वैसे तो मेडिटेशन की की सारी विधिया है। कुछ अत्यंत कठिन है और कुछ अत्यंत सरल लेकिन अगर आप ध्यान करना शुरू कर रहे हैं तो ये पोस्ट आपके लिए मददगार होगी।
3 प्रकार के ध्यान क्या है
महर्षि घेरंड व्दारा सप्तसाधन के अन्तर्गत षष्ठम साधन का वर्णन किया गया है जो ध्यान है। यह प्रत्यक्षता ( ग्रहण करने का स्वभाव ) का एक साधन है।घे रण्ड संहिता के अनुसार तिन प्रकार के ध्यान का वर्णन किया गया है।
1. स्थुल ध्यान 2. ज्योर्ति ध्यान 3. सुक्ष्म ध्यान
1. स्थुल ध्यान - महर्षि घेरंड ने स्थुल ध्यान की दो विधियां बतलाई है। पहली विधि में अनाहत चक्र पर ध्यान किया जाता है। और दुसरी विधि में सहस्त्रार चक्र पर ध्यान किया जाता है। पहली विधि को दौरान अपने हृदय प्रदेश पर ( अनाहत चक्र) पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। हृदय में एक विशाल सागर की कल्पना की जाती है जो अमृत से भरा है। सागर के बिच एक व्दिप है जो बहुमुल्य रत्नों से भरा है और वहां की बालु मिट्टी रक्तचुर्ण युक्त है।
इसके चारों ओर फुलों से लदे वृक्ष है। वहां चमेली, चंपा, केशर, मालती आदि सुगन्धित पुष्पों से लदे वृक्षो की कतारे है। इस व्दिप के मध्य कल्पतरु नामक वृक्ष है जिसकी चार शाखाएं चार वेदों को दर्शाती हैं। यह वृक्ष सुंदर फल और फुलों से लदा है। यहां कोयल की मधुर गुंजन और भंवरे का गुंजन सुनाई दे रहा है। यहां एक चबूतरा है, जिसके मध्य में रत्नों से जड़ित एक सिंहासन है। इस सिंहासन पर इष्टदेव विराजमान हैं। इष्टदेव के शरीर पर जो वस्तुएं हैं जैसे की - वस्त्र, माला, तिलक आदि पर ध्यान एकाग्र किया जाता है।
दुसरी विधि में सहस्त्रार चक्र पर ध्यान किया जाता है। सहस्त्रार प्रदेश में एक विशाल कमल है जिसकी एक हजार पंखुड़ियां है। ये पंखुड़ियां सफेद और चमकिली है। इसके बारह बीज मंत्र से, जो इनकी शोभा बढ़ाते हैं। ये बीज मंत्र है - है, से, क्ष, म, ल, वह, र, में, हैं, से, और फ्रें। कमल के बीच में रंगयुक्त तीन रेखाएं अ, के एवं था है, जोकि परस्पर मिलकर एक त्रिभुज के कोणों की सांकेतिक ध्वनि है। इस त्रिभुज के मध्य में प्रणव मंत्र ॐ है।
ध्यान के दौरान अनुभव किया जाता है कि, विशाल कमल के मध्य में एक हंसो का जोड़ा है, छोटी गुरु चरणों का द्योतक है।श्वेत कमल में बैठे गुरु के दो हाथ एवं तीन नेत्र हैं। उन्होंने श्वेत वस्त्र और श्वेत फुलमाला धारण की हुई है और उनके बारी तरफ लाल वस्त्रों को धारण किए एक शक्ति है। इस प्रकार स्थुल ध्यान में गुरु का ध्यान करने से सिद्धि प्राप्ति होती है।
2. ज्योर्ति ध्यान - ज्योर्ति ध्यान में तेजोमय ज्योतिरुप ब्रम्ह का चिंतन किया जाता है। मुलाधार चक्र में सर्प के समान कुंडलिनी शक्ति विद्यमान होती है। यही पर दिपक की लौ के समान जिवात्मा होती है। महर्षि घेरंड के अनुसार आत्मा के दो रुप है, इसलिए न केवल मुलाधर बल्कि आज्ञा चक्र ( भृकुटी के मध्य ) में भी आत्मा विद्यमान होती है। अतः इन स्थानों पर आत्मारुपी ब्रह्म का ध्यान करना ही ज्योर्ति ध्यान कहलाता है।
3. सुक्ष्म ध्यान - सुक्ष्म ध्यान का अर्थ है - वास्तविक ध्यान। इस ध्यान का अधिक विस्तार से वर्णन नहीं किया गया है। इस ध्यान के सिध्द हो जाने पर साधक को आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो जाता है। यह ध्यान अत्यंत गोपनीय एवं देवताओं के लिए भी दुर्लभ माना जाता है। शांभवी मुद्रा का अभ्यास करते हुए साधक को कुंडलिनी शक्ति का ध्यान करना चाहिए। महर्षि घेरंड के अनुसार साधक का सौभाग्य रहा तो कुण्डलिनी शक्ति का जागरण हो जाता है और यह नेत्र-रन्ध्रों से होते हुए राजमार्ग स्थान पर विचरण करती है।
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निष्कर्ष
ध्यान या मेडिटेशन के समय को अभ्यास से तुम धीरे धीरे बुड्ढा सकते हो। ये आदत एक दिन भी ना छुटे। ध्यान करने के लिए सर्वोत्तम समय सुबह की बेला में और शाम में सुर्यास्त का समय है। शुरुआत में मन एकाग्रता की वस्तु जैसे मंत्र या तस्वीर से इधर - उधर भटकता रहेगा, लेकिन इन छोटी छोटी असफलताओ पर ध्यान ना दो। बार बार अपने मन को अपने मंत्र, तस्वीर या रोशनी पर ले आओ और ध्यान करो तुम पाओगे कि थोड़े समय के लगातार अभ्यास से तुम्हारा मननही भटकेंगा, जैसा की वह पहले भटका करता था।
ध्यान तुम्हारे अन्दर एकाग्रता को बढ़ाता है। जिससे ना केवल तनाव से मुक्त हो पाते हैं बल्कि दैनिक जीवन में किसी भी कार्य को आसानी से कर पाते हैं। ध्यान हमारे स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है। तुम्हारे भीतर जीवनी शक्ति का संचार करता है और ज्ञान से ओतप्रोत करता है। इसलिए इसलिए अपने जीवन में ध्यान को अवश्य अपनाओ।
मुझे आशा है कि ध्यान के प्रकार के बारे में आपको जानकारी मिल गई होंगी। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे।