मानसिक शांति किसे नहीं चाहिए। लेकिन लोग लाख कोशिश के बाद भी मन कि शांति को अनूभव नहीं कर पाते। वह चाहे कितना भी प्रयास करले मन के विचार नहीं रुकते। और मन के विचार न रखने से मन कभी शांत नहीं होता। शायद ऐसे ही मानसिक उथल पुथल का अनुभव हमारे ऋषियों ने भी किया होंगा। तभी उन्होंने न जाने कितने कठोर साधनाएं करने के पश्चात इतने सारे ध्यान की विधियां तैयार कर ली। जिसके माध्यम से आज भी इंसान अपने मन को शांत करने कि कोशिश करता है। ऐसे ही एक ध्यान विधि है जिसे हम भावातीत ध्यान कहते हैं।
भावातीत ( transdental meditation )ध्यान क्या है
भावातीत दो शब्दो से मिलकर बना है। पहला भाव और दुसरा अतीत। अब अगर देखा जाए तो भाव हमारे विचारों से बनता है। तो हम यहां भाव का अर्थ विचार समझ सकते हैं। क्योंकि विचार ही ध्यान में सबसे बड़े बाधा होते हैं। और दुसरा शब्द है अतीत। अतीत का अर्थ होता है, परे। यानी किसी चीज से परे चले जाना या उससे आगे बढ़ जाना। भावातीत का अर्थ हुआ विचारों से दुर हो जाना।
इसका सिधा सा अर्थ हुआ भावातीत ध्यान विधि विचारों से दूर जाने की कला है। भावों से दूर जाने कुछ विज्ञा है भावातीत ध्यान। भावातीत ध्यान मंत्र योग और जप योग के समान है। जिसमें हमें ध्यान के लिए मंत्र की आवश्यकता होती है। तभी तो शास्त्रों में कहा गया है " मनः त्रायते इति मंत्राः" यानी जो मन को ताड़ दे या जो मन को मुक्त कर दे या जो मनुष्य को मन की उथल पुथल को आजाद कर दे, वहीं मंत्र है।
इस मंत्र की दिक्षा केवल गुरु द्वारा दी जाती है। गुरु द्वारा दी गई इस मंत्र का कोई अर्थ भी हो सकता है। और यह मंत्र अर्थहीन भी हो सकता है। क्योंकि कहा जाता है कि ये मंत्र इतना मंत्र इतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना उस मंत्र द्वारा उत्पन्न हुई उर्जा या कंपन महत्वपूर्ण है। इसलिए गुरु द्वारा ऐसा मंच दिया जाता है जिसके बार बार उच्चारण से साधक का मन और शरीर स्वस्थ होने लगता है। विचारों से शुद्धि होने लगती है। साधक का मन विचारो से मुक्त होता है और वह निर्वीघ्न ध्यान की उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर लेता है।
महर्षि महेश योगी कहते हैं जिस प्रकार पानी में उठता बुलबुला एक निश्चित उंचाई पर जाने के फट जाता है। और पानी में मिल जाता है। इस प्रकार हमारे विचार एक के बाद एक हमारे चेतना में उठते हैं। और अवचेतन मन से होते हुए सचेत मन को चले जाते हैं। और कुछ देर बाद समाप्त हो जाते हैं। फिर कोई दूसरा विचार जन्म लेता है। वह भी अवचेतन मन से होते हुए सचेत मन में प्रवेश करता है। और समय बाद समाप्त हो जाता है। यह प्रक्रिया ऐसी ही चलती रहती है। पर इस पर हम कभी ध्यान नहीं देते हैं। इसलिए किसी मंत्र को हम बार बार दोहराते हैं तो यह हमारे चेतना के साथ लयबद्ध हो जाता है। और उसी में विलीन हो जाता है। जिससे हम अपने मन कि गहराईयों में उतर जाते हैं। और विचार मुक्त चैतन्य अवस्था का अनुभव करते हैं। यह पुर्ण शांति और आनंद की अवस्था होती है। इसमें हमारे विचार शुन्य हो जाते हैं। लेकिन हमारी चैतन्या पुर्ण रुफ से जाग्रत होती है। और इस ब्रह्माण्ड की उर्जा से एकदम हो जाती है।
