योग क्या है
योग आत्मा और परमात्मा से जो मिलन होता है उसे योग कहते हैं। योग हमारे भीतर की यात्रा है। योग का अर्थ जोड़ना है मतलब आत्मा को परमात्मा से जोडना। योग एक विज्ञान है जिसे सभी धर्मो के लोग कर सकते हैं।
आसान क्या है
आसन एक मुद्रा का नाम है जिसमें हम स्थिर रहते हैं, उसी को आसन कहते हैं।
प्राणायाम क्या है
प्राणायाम सांसों से जुड़ी हुई क्रिया को प्राणायाम कहते हैं। प्राणायाम में हम अपने मन और प्राणो को अपने अनुसार नियंत्रित करते हैं। अपने सांसों को अपने अनुसार चलाना उसी को हम प्राणायाम कहते हैं।
प्राणायाम के फायदे
प्राणायाम से आपके फेफड़ों को तकलीफ़ नहीं होंगी। फेफड़े मजबूत होंगे। आपका आक्सीजन लेवल बहुत मजबूत होंगा और आपका ब्रेन भी तेज चलेगा।
पहले आसन करें या प्राणायाम
महर्षि पतंजलि ने अपने अष्टांग योग में पहले आसन का जिक्र किया है तो स्वाभाविक रूप से पहले हमें आसन करना चाहिए, उसके बाद प्राणायाम करें।
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प्राणायाम के प्रकार और लाभ
मूल रूप से प्राणायाम के 12 प्रकार होते हैं।
1. नाडी शोधन प्राणायाम
2. कपालभाती प्राणायाम
3. भस्त्रिका प्राणायाम
4. सुर्य भेदी प्राणायाम
5. दिर्घा प्राणायाम
6. शितली प्राणायाम
7. सितकारी प्राणायाम -
8. उज्जयी प्राणायाम -
9. प्लवनी प्राणायाम
10. मूर्छा प्राणायाम
11. अग्निसार क्रिया
12. उत्दित प्राणायाम
13. भ्रामरी प्राणायाम
14. बाह्य कुंभक प्राणायाम
15. अन्तह कुंभक
1. नाडी शोधन प्राणायाम - सर्वप्रथम अपने दाहिनी नासिका को दाहिने अंगुठे से दबाते हैं और बाईं नासिका से लंबी गहरी सांस को भरते हैं तत्पश्चात हम अपनी बाईं नासिका को अपनी सबसे छोटी कनिष्क उंगली से बंद करने के बाद दाहिनी नासिका से सांस को छोड़ते हैं तथा दाहिनी नासिका है ही पुनः सांस को भरते हैं। तत्पश्चात दाहिनी नासिका को बंद करके बाई नासिका से श्र्वास को छोड़ते हैं। इस क्रम को लगातार दोहराते हैं। इस प्राणायाम का अभ्यास 2 मिनिट से लेकर 5 मिनिट तक बढ़ाए। तत्पश्चात इसका अभ्यास बढ़ जाए तो नित्य प्रतिदिन 15 मिनिट सुबह और 15 मिनिट शाम को कर सकते हैं।
लाभ - इस प्राणायाम को करने से शरीर की समस्त नाडीया स्वच्छ हो जाती है एवं साफ हो जाती है तथा इनमें जमे हुए अवरोध दूर हो जाते हैं। नाडी शोधन प्राणायाम करने से मस्तिष्क शांत होता है और अवसाद तथा चिंता जैसी समस्याएं धीरे धीरे दुर हो जाती है। अगर हम इस प्राणायाम का अभ्यास नित्य प्रतिदिन करें तो हमारे शरीर में कई तरह की बिमारी का नाश धीरे धीरे होने लगता है।
2. कपालभाती प्राणायाम - सर्वप्रथम सुखासन में बैठ जाएं, हाथ को ज्ञान मुद्रा में रखे। आंखो को बंद कर ले और श्र्वास को तेजी से बाहर की तरफ ढकेलेंगे। जब हम सांस कौन बाहर की ओर ढकेलेंगे तो पेट स्वतः ही अंदर की ओर जाता है।
लाभ - कपालभाती प्राणायाम का अभ्यास नित्य प्रतिदिन करने से पेट से संबंधित रोगो का नाश होता है तथा हमारे पेट के समस्त रोग दूर हो जाते हैं।
3. भस्त्रिका प्राणायाम - सुखासन में बैठकर, आंखों को बंद करें। तेजी से सांस को अंदर भरकर तेजी से बाहर नीकाले।
लाभ - भस्त्रिका प्राणायाम करने से हमारे फेफड़े पुर्ण रुप से स्वस्थ हो जाते हैं। इससे श्वसन संबंधी की बिमारीया ठीक होती है।
