापान का हिस्सा है।
ईस प्रयोजन के अनुसार आर्युवेद में प्रत्येक व्यक्ति को उसके प्रकृति अनुसार खान-पान एवं आचरण के नियम, दिनचर्या कैसी होनी चाहिए, ऋतु अनुसार ऋतुचर्या कैसी होनी चाहिए,ईन संबंधि मार्गदर्शन किया गया है। साथ ही साथ आहार,निद्रा, ब्रम्हचर्य उनका वर्णन किया गया है।ईन्हें शरीर के उपस्तंभ माना गया है। आहार, निद्रा, ब्रम्हचर्य (संभोग) इन 3 विषयों के संबंधीत भी अत्यंत सुक्ष्म मार्गदर्शन किया गया है।
आरोग्य की दृष्टि से उनका सही मात्रा में होना अत्यंत आवश्यक है। अगर इनमें से एक भी स्तंभ भी गिर गया तो हमारे शरीर का भी नुकसान हो सकता है। यदि इन सभी नियमों का पालन आपने किया तो बिमारियों से संरक्षण करना कठीन नहीं है, और कुछ कारणों से अगर रोग हो भी गया तो उसके निवारण कि चिकित्सा उपलब्ध है।
स्वास्थ्य क्या है।
पहले स्वास्थ्य की व्याख्या "health is absence of disease" ये समझी जाती थी, लेकिन 1978 में हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन की बैठक में माना गया कि स्वास्थ्य अर्थात केवल रोग अथवा विकलांगता उनका अभाव इतना ही नहीं बल्कि शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सुस्थिति को स्वास्थ्य कहा जाना चाहिए और यही आर्युवेद में पांच हजार वर्ष पूर्व कहा है।
"समाधिस्थ समधातुमलक्रिया।प्रसन्नात्मैन्द्रियमता: स्वस्थ ईत्यभिधियते।।" यह आचार्य सुश्रुत का श्लोक है, यहां तन,मन एवं आत्मा का आरोग्य अर्थात आरोग्य शरीर का निरोगीत्वं और मन आत्मा की प्रसन्नताओ को ही आरोग्य कहना चाहिए यह आर्युवेद मानता है।
एक उदाहरण के तौर पर देखते हैं,हम कोई भी इलेक्ट्रॉनिक वस्तु खरीदते हैं तो उसे कैसे इस्तेमाल करना है, कैसे इस्तेमाल नहीं करना है, उसके साथ उसका user manual दिया जाता है।अपना शरीर भी एक यंत्र ही है। लेकिन इसके साथ user manual नहीं रहता है। मनुष्य के शरीर के user manual याने अपने वेद, उसमे से आर्युवेद एक है।
वेद चार माने जाते हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद। इनमें से यह अथर्ववेद का उपवेद माना जाता है। अथर्ववेद की बहुत सारी बातें आर्युवेद में समाविष्ट होने के कारण आर्युवेद को अथर्ववेद का उपवेद माना जाता है। आर्युवेद के जो ग्रंथ है वे आज अपने शरीर के युजर मेन्युअल है।
अगर हम इन ग्रंथों में वर्णित मार्ग पर चलते हैं तो हमारे शरीर का सिस्टम ज्यादा दिनों तक चलेगा। यदि हमने ईनके मार्ग को नजरंदाज किया तो हमें बार - बार machenic के पास जाना पड़ सकता है।
आर्युवेद का सिद्धांत।
आर्युवेद में जो ग्रंथ है उनको संहिता कहा जाता है। उनमें 3 मुख्य है। 1.चरक संहिता। 2.सुश्रुत संहिता। 3.वागभट्ट संहिता।चरक, सुश्रुत, वागभट्ट यह तिन अलग - अलग काल के महान ऋषि थे। उन्होंने यह संहिताए तैयार की इसलिए इन ग्रंथों को उनके नाम से जाना जाता है।यह सभी संहिताए संस्कृत भाषा में है।
आर्युवेद चिकित्सक इन तीनों संहिताओं का अभ्यास उनके वैद्यकीय पढ़ाई के दौरान करते हैं।इन तीनों संहिताओं में स्वस्थवृत ( निरोगी रहने के नियम ) बताए गए हैं। रोगों का वर्णन (लक्षण, वर्णन,रोगनिर्मिती की प्रक्रिया ) बताई गई है। चिकित्सा का वर्णन ( रोगो के औषध, परहेज, प्रक्रिया) ईनका वर्णन किया गया है। आहार वर्णन भी है। आहार की वस्तुओं के गुण एवं दोष ईनका वर्णन है, और साथ में औषधि के गुणों का वर्णन विस्तार से किया गया है।
कुछ लोगो के मन में आर्युवेद पुराना शास्त्र है, इसलिए वह शास्त्रीय अर्थात scientific है या नहीं ऐसा सवाल आता है।पर आर्युवेद एक सम्पूर्ण वैज्ञानिक शास्त्र है। इसके मुल में की सारे मुलभुत सिद्धांत है।यह मुलभुत सिद्धांत हजारों वर्षों से वही है। उनमें कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है। उदाहरण के लिए पानी से आग का बुझना, अग्नि से लकड़ी का जलना इत्यादि।
श्रृष्टि के इन्हीं नैसर्गिक सिद्धांतों पर आर्युवेद हजारों वर्षों से खड़ा है और ऊंचा उठने के लिए खड़ा है।इसके साथ पंचमहाभूत सिद्धांत, पिंड ब्रम्हांड सिद्धांत, त्रिदोष सिद्धांत, सप्तधातु सिद्धांत इन जैसे सिद्धांतों पर आर्युवेद खड़ा है।
निष्कर्ष
केवल भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में लोग आर्युवेद की जीवन पद्धति अनुसरण कर रहे हैं। जिन - जिन बिमारियों में आधुनिक चिकित्सा शास्त्र को मर्यादा आ रही है। वहां लोग आर्युवेद की तरफ देख रहे हैं। आर्युवेद जीवन पद्धति मनुष्य को एक बार फिर प्रकृति कि और ले जा रही है।