हमारे ऋषि मुनियों ने सभी योनियों के अर्थात जिस स्थिति में वह दिखते हैं,उस स्थिति का एक आसन बनाया है। इसलिए 84 लाख योनियों से 84 लाख आसनों का निर्माण हुआ।इनमें से केवल 84 आसन बताते हैं जो हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
आसन क्या है
महर्षि पतंजलि ने योग सुत्र में कहा है, "शिथिलसुखमआसनम्"अर्थात शिथिलता से सुखपूर्वक जिस स्थिति में हम खड़े हैं बैठे हैं, या एक खडे हैं,या जो हमारी शरीर की स्थिति है,वो आसन की है। जिसमें हम सुखपूर्वक बैठे हैं। किसी प्रकार की हलचल हमारे शरीर में नहीं है, किसी प्रकार का व्यवधान हमारे शरीर में नहीं है, किसी प्रकार की तकलीफ हमारे शरीर में नहीं है।उस स्थिति को हम आसन कहते हैं।
84 योग आसन।
1.पद्मासन 2.तुलासन 3.योगमुद्रासन 4.वक्रासन 5.प्रसारीतापादोत्तानासन 6.भारव्दाजासन7.बध्द कोनासन 8.वृक्षासन 9.एकपादासन 10.आनन्द दंडवम् 11.कोणासन 12पश्व कोणासन 13.गरुडासन 14.अनन्तासन 15.नटराजासन 16.क्रोंचासन 17.उथित हस्त पादागुंडासन 18.अस्त्रासन 19.मत्यासन 20.वातायनासन 21.वज्रासन 22मन्डुगासन 23.सुप्त वज्रासन 24.लघु वज्रासन 25.आकर्ण धनुरासन 26.दण्डासन 27.चतुरंगासन दण्डासन 28.पुर्वोत्तानासन 29.अर्ध मत्स्यासन 30.भुजंगासन 31. धनुरासन 32.कापोटासन 33.एकपाद राजकापोटासन 34.मर्ज्युरीयासध 35.पर्श्व बालासन 36.सेतुबंधासन 37.पासासन 38नौकासन 39.पश्चिमोत्तानासन 40.परीवर्ता जानुशिरासन 41.जानुसशिरासन 42.बध्द पद्मासन 43.गोमुखासन 44.पादागस्त्यासन 45.उत्थानप्रीस्तासन 46.विश्वमित्रासन 47.मयुरासन 48.पद्म मयुरासन 49.योगनिद्रासन 50.हलासन 51.कर्णपीडासन 52.एकपादसिरासन 53.भुजापिडासन 54.टीट्टीभासन 55.बकासन 56.पद्म बकासन 57.भुक्कुटासन 58.गर्भपिडासन 59.ससंगासन 60.पद्म मत्स्यासन 61.अधोमुखासन62.त्रिकोणासन 63.पर्श्वोत्तानासन 64.विरभद्रासन 65.चक्रासन 66.उड्डानपादासन 67.अर्धहलासन 68.विपरित कर्मी 69.सर्वांगासन 70.पवनमुक्तासन 71.आनन्द बाद 72.कुर्मासन 73अर्ध चक्रासन 74.उत्थित उपविष्टा कोणासन 75.विरभद्रासन 76.उत्कटासन 77.शिर्षासन 78.वृश्चिकासश 79.अधोमुखासन वृक्षासन 80.उपविष्ट कोणासन 81.अर्ध चक्रासन 82.सलभासन 83.विमानासन 84.शवासन।
> पद्मासन क्या है कैसे करे इसके लाभ
आसन के प्रकार
इस के बारे में विभिन्न विचार है।गोरक्ष आसन संहिता में 2 आसनों की व्याख्या की है। भगवान शिव
अपनी शिव संहिता में 4आसनो को मान्यता दी है।घेरण्ड संहिता में 32आसनो की व्याख्या की है। स्वामी स्वात्माराम ने 15आसनो की व्याख्या की है।मुख्यत: आसन के 3 प्रकार होते हैं।
1.ध्यानात्मक आसन।(Meditational posture)
2.संवर्धनात्मक आसन।(stretching posture)