4. सुर्य भेदी प्राणायाम - सर्वप्रथम हम अपने बाई हाथ के अंगूठे से अपनी बाईं नासिका को दबाकर अपनी दाहिनी नासिका से श्र्वास को अंदर भरेंगे। तत्पश्चात श्वास को अंदर भरने के बाद कुंभक लगाएंगे। 5 से 10 सेकंड आप अपनी श्र्वास को रोककर धीरे धीरे दाहिनी नासिका बंद करके बाई नासिका से श्र्वास को छोड़ देंगे। तत्पश्चात अपनी दाहिनी नासिका से श्र्वास को भरेंगे और 5 से 10 सेकंड का कुंभक लगाकर बाई नासिका से धीरे धीरे श्वास को छोड़ देंगे। इस विधि को लगातार 5 बार दोहराते हैं और हर बार दाहिनी नासिका से श्वास को अंदर भरने। गर्मी में इस अभ्यास को ना करें।
लाभ - सुर्य भेदी प्राणायाम कने से श्वसन संबंधी बहुत सारे रोगो का नाश होता है तथा इस प्राणायाम को सर्दी में करने से हमारे शरीर को गर्मी भी मिलती है।
5. चन्द्र भेदी प्राणायाम - इस विधि में अपने दाहिने हाथ के अंगुठे से अपने दाहिनी नासिका को बंद करकर आंखें बंद कर लें। और बाईं नासिका से पुरी श्वास भरें। तत्पश्चात 5 से 10 सेकंड अपनी श्वास को रोककर धीरे धीरे बाई नासिका को बंद करकर अपनी दाहिनी नासिका से धीरे धीरे श्वास को बाहर छोड़ेंगे।
लाभ - इस प्राणायाम को करने से हमारे शरीर को थंडक मिलती है और हमारे पेट की गर्मी इस प्राणायाम को करने से शांत होती है।
6. शितली प्राणायाम - शितली प्राणायाम में हम अपनी जीभ को एक चोंच की भांति, एक ट्यूब की भांति बाहर निकालते है और सांस को अंदर भरते हैं। मेरुदंड सीधा करके बैठ जाएं। आंखें बंद कर लें। जीभ को बाहर निकाले। हर बार जीभ से हम अपनी श्वास को अंदर भरेंगे और तत्पश्चात धीरे धीरे श्वास को बाहर की तरफ छोड़ेगे
लाभ - इस प्राणायाम को करनै से हमारे शरीर को थंडक मिलती है तथा गर्मीयों में यह प्राणायाम अत्यंत ही लाभकारी सिद्ध होता है।
7. सितकारी प्राणायाम - सितकारी प्राणायाम में हम अपनी जीभ को अपनी तालु पर लगाकर अपने दांतों को खींच लेंगे और धीरे धीरे मुंह से श्वास भरकर तत्पश्चात अपने दोनों नासिकाओ से अपने दोनों श्वास नलियों से अपनी श्वास को बाहर की तरफ छोड़ेंगे।
8. उज्जयी प्राणायाम - मेरुदंड को सीधा करके बैठ जाएं। नाक से श्वास भरेंगे। तत्पश्चात जालंधर बंध लगाकर ( जालंधर बंध में अपनी थोड़ी को अपने कंठकुठ से ढकेंगे और धीरे धीरे अपनी श्वास को पुरी तरह से बाहर छोड़कर धीरे धीरे गले से एक आवाज निकालेंगे ) ।
लाभ - उज्जयी प्राणायाम थायराइड के रोगीयो के लिए, गले में जो विभिन्न प्रकार की समस्याएं होती हैं। उनको दुर करने के लिए अत्यंत ही लाभकारी होता है।
9. प्लवनी प्राणायाम - प्लवनी प्राणायाम करने के लिए सर्वप्रथम अपने दोनों नासिकाओं से श्वास को भरते है और श्वास भरते भरते पेट को बाहर की ओर फुला लेते हैं और यथाशक्ति जितनी देर संभव हो कुंभक लगाते हैं।
लाभ - प्लवनी प्राणायाम करने से पेट से संबंधित जितनी भी समस्याएं होती है वो दुर हो जाती है।
10. मुर्छा प्राणायाम - मेरूदंड को सीधा करके बैठ जाएं और अपने होठों को जंघाओं पर रखें। कधौ को थोड़ा ऊपर कर धीरे धीरे श्वास को लेते हुए गर्दन को उपर उठाते हैं और श्वास को भरने के बाद यथाशक्ति अनुसार जितने देर संभव हो अन्तह कुंभक लगाते है और आंखै बंद कर लेते है। इसके बाद धीरे धीरे श्वास को छोडते हुए आंखें खोल देंगे।