महर्षि महेश योगी जी का दावा है कि प्रत्येक मनुष्य की स्नायु मंडल को एक विशेष शब्द के स्वर कंपन से प्रभावित किया जा सकता है। उसी शब्द विशेष को ठीक से समझकर साधक को दिक्षा देना गुरु का काम है। साधक इस मंत्र को बिना किसी अन्य प्रयास के मानसिक रूप से दोहराता रहता है और इसे किसी अन्य प्रकार का नियन्त्रण या ध्यान प्रक्रिया से मुक्त रहने के लिए कहा जता है। इस तरह मन सामान्य रूप से आनंद चेतना की ओर जाने लगता है। अंततः साधक उस आनंद से वशीभूत हो जाता है। इसमे भी तब तक ब्रम्ह अनुभुती नहीं हो पाती जब तक इंन्द्रिया अनुभव करती है। मगर जब अनुभव करने वाला ही अपने अस्तित्व को भुल जाता है। जब चेतना की उस अवस्था में ब्रम्ह अनुभुती होती है। चेतना की इस भावातीत अवस्था की प्राप्ति केवल मंत्रों की मानसिक आवृत्ति से ही प्राप्त की जा सकती है। इसमें चेतना की की कई अस्त्रो की चर्चा की जाती है।
महर्षि महेश योगी व्दारा वर्णित भावातीत ध्यान की अवस्थाएं
महेश यो गी जी ने चेतना की सांत अवस्थाओ का वर्णन किया है। जिनमें से पहली तिन अवस्थाएं होती है। जो हम अपने जीवन में प्रतिदिन अनुभव करते हैं। ये अवस्थाए है -
1. जागृत की अवस्था The state of walking consciousness - जिसमें हम जागे हुए होते हैं। और अपने रोजमर्रा के कार्यों को कर रहे होते हैं।
2. गहरी निद्रा की अवस्था deep sleep
3. स्वप्न की अवस्था Dreaming - इस अवस्था में हम गहरी नींद में स्वप्न देखते हैं।
4. Transdental consciousness - इन तिन अवस्था के बाद जो अवस्था आती है वही है ट्रान्सेंडैंटल काॕन्ससनेस यानी भावातीत की अवस्था इस अवस्था में मनुष्य चिंता, भय , दुःख, अवसाद और हर प्रकार की नकारात्मक चीज से दूर हो जाता है। वह पूर्ण शांति और आनंदमय की स्थिति में प्रवेश कर जाता है। इस अवस्था के बाद आता है।
5. ब्रह्माण्डीय अवस्था Cosmic consciousness
6. God consciousness - इस में हमें भगवान की अनुभुति होती है।
7. एकाकार की अवस्था Unity consciousness - जब सब कुछ एक हो जाता है। यानी इस अवस्था में हमारी चेतना इतनी विस्तारित हो जाती है कि है सबकुछ एक सा महसूस होता है। कुछ भी भिन्न नहीं है, हमें ऐसा महसूस होने लगता है।
लेकिन इन सब अवस्थाओ में जो सबसे महत्वपूर्ण अवस्था है वह है भावातीत अवस्था। क्योंकि यह वही अवस्था होती है जब इंसान छोटे से तनाव रुपी मन को ब्रम्हांड उर्जा रुपी सागर के साथ एक करना शुरू कर देता है।
भावातीत ध्यान कैसे करते हैं
भावातीत ध्यान की खोज महेश योगी ने की थी। यह बहुत ही सरल ध्यान विधि है। ध्यान में हमें ज्यादा प्रयास करने की जरूरत नहीं पडती। क्योंकि यह ध्यान अपने आप ही होने लगता है।इसमें ध्यान को किसी ध्वनि, मंत्र, सांस लेने कि ताल आदि पर केन्द्रित किया जाता है। यह ध्यान हमारे मन को बहुत शांत और शरीर को बहुत हल्का कर देता है।
भावातीत ध्यान के क्या लाभ है
1. भावातीत ध्यान का 20 मिनट का अभ्यास ही आपको असिम शांति प्रदान करता है। आप इस असिम आनंद से परीपुर्ण हो जाते है।
2. भावातीत ध्यान सिर्फ आपको मानसिक शांति ही नहीं देता। इस ध्यान को करने से अवसाद वह चिंता से बस सकते हैं।
3. यह ध्यान मन की शांति के लिए बहुत फायदेमंद है।
इस ध्यान को करने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित किया जा सकता है।