3.विश्रांति आसन।(Resting posture)
आसन सिध्दी
आसन हिन्दी जो की हठयोग का मुलभुत आधार कहा गया है।आसन सिध्दी जिसके लिए योगी वर्षों - वर्षों तक ध्यान करते हैं, अभ्यास करते हैं। क्या एक आसन आपके जीवन के नये आयाम खोले सकता है?क्या एक आसन इतना महत्वपूर्ण हो सकता है,जिसके लिए योगी आजीवन प्रयास करता है,और उसको प्राप्त करके बहुत सारी नई संभावनाओं को विकसित करता है।
जिस आसन में आप सहजता से ठहर सके,रुक संके वहीं आसन उपयोगी है।तभी आप आसन से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यही आसन की प्रमुख परीभाषा है।पुर्ण स्थिरता के साथ आप जिस आसन में बैठ सकते हैं।
ईस प्रकार से आष समझ सकते हैं की बैठने का विधान, किसी आसन में बहुत समय तक टिकने का विधान कहा गया है। जिससे की आप साधना के मार्ग में आने से सके और साधना धयानात्मक आसन में होती है। लेकिन ध्यानात्मक आसन जैसे कि सिध्दासन, पद्मासन, स्वस्तिकासन, सुखासन आदी में ठीक प्रकार से बैठने के लिए भी आपके शरीर को सक्षम होना चाहिए क्योंकि आपको 2.5 घन्टें तक सुखपूर्वक बैठना है।ऐसा नहीं है की मुश्कील से आप किसी तरीके से बैठ के ऐसा की आपको पता भी नहीं है की आप किस प्रकार से बैठे हैं।
आप निरंतर - निरंतर एकाग्रचित्त होकर के आफने ध्येय पर एकाग्र है,न की आपका शरीर आपके मार्ग में उस प्रगति के,उस साधना के मार्ग में अवरोध उत्पन्न कर रहा है।"शरीर चेष्टा स्थेर्य अर्थाबलनी"की शरीर का वह अभिष्ट के जो शरीर में स्थिरता लाता है और बल का वर्धन करता है।वो अभ्यास वो,वो आसन के बारे में कहा गया है।
आप यहां पर ये समझ सकते हैं कि बल का वर्धन भी जरुरी है।जिससै की आप उस बल का, उस उस उर्जा का,उसप्राण का,उस ओजस का उपयोग अपनी साधना में कर सके।अब उसको विकसित करने के लिए योगीयो ने आप की शरीर की क्षमता की क्षमता बढ़ाने के लिए बहुत सारे कठीन अभ्यास को भी बताया है।
जिस तरीके से आप मयुरासन का अभ्यास करते हैं,आप धनुरासन का अभ्यास करते हैं,आप शिर्षासन का अभ्यास करते हैं,और बहुत सारे अभ्यास है, वृश्चिकासन आदि वो आपके लिए अत्यधिक उपयोगी हो जाते हैं। क्योंकि आपको बल भी चाहिए।आप अपने शरीर को इतना लचीला बना करके रखना है कि आप आराम से जब बैठते हैं तो आपका शरीर अकड़ ना जाए।
आपका शरीर बिल्कुल नर्म रहे, बिल्कुल सहज रहेंउसके लिए हम सारे आसन करते हैं। किसी एक आसन की सही संरेखण को समझना कि उस उस आसन में हमारे शरीर के अंगों की स्थिति कैसी होनी चाहिए, हमारे श्वासो की गति कैसी होनी चाहिए। ध्यान की एकाग्रता कहा पर होगी।सभी विषयों को हम समझ लेते हैं तो समझो कि हम उस आसन को सिद्ध करने की और आगे बढ़ रहे हैं।