लाभ - इस प्राणायाम को करने से बहुत सारे लाभ होते हैं। अगर किसी को तनाव की समस्या है या जिसको ओवरथिंकींग की समस्या है, जिसको निंद की समस्या है वे सभी लोग इस प्राणायाम का अभ्यास करें।
11. अग्निसार क्रिया - इसमे क्रिया में श्वास को अंदर भरकर पेट को पुरी तरह से अंदर खिंच लेते हैं और पेट को खिंचने के बाद एक तरफ से दुसरी तरफ चलाते हैं।
लाभ - इस प्राणायाम को को करने से उदर संबंधी सभी बिमारियां वह रोग नष्ट हो जाते हैं।
12. उत्दित प्राणायाम - उत्दित प्राणायाम मैं ॐ का जाप करते हैं। हम ॐ का जाप 5 बार, 7 बार या 11 बार लगाते है। ॐ के उच्चारण मे आ, ओ ओ म तीन शब्दों का प्रयोग करेंगे। जब मुंह खुला होंगा तब आ का उच्चारण करेंगे, जब मुंह तोड सा बंद हौगा तो ओ का उच्चारण स्वतः ही होगा और जब पुरी तरह से बंद करेंगे तो म का उच्चारण होंगा।
मेरुदंड सीधा करके ज्ञान मुद्रा मैं बैठकर आंखें बंद कर लेंगे और अपने दोनों नासिका से श्वास को अंदर भरेंगे। इसके बाद ॐ का उच्चारण करेंगे। इस क्रिया को 5 बार करें।
लाभ- इस प्राणायाम को करने से मन की सभी कुसंगतिया दुर होती है। शरीर की सभु प्रकार की नकारात्मकता उर्जा का नाश होता है।
13. भ्रामरी प्राणायाम - भ्रामरी प्राणायाम में हम भ्रमर कु तरह गुंजन करते हैं। जिस प्रकार वह एक फुल के पास जाकर धीरे धीरे गुंजन करता हैं।
दोनों हाथों की चार उंगलियों को अपने आंखों पर रखकर अंगुठे से अपने कानों को पुरी तरह से बंद करेंगे। श्वास को अंदर पुरी तरह से भरने के बाद भंवरे की तरह गुंजन करेंगे।
लाभ -,इस प्राणायाम को करने से मस्तिष्क की सभी प्रकार विकार दूर होते हैं। अनिद्रा, तनाव, अवसाद इन सभी रोगो में यह बहुत फायदेमंद होता है।
14. बाह्य कुंभक प्राणायाम - इस प्राणायाम में धीरे धीरे अपने श्वास को बाहर निकालकर अपने श्वास को बाहर ही रोक देते हैं अर्थात कुंभक लगाते हैं। इस अभ्यास को 30 से 40 सेकंड से बढ़ाकर इस समय को आगे बढ़ाते हैं।
मेरुदंड सीधा करके ज्ञान मुद्रा में बैठकर अपनी आंखों को बंद कर लेंगे और अपनी श्वास को दोनों नासिका से धीरे धीरे बाहर छोड़ेंगे और अपनी श्वास को बाहर ही रोक देंगे।
लाभ - बाह्य प्राणायाम के अभ्यास से आत्मा को बल मिलता है, आत्म विश्वास बढ़ता है तथा शरीर के अनेक द्विभुगो में यह अत्यंत ही लाभकारी होता है।
15. अन्तह कुंभक - सीधा बैठकर आंखें बंद करके दोनों नासिका से श्वास भरकर और यथाशक्ति जितनी देर श्वास रोक सकते हैं उतनी देर श्वास को अंदर भरकर रखेंगे।
लाभ - इस प्राणायाम को करने से हमारे शरीर के बहुत सारे रोग दूर हो जाते हैं तथा शरीर में जो हमारी आत्म शक्ति होती है, धीरे धीरे बढ़ने लगती है।
निष्कर्ष
दोस्तों ये थे योग, आसन और प्राणायाम में अंतर, इनके नित्य प्रतिदिन अभ्यास करने से शरीर के समस्त रोगो का विकार होता है तथा शरीर निरोगी बन जाता है। अगर हम इनका नित्य प्रतिदिन अभ्यास करें तो हमारी प्राणशक्ति में निरंतरता ला सकते हैं, उसमें अनुसासन ला सकते हैं। क्योंकि हमारे चित्त में भी विकार तभी उत्पन्न होते हैं। जब हमारे श्वास की लय गड़बड़ होती है। अगर हम अपनी श्वास की लय ठीक कर लें तो हम अपने जीवन के समस्त विकारों को नष्ट कर देते हैं। इसलिए हमें नित्य प्रतिदिन प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।