सुर्य नमस्कार क्या है
अगर आध्यात्मिक दृष्टि से हम देखें तो इस अभ्यास में मंत्रों के द्वारा और शारीरिक क्रियाओं के द्वारा हम भगवान सुर्य देव की आराधना करते हैं, वंदना करते हैं। युगो युगों से सुर्य देव अपने प्रकाश से ,अपने कीरणो से समस्त जीव जंतुओं का पालन पोषण, कल्याण व उद्धार करते आ रहे हैं और आने वाले युगों युगों तक करते रहेंगे। अपने मन में कृतघ्नता का भाव करते हुए स्वयं को हम भगवान सुर्य देव कै चरणों में समर्पित करते हैं, उनके प्रति धन्यवाद का भाव प्रकट करते हैं। अगर शारीरिक दृष्टि से इस अभ्यास को देखा जाए तो यह अभ्यास सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए एक अकेला ही अभ्यास पर्याप्त है।
दैनिक दिनचर्या में हम जो भी कार्य करते हैं उसमें लगभग 20 से 40 % तक हमारे शरीर की मांसपेशिया ही कार्य कर पाती है। परंतु सुर्य नमस्कार के अभ्यास में 90 से लेकर 95% तक मांसपेशियां क्रीयाशील और सक्रिय बन जाती है। इसकै अभ्यास सम्पूर्ण शरीर में एक नई उर्जा का संचालन होता है। जिसके परिणामस्वरूप सभी अंग सहज रूप से कार्य कर पाते हैं।
सुर्य नमस्कार कैसे करें
सुर्य नमस्कार का अभ्यास विशेष रूप से सुबह सुर्योदय के समय पुर्व दिशा की ओर मुख करके किया जाता है। क्योंकि इस अभ्यास को हम केवल शारीरिक व्यायाम ना मानकर आध्यात्मिक रूप से आराधना और साधना के रूप में करते हैं जिससे सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है जो हम अध्यात्म के क्षेत्र में सकारात्मक की ओर, सात्विकता की ओर लेकर जाती है।
सबसे पहले अपने स्थान पर दोनों पैरों को मिलाकर सीधे खड़े हो जाएंगे। पीठ, गर्दन और कंधे सीधे, दोनों हाथ जंघाओं के अगल बगल, कोहनियों सीधी, कुछ एक लम्बी गहरी सांस भरें, और मन में इस विचार को कि बार दोहराएंगे " अब मैं सुर्य नमस्कार का अभ्यास करने जा रहा हूं " । कुछ एक लम्बी गहरी सांस भरते रहेंगे।
1. प्रणाम आसन - इस आसन में सांस को भरते हुए साइड से दोनों हाथ को ऊपर ले जाएंगे, उपर की ओर खिंचेंगे। सांस बाहर छोड़ते हुए दोनों हाथों को निचे ले आएंगे। हथेलिया परस्पर मिली हुई, हथेलियों को वक्षस्थल के सामने रखेंगे और यहां पर " ॐ मित्राए नमः " मंत्र का उच्चारण करेंगे।
2. हस्त उत्तानासन - हस्त उत्तानासन का अर्थ दोनों हाथों को उपर की ओर खिंचना। इस आसन में लम्बा सांस भरते हुए कोहनियों को सीधा करते हुए पहले उपर की ओर खिंचेंगे। अब वक्षस्थल से ( छाती वाले क्षेत्र से ) शरीर को सांस भरते हुए पिछे की ओर लेकर जाएंगे। इस आसन में सारा खिंचाव नाभी, जाती, गला, हुड्डी, कंधे, भुजाएं, कोहनिया और हाथो पर पुरा खिंचाव उत्पन्न होंगा। यहां पर " ॐ रवये नमः " मंत्र का उच्चारण करेंगे।
3. पाद हस्तासन - पाद का अर्थ पैर, हस्त का अर्थ हाथ। इस आसन में हाथ और पांव को स्पर्श कराएंगे। श्वास को बाहर छोड़ते हुए, कोहनिया सीधी रखते हुए धीरे धीरे सांमने से शरीर को खिंचते हुए आंगे लेकर जाएंगे। सांस बाहर छोड़ते रहेंगे। पेट को ( नाभी को ) अन्दर की ओर खिंचते रहेंगे। अब जितनी देर आसन में रुके रहेंगे, सांस की गति सामान्य रूप से चलती रहेंगी। जितना सहज रूप से आगे की ओर झुक पाएं उतना आगे झुकेंगे। किसी भी प्रकार का खिंचाव या झटका शरीर में उत्पन्न नहीं करेंगे।