पुर्न सिध्दी आपकी तब होती है जब आप उस आसनों में इतना ठहर सके जितना उसके लिए अनिवार्य है। जैसे कि ध्यानात्मक आसन के लिए 2.5 घंटे का समय बताया गया है। लेकिन मयुरासन के लिए 2.5 घंटे का समय नहीं होगा। मयुरासन के लिए, पश्चिमोत्तानासन के लिए, भुजंगासन के लिए एक समय अवधि आप अपने शरीर के उच्चतम क्षमताओं को विकसित करते हुए निर्धारित कर सकते हैं, कि मैं इस आसन में 3 मिनट,4 मिनट,10 मिनट रुक रहा हूं।अब उस आसन को इतने बैहतर तरीके से करने के बाद में ध्यानात्मक आसन में बैठ रहा हूं।तब वो मैंने उस आसन का अभ्यास किया है वो मेरा सिद्धासन में बैठने में भी सहायक हो रहा है।
टेलीविजन की एक निश्चित फ्रिक्वेंसी होती है। जिस प्रकार टेलीविजन के एंटीना को सही फ्रिक्वेंसी पर ले जाते हैं तो वह उस फ्रीक्वेंसी को पकड़ता है।सुचनाओ को ग्रहण करता है।ईस तरीके से विशेष शारीरिक स्थिति में आने के बाद योगी के अन्दर उस ब्रम्हाडींय उर्जा या उस चेतना को संग्रहित करने की क्षमता विकसित होंती है।जब वो क्षमता आनी शुरू हो जाती है।तब समझिए कि अब आसन सिध्द हो रहा है।बस ईसके लिए प्रयास किए जाते हैं,इसके लिए अभ्यास किए जाते हैं।
अब यहां पर महत्वपूर्ण संरेखण(alignment) है। सबसे उपयोगी योग में महत्वपूर्ण अंग है,वो है हमारी रीढ़(spine) है। क्योंकि इसी के माध्यम से नाडीया संचालित होती है,उसी के माध्यम से ऊर्जा संचालित होती है।तो ईस सिध्दी को समझने के लिए अपनी स्पाईन को ठीक करना पड़ेगा और उसके लिए आपको एक ब्लाक अपने नितम्ब के नीचे रखकर उस पर बैठना है।
जैसे ही आप उस पर बैठते हैं तो तय क्षण आप अनुभव करेंगे कि अब मुझे कंम्फर्टेबल लग रहा है।आप 10,15 मिनट ईस प्रकार बैठ करके देखेंगे तो आपको लगेगा कि ईस ब्लाक से मुझे लाभ मिल रहा है। इतना करेंगे तो आपके स्पाईन का एलायमेंट होना शुरू हो जाएगा और आप लम्बे समय तक सीधी कमर करके बैठ सकेंगे।
जब आप प्राणायाम कर रहे हैं,जो आप ध्यान कर रहे हैं,जब मुद्राओ का अभ्यास कर रहे हैं।तब आपकी कमर सीधी होनी चाहिए।
आसन के लाभ
"आसनरजोहन्ती "अर्थात आसन रोगों को हरने का काम करता है। आपको आरोग्य परीपुर्न जिवन प्रदान करने का कार्य आसन करता है। महर्षि पतंजलि कहते हैं आसन करने से व्ददों को सहन करने की क्षमता आपके शरीर में बढ़ती है। अर्थात आसन करने से आपके शरीर में सुख-दुख,मान - अपमान,लाभ - हानी, सर्दी-गर्मी, जय-पराजय जितने भी व्दंद है आपके जीवन में उनको सहने की क्षमता आपके शरीर में बढ़ेगी।सभी प्रकार के रोग समाप्त होते हैं।
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं कि आसन क्या है, ये आपको समझ में आ गया होगा और अगर ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।