भारतीय परंपरा में प्रकृति में संक्रमण के काल को आत्म - परिवर्तन की अपार संभावनाओं को समेटे हुए देखा जाता है। एक दिन के भीतर तीन संक्रमण काल संध्या काल कहलाते हैं। पुर्णिमा और अमावस्या कहते जाने वाले चंन्द्रमा के बढ़ते और घटते चरणों के बीच संक्रमण सुर्य के उत्तरी और दक्षिणी भाग के बीच के परिवर्तन , जिन्हें उत्तरायण और दक्षिणायन कहा जाता है और ग्रह पर मौसमी बदलाव के बीच संक्रमण इन सभी में विशिष्ट उत्सव और संबंधित प्रथाए है जिनका उपयोग किया जा सकता है। ऐसे ही उत्सवों में से एक है नवरात्रि ।
जब नवरात्रि उत्सव कहते हैं तो आप शायद सितंबर के दौरान होने वाली दुर्गा पूजा उत्सवों के बारे में सोचते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वास्तव में साल भर में चार नवरात्रि मनाई जाती है। ये सभी मौसमी संक्रमण के किसी न किसी रूप का उत्सव है और मानव कल्याण के लिए उनका उपयोग करनेकी प्रक्रिया है। चैत्र नवरात्र गर्मियों के मौसम की शुरुआत करता है और प्रकृति एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन से गुजरती है।
साल 2023 में चैत्र नवरात्रि कब से शुरू है
वर्ष 2023 में चैत्र नवरात्रि 22 मार्च , बुधवार को शुरू होंगी और 31 मार्च , शुक्रवार को समाप्त होंगी।
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त केवल एक घंटा दस मिनिट का लहेंगा। घटस्थापना का शुभ मुहूर्त 22 मार्च की सुबह 6 बजकर 29 मिनिट से 7 बजकर 39 मिनिट तक रहेंगा।
चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है
हिन्दू धर्म में पुरे नवरात्रों को पुरे धुमधाम और पुजा अर्चना को साथ उपवास रखके अच्छे से मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि को लोग इसलिए खास मानते हैं क्योंकि हिंदु कैलेण्डर का यह पहला दिन होता है। लोग साल के पहले दिन से नववे दिन तक पुरे श्रद्धा से चैत्र नवरात्रि का पुजन करते हैं। नवरात्रि में मां दुर्गा की नौ रूपो की पुजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इन नौ दिनों के दौरान मां दुर्गा धरती पर रहती है। ऐसे में बिना सोचे समझे भी यदि किसी शुभ कार्य की शुरुआत की जाती है तो उस पर मां की कृपा जरूर बरसती है और वह कार्य सफल होता है।
ऐसी भी मान्यता है कि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा का जन्म हुआ था और मां दुर्गा के कहने पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू वर्ष शुरू होता है। नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रुप में जन्म लिया था और पृथ्वी की स्थापना की थी। और ऐसी भी मान्यता है कि भगवान विष्णु का सातवां अवतार भगवान श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्रि में ही हुआ था इसलिए धार्मिक दृष्टि से भी चैत्र नवरात्र का बहुत महत्व है।
ऐसा माना जाता है कि नवदुर्गा पुजन के ये नौ दिन बहुत शुभ होते इसलिए इन नौ दिनों के दौरान कोई भी शुभ कार्य बिना सोच विचार के कर लेना चाहिए , क्योंकि पुरी सृष्टि को अपनी माया से ढकने वाली आदि शक्ति इस समय पृथ्वी पर होती है।
चैत्र नवरात्र के पिछे की कथा
दस सिर वाले और शिव का आशीर्वाद हासिल करने वाले शिव भक्त रावण कि ताकत के बारे में सभी देवी देवता को ज्ञात था । इसलिए सीता को लंका से वापस लाने के लिए जमब श्रीराम रावण से युद्ध करने चले तो उन्हें देवताओं ने शक्ति कि पुजा करने और विजय श्री का आशीर्वाद लेने कि सलाह दी । भगवान श्रीराम ने ऐसा ही किया। भगवान राम ने मां को चढ़ाने के लिए 108 नीलकमल कि व्यवस्था की और पुजा शुरू कर दी। उधर रावण को जब यह ज्ञात हुआ कि श्रीराम जीत के लिए मां चंडी कि पुजा कर रहे हैं तो उसने भी मां कि पुजा शुरू कर दी।
रावण किसी भी हाल में अपनी हार नहीं चाहता था इसलिए उसने राम के 108 फुलों में से एक पुष्प चुरा लिया और अपने राज्य में चण्डी पाठ करने लगा। राम को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने कम पड़ रहे एक नीलकमल कि जगह अपनी एक आंख को समर्पित करने की सोच ली। क्योंकि राम को कमलनयन लौकंजलोचन भी कहा जाता है। इसलिए श्रीराम ने तुणीर से अपनी आंख निकालने लगे। तभी मां प्रकट हुई और उन्होंने भगवान राम की पुजा से खुश होकर उन्हें विजय श्री का वरदान दे दिया।