इस आसन में सारा खिंचाव पिंडलियों पर, जंघाओं के पिछले हिस्से पर, नितम्ब पे, पिट पे, कमर पे , कंधो पे , गले के गर्दन के पीछले वाले हिस्से पर, भुजाओं पे, कोहनियों पे रहेंगा। इस आसन में " ॐ सुर्याय नमः " मंत्र का उच्चारण करेंगे।
4. अश्व संचालनासन - अश्व का अर्थ घोड़ा , संचालन का अर्थ गति करना, चलना या दौड़ना। इस आसन में सांस भरते हुए पुरे फेफड़े फुलाते हुए अपने दाएं पैर को पिछे लेकर जाएंगे। बाएं घुटने को मोड़ेंगे। आगे वाले पैर के अगल बगल दोनों हाथ रखेंगे हथेलियों को या उंगलियों को किसी को भी जमी पर रखा जा सकता है। दाएं पैर का पीछे वाला घुटना सीधा रहेंगा । सारा खिंचाव नाभी पर , पेट पर, वक्षस्थल पर, गले पर, गर्दन को उपर की ओर रखेंगे, उपर आसमान की ओर देखेंगे। कोहनिया सीधी रहेंगी। सांसों की गति सामान्य रूप से चलेंगी। यहां पर "ॐ भानवे नमः" मंत्र का उच्चारण करेंगे।
5. पर्वतासन - शरीर की आकृति पर्वत की भांति बन जाती है। अपने बाएं पैर को उठाकर पिछे लेकर जाए। दाएं पैर के बगल में रख देंगे। पुरा शरीर दोनों हाथों पर और दोनों पैरों के पर घुटने सीधे रखेंगे, एड़ियों को जमीन को ओर खिचेंगे। गर्दन को अन्दर की ओर खिंचेंगे, माथे को घुटने की ओर खिंचेंगे। शरीर का सारा भार हथेलियों और पैरों के उपर, सारा खिंचाव पिंडलियों पर, जंघाओं पर, घुटने के पिछे वाले हिस्से पर, नितम्ब पे, पिठ, कमर, कंधो पे, भुजाओं पे, हथेलियों पे, कोहनियों पे और गले के पिछे गर्दन वाले हिस्से पर। सांसौ की गति सामान्य रूप से चलती रहेंगी। जब पिछे जाएंगे तो सांस छोड़ते हुए पिछे जाएंगे। यह पर " ॐ खगाय नमः " मंत्र का उच्चारण करेंगे।
6. अष्टांग नमस्कार - इस आसन में शरीर के आठ अंग ज़मीन पर लगाएंगे। दो हाथ, दो पैर, दो घुटने, जानती और ठुड्ढी । इस समय पर्वत आसन में दो हाथ और दो पैर चार अंग ज़मीन पे लगे हुए हैं। दोनों घुटनों को ,छाती को और ठुड्ढी को एक साथ जमीन पर रखने का प्रयास करेंगे। किसी कारण वश एक साथ ना रख पाए तो पहले घुटने, जाती फिर ठुड्ढी को जमीन पे स्पर्श कराएंगे। बिच में से पेट वाला हिस्सा जमीन को स्पर्श नहीं करेंगा। इस आसन में पंजों को खड़ा रखेंगे, उंगलियों को सीधा रखेंगे, उंगलिया जमीन को स्पर्श करेंगी। सांसों की गति अभ्यास में जाते समय सामान्य रहेंगी। ना सांस भरेंगे, ना छोडैंगे, सामान्य गति के साथ सांस - प्रसांस की क्रिया चलेंगी। यहा पर " ॐ पुषणे नमः " मंत्र का उच्चारण करेंगे।
7. भुजंगासन - भुजंग का अर्थ सांप। इस आसन में शरीर की आकृति सर्प या सांप की भांति बन जाती है। दोनों पंजों को बाहर करेंगे , सांस भरते हुए नाभी वाले क्षेत्र से शरीर को उपर उठाएंगे, कोहनियां सीधी, गर्दन उपर, ठुड्ढी उपर की ओर खिंचेंगे, आसमान की ओर देखेंगे। रिढ की हड्डी पुरी तरह से मुड़ी हुई, सारा दबाव पीठ के निचले हिस्से पर, सारा खिंचाव जंघाओं पर उत्पन्न हो, नाभी, पुरा पेट, जाती, ठुड्ढी, गला खिचा हुआ। कोहनियां बिल्कुल सीधी रहेंगी। सांस भरते हुए इस आसन में उपर की ओर शरीर को उठाएंगे। यह पर " ॐ हिरण्यगर्भाय नमः" मंत्र का उच्चारण करेंगे।