4. हृदय के रोगियों के लिए यह ध्यान बहुत फायदेमंद है।
यह हमारे शरीर में ऊर्जा उत्पन्न करता है। इससे हम पुरे दीन एनर्जी से भरे रहते हैं।
5. भावातीत ध्यान दिमाग की सोचने की शक्ति को बढ़ाता है।
अनिन्द्रा से छुटकारा दिलाता है।
6. भावातीत ध्यान करने से हमारा मन, शरीर और दिमाग मजबूत होता है।
7. भावातीत ध्यान करने से हम अपने छंह इंन्द्रियो पर नियंत्रण पा सकते हैं।
भावातीत ध्यान की क्या विशेषता है
प्राचीन काल में ध्यान को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता था। हमारे ऋषि मुनि घंटों तक ध्यान करते थे। और उनके ध्यान लगाने की वजह से उनमे बहुत सी शक्तीया थी। मेडिटेशन करने के बहुत सारी तकनीक है। इनमें भावातीत ध्यान ( ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन) एक ध्यान तकनीक है। यह अपने आपमे एक कमाल की तकनीक है। इस ध्यान आपको ज्यादा कोशिश करने की जरूरत नहीं होती है। क्योंकि यह ध्यान आप ही होने लगता है। इस ध्यान को किसी ध्वनि, मंत्र, ताल आदि पर केन्द्रित किया जाता है। यह ध्यान हमारे मन को बहुत ही शांत और शरीर को हल्का कर देता है।
इस ज्ञान की लोकप्रियता प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।इसे वैज्ञानिको के व्दारा भी सर्टिफाइड किया जा चुका है। इसका इतना असर है कि विदेशों में भी इस ध्यान विधि को सिखाने के लिए बडे बड़े इन्स्टीट्यूट खुल चुके हैं। इसमें बहुत सारे लोग इस तकनीक को सीखने आते हैं। यहां एक्सपर्ट लोग इस ध्यान की तकनीक को सीखाते आते हैं।
इसकी सबसे बड़ी खास बात यह है कि इसमें हमें इसी तरह की ज्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ती। क्योंकि यह मेडिटेशन बहुत ही आसान है। इसमें ध्यान लगाने के लिए किसी प्रकार की फोकश की जरूरत नहीं पडती। इसमें हमें अपने मन पर भी कन्ट्रोल नहीं रखना पड़ता और यही इसकी सबसे विशेषता है। क्योंकि मन पर हर किसी का कन्ट्रोल नहीं होता। इसमें किसी वस्तु पर भी ध्यान लगाना नहीं पड़ता। यह ध्यान मन की शांति और अवसाद से निपटने के लिए किया जाता है। इसे वैज्ञानिक लोगों ने भी सर्टिफाइड किया है की अगर आप ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन करते हैं तो आपका चिंता और तनाव खत्म हो जाएगा। जिससे आप आंतरिक शांति का अनुभव करते हैं। यह एक ऐसा तरीका है जिसे अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन ने नोट किया है कि यह ध्यान न केवल ब्लडप्रेशर को काबू में करता है बल्कि मृत्यु, दिल का दौरा और स्ट्रोक के होने के संभावनाओ को कम कर देता है।
निष्कर्ष
आपको फायदा तभी मिलेगा जब आप किसी भी ध्यान को संयम से करते हैं। चाहे वह कोई भी ध्यान पद्धती हों। जब तक आपको उस ध्यान पद्धति को करने की प्रबल इच्छा नहीं होंती तब तक आप किसी भी ध्यान पद्धति में सफल नहीं हो सकते। और प्रत्येक ध्यान पद्धति हमें मजबूत और अपने विचारों पर नियंत्रण करने के लिए खोजी गई है।
आशा करता हु कि आपको ये पोस्ट अच्छी लगी होंगी और भावातीत ध्यान ( ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन ) क्या है और भावातीत ध्यान ( ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन ) कैसे करे आपको ये समझ में आ गया होगा।