दुसरी ओर रावण भी जोर लगाकर चंडी का पाठ कर रहा था , तभी हनुमान जी ब्राह्मण का बालक रुप लेकर पुजा के स्थान पर पहुंच गए। ब्राह्मण जय देवी मुर्ति हरिणी श्लोक का पाठ कर रहे थे। लेकिन हनुमान जी ने उसका उच्चारण हरिणी की जगह करिणी कर दिया। इससे मां चंडी कुपित हो गई । उन्होंने रावण को श्राप दे दिया । दरअसल हरिणी का अर्थ होता है हरने वाली, करिणी का अर्थ होता है पीड़ा देने वाली। इसके राम ने रावण को परास्त कर दिया। इसलिए इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाते हैं।
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चैत्र नवरात्र का महत्व
चैत्र नवरात्र का बहुत महत्व है। सुर्य बारह राशियों का भ्रमण कर मेष राशि में प्रवेश करते है और सुर्य एवं मंगल की एक ही राशि में होने से गर्मी की शुरुआत होती है। माना जाता है कि आदि शक्ति माता चैत्र नवरात्र के दौरान पृथ्वी पर होती है और जो भक्त माता कि आराधना भक्ति पुर्वक करते हैं उनको मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि चैत्र नवरात्र के पहले दिन माता प्रकट हुई थीं और सृष्टि का निर्माण हुआ था।
चैत्र नवरात्र पु्जा विधि एवं कलश स्थापना
सबसे पहले जिस स्थान पर आप माता कि चौकी लगाए उस स्थान को आप अच्छे से गंगा जल से शुद्धिकरण कर लें। उसके बाद उस स्थान पर आटे से चौंक बनाए। उसके उपर माता कि चौकी स्थापित कर लें। चौकी को भी गंगा जल से शुद्ध कर लें । उसके बाद चौकी पर नया लाल वस्त्र बिछाएं। उस पर देवी मां की तस्वीर विराजित करे। तस्वीर को चावलो का आसन दे। अगर माता की मुर्ति है तो ऊसको भी चौकी पर विराजित कर चावलो का आसन दे।
उसके बाद माता की तस्वीर और मुर्ति पर चुनरी ओढ़े । इसके बाद गणपति जी कि मुर्ति को चौकी पर विराजित करें । अगर आपके पास गणपति जी की मुर्गी नहीं है तो सुपारी को गणपति जी का रुप मानकर चावल का आसन देकर विराजित कर सकते हैं। इसके बाद घटस्थापना करें। इसके लिए एक अलग से एक पटला लगाए। इसको माता के बाईं तरफ लगाए। उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। उस पर एक अष्टदल कमल बनाए। इसके बाद एक मिट्टी का पात्र ले । इस पर स्वास्तिक बनाएं और पात्र को थोड़ा सजा लें। इसमें थोड़े से अक्षत डालकर इसमें मिट्टी डाले। इस पात्र में माता का नाम लेकर जौं बोए। इस पर थोड़ा पानी डालें।
इसके बाद कलश की स्थापना करें। कलश के लिए आप पितल , तांबे या मिट्टी का कलश ले सकते हैं। कलश पर रोली और कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद कलश के कंठ पर तीन फेरे कलावा बांध लें और कलश को जो बोए हुए पात्र में अच्छे से रख दें। इस कलश को अष्टदल कमल बनाए हुए पटले पर विराजित करें। कलश को रोली या कुमकुम से टिक लगाए। इस कलश में थोडा गंगा जल, हल्दी की गाठ, सुपारी, एक सिक्का , लौंग का जोड़ा , इलायची , एक पुष्प , थोड़ा सा गुलाब जल , कलश के मुख पर आम के पत्ते लगाए और इनको कुमकुम और चंदन से टिक दे।
इसके बाद एक नारियल लें । उस पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं । इस पर चुनरी या लाल कपड़े लपेट लें और कलावा बांद ले। इस नारियल को कलश पर रख दें। इस प्रकार कलश स्थापना हो चुकी है।
इसके बाद पुजन प्रारंभ करें। सबसे पहले भगवान गणेश का पुजन करें। भगवान गणेश को रोली , अक्षत , कलावा , हल्दी का गाठ , सुपारी , दुर्वा , पुष्प अर्पित करें । इसके बाद माता का पुजन करें। माता को रोली लगाए, अक्षत अर्पित करें। इसी तरह माता कि मुर्ति का पुजन करें। इसके बाद कलश की पुजा करें। इसके बाद माता कि चौकी पर भोग लगाएं , फल अर्पित करें। माता को दक्षिणा अर्पित करें। इसके बाद सुहाग की सामग्री अर्पित करें। इसके बाद अखण्ड ज्योत जलाए।
इसके बाद आरती करें। आरती करने के लिए दिपक अलग से है होना चाहिए। सबसे पहले गणेश जी की आरती करें उसके बाद माता कि आरती करें। इसके बाद कलश और जौ की आरती करें। आरती हो जाने के बाद भगवान के चरण स्पर्श करें। हमसे पुजा में जो भी भुल चुके हुई है उसके लिए माफी मांग ले और हमारे परिवार की सुख शांति की कामना करें और आर्शीवाद ले। इसके बाद नवरात्रि की पुजा में परिवार के साथ प्रतिदिन हवन करना चाहिए। इससे घर की सारी नकारात्मकता दुर हो जाती है। हवन में लौग , बतासे , इलायची को आहुति दे।
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं कि चैत्र नवरात्रि कब है और क्यों मनाई जाती है, इसका क्या महत्व है, इसके बारे में आपको पता चल गया होगा। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।