8. पर्वतासन - अब यहां से पिछे कीये हुए 5 आसनों को ही दोहराया जाएगा। पंजों को खड़ा करेंगे। शरीर को पर्वतासन में ले आएंगे। सांस को बाहर छौडते हुए एड़ियों को जमीन की ओर खिंचेंगे। सांसों की गति उसी प्रकार से आने वाले आसनों में निर्धारित या नियंत्रित करेंगे। अब सभी आसन आने वाले 5 आसन पहले वाले आसन ही दोहराएं जाएंगे। केवल मंत्र बदल जाएंगे। अब यहां पर " ॐ मारीचये नमः" मंत्र का उच्चारण करेंगे।
9. अश्व संचालनासन - सांस को भरते हुए बाएं पैर को आगे लेकर आएंगे। दोनों हाथों की बिच में गति के साथ एक ही बार में प्रयास करेंगे आगे पैर आ जाए। पिछे वाला घुटना सीधा, आगे वाले घुटने को पुरुष तरह से मोड़ेंगे, गर्दन उपर। यह पर " ॐ आदित्याय नमः" मंत्र का उच्चारण करेंगे।
10. पाद हस्तासन - दाएं पैर को आगे लेकर आएंगे बाएं पैर के पास में, घुटने सीधे, शरीर को आगे की ओर झुकाएंगे। यहां पर मंत्र का उच्चारण सांस को बाहर छोड़ते हुए आसन में आएंगे। यहां पर " ॐ सवित्रे नमः" मंत्र का उच्चारण करेंगे।
11. हस्त उत्तानासन - सांस भरते हुए, कोहनिया सीधी रखते हुए शरीर को सामने से पीछे की ओर खिंचेंगे और पीछे की ओर वक्षस्थल से मोड़कर शरीर को सांस भरते हुए मौडेंगे। यहां पर " ॐ अर्काय नमः" मंत्र का उच्चारण करेंगे।
12. प्रणाम आसन - सांस बाहर छोड़ते हुए बगल से दोनों हाथों को गोलाकार घुमाकर वक्षस्थल के सामने लेकर आएंगे। दोनों हथेलियों को परस्पर मिलाएंगे यहां पर " ॐ भास्कराय नमः" मंत्र का उच्चारण करेंगे।
सुर्य नमस्कार करने से क्या होता है
सुर्य नमस्कार सभी योगासन में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। आप चाहें कोई भी व्यायाम करें या ना करें पर अगर आप दिन में एक बार सुर्य नमस्कार कर लेते हैं तो समझिए की आपके सारे लोग एक एक कर खत्म हो जाएंगे । सुर्य नमस्कार करने के अनगिनत फायदे है।
सुर्य नमस्कार करने से मोटापा दूर होता है। मन की एकाग्रता बढ़ती है। शरीर में लचीलापन आता है। पेट ठीक रहता है। सुन्दरता में निखार आता है। शरीर की खराब मुद्रा भी ठीक हो जाती है। सुर्य नमस्कार करते वक्त 12 आसन किए जाते हैं। जिससे शरीर के हर अंग पर असर पड़ता है।
सुर्य नमस्कार कीतना देर करना चाहिए
प्रत्येक आसन में 5 से लेकर 20 सेकंड तक शरीर को स्थिर रखा जा सकता है। परंतु जीन लोगों ने अभी अभी अभ्यास आरंभ किया है वह 2 सेकंड से इस समय को धीरे धीरे बढ़ाए।
जिस भी आसन में जितने भी देर रूके रहे, उतने देर तक सांसों की गति सामान्य रूप से चलते रहेंगी
नासिका के द्वारा जितने भी देर आसन में रहेंगे उतने देर तक सांस को आराम से भरेंगे और बाहर छोड़ते रहेंगे। केवल आसन मे जाते समय और आसन को बदलते समय सांसों को भरना और छोड़ना होगा।
सुर्य नमस्कार के फायदे
1. सुर्य नमस्कार करने से शरीर में अकड़न खत्म हो जाती है। शरीर में लचक पैदा हो जाती है। ये बहुत अच्छा व्यायाम है
2. सुर्य नमस्कार करने से शरीर के हर भाग पर जोर पड़ता है। जिससे वहां की चर्बी धीरे धीरे निकलने लगती है। अगर आप मोटे है तो सुर्य नमस्कार आपके लिए बहुत फायदेमंद होंगा। कि लोग झुककर चलते हैं जिससे उनके शरीर की पुरी बनावट खराब दिखती है। लेकिन सुर्य नमस्कार करने से इस समस्या में सुधार होने लगता है। शरीर की बनावट में सुधार होता है।
3. सुर्य नमस्कार करने से पाचनतंत्र में सुधार होता है। इससे खाना पचाने वाला रस ज्यादा मात्रा में निकलता है और पेट में छुपी गैस बाहर निकल जाती है जिससे पेट हमेशा हल्का बना रहता है। इसको करने से कब्ज़, बवासीर और गैस जैसे रोग ठीक हो जाते हैं।
4. सुरज के सामने सुर्य नमस्कार करने से शरीर में विटामिन डी जाता है। जिससे विटामिन डी हड्डियों द्वारा सोख ली जाती है। जिससे हड्डियां बुढ़ापे में भी मजबूत रहती है और हड्डियों के रोग नहीं होते।
5. कइ महिलाओं में अनियमित पिरीयड होते हैं, जो की सुर्य नमस्कार नियंत्रण करने से ठीक हो जाती है। ये हार्मोन को संतुलित करता है जिससे पिरीयड नियमित हो जाते हैं।
6. सुर्य नमस्कार करने से आपके शरीर में रक्त प्रवाह की प्रक्रिया तेज होती है जो कि तेजी से मोटापा घटाने के साथ साथ हाइ ब्लडप्रेशर भी नियंत्रित करता है।
7. सुर्य नमस्कार के समय आप सांस तेजी से खिंचते और छोड़ते हैं जिससे हवा आपके फेफड़ों तक और आॕक्सीजन खुन तक पहुंचती है। इससे कार्बन डाइऑक्साइड और बाकी जहरीली गैस निकल जाती है और आपकी बाॕडी साफ हो जाती है।
8. 5 - 10 मिनिट सुर्य नमस्कार करने पर आपके शरीर में पानी की मात्रा संतुलित रहती है। इसके अलावा इससे शरीर के अनावश्यक तत्व बाहर निकल जाते हैं।
9. तनाव के स्तर को कम करता है। सुर्य नमस्कार से हमारे शरीर में होने वाली बेचैनी और तनाव बहुत हद तक दूर होती है। यदि आप प्रतिदिन सुर्य नमस्कार करते हैं तो आपका तनाव बहुत हद तक दूर हो सकता है।
10. रिढ की हड्डी को मिलती हैं मजबुती - सुर्य नमस्कार से निचले भाग से लेकर उपरी भाग तक पुरी रिढ की हड्डी का बढ़िया व्यायाम होता है। इससे आपकी रिढ की हड्डी को लचीलापन और मजबूती मिलती है।
सावधानियां
एक सामान्य व्यक्ति को दो से पांच चक्र पर्याप्त है। जिनका वजन अधिक बढ़ा हुआ है, उनके लिए चार से छह चक्रों का अभ्यास पर्याप्त है। जो लोग कीशोर अवस्था में है, सुन्दर, बलवान और शक्तीशाली शरीर की कल्पना करते हैं उनके लिए सात से दस चक्रों का अभ्यास पर्याप्त है। जो लोग पहलवानी करते हैं उनके लिए दस चक्र, बिस चक्र, पचास चक्र और सौ चक्रों तक भी अभ्यास कराया जाता है परंतु प्रशिक्षक की निगरानी और अनुमति के बाद । उत्साह में आकर बहुत ज्यादा अभ्यास ना बढाए। कि लोग उत्साह में आकर पहले ही दिन से अभ्यास बहुत अधिक बढ़ा देतै है जिसकी हानियां कुछ दिन के बाद देखने को मिलती है
सावधानियो के रूप में इतना ध्यान रखें । दस्त होने पर, डायरीया, पीठ से संबंधित कोई गंभीर रोग होने पर, ह्रदय से संबंधित कोई गंभीर रोग होने पर, हर्णिया, गर्भावस्था के दौरान, शरीर में कमजोरी होने पर, मासीक चक्र के दौरान इस अभ्यास को ना करें।
सुर्य नमस्कार के नुक़सान
अगर आप सुर्य नमस्कार अपनी शारीरिक क्षमता से ज्यादा करते हैं तो आपको उच्च रक्तचाप हो सकता है। हो सकता है आपकी हार्ट बीट अनियमित हो जाए। इसलिए जिनको पहले से उच्च रक्तचाप है या जिनको ह्रदय कुछ समस्या है उनको सुर्य नमस्कार करने से मना किया जाता है।
सुर्य नमस्कार अगर शारीरिक क्षमता से अधिक किया जाए तो आपको लुज मोशन हो सकता है।
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं कि सुर्य नमस्कार क्या है, कैसे करे, ये आपके समझ में आ गया होगा और आप इससे लाभ उठा सकेंगे। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।