हमारे सनातन धर्म में प्रतिवर्ष अनेक पर्व मनाये जाते हैं और हर वर्ष हम उतने ही उत्साह और उल्लास के साथ इन पर्वों का स्वागत करते हैं। इन्हीं पर्वों में एक है गुड़ी पड़वा। गुड़ी पड़वा ऐसा पर्व है जिसकी शुरुआत के साथ सनातन धर्म की कइ सारी कहानियां जुड़ी है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा को विशेष रूप से मनाया जाता है। नौ दिन तक चलने वाले इस त्यौहार में पुजा, विशेष तरह के प्रसाद आदि का बहुत महत्व है। तो चलिए जानते हैं गुड़ी पड़वा क्या है, कैसे मनाते हैं, क्यो मनाते हैं , पुजा विधी और महत्त्व के बारे में।
गुड़ी पड़वा का क्या अर्थ है
गुड़ी पड़वा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी चैत्र महिने की पहले दिन मनाया जाता है। गुड़ी का मतलब विजय और पड़वा मतलब चैत्र मास के शुक्ल का पहला दिन होता है। इस पर्व को वर्ष प्रतिपदा या युगादि या उगादि के नाम से भी जाना जाता है।
साल 2023 में गुड़ी पड़वा कब है
वर्ष 2023 मे गुड़ी पड़वा पर्व 22 मार्च दिन बुधवार को मनाया जाएगा।
गुड़ी पड़वा से जुड़ी कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार सतियुग अर्थात रामायण काल में जब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था और जब भगवान श्रीराम को पता चला कि लंकापति रावण ने माता सीता का हरण कर लिया है तो वे उन्हें खोजते हुए दक्षिण भारत पहुंचे यहां उस समय राजा बालि का शासन हुआ करता था। वहां प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण की मुलाकात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव ने श्रीराम को बालि की कुशासन से अवगत कराते हुए उनकी सहायता करने में अपनी असमर्थता जाहिर की।
इसके बाद प्रभु श्रीराम ने बालि का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को उसके आतंक से मुक्त करवाया और वह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का था। ऐसा माना जाता है कि तभी से इस दिन गुड़ी यानी विजय पताका फहराई जाती है। इस दिन लोग आम के पत्तों से घर को सजाते हैं। आंध्रप्रदेश , कर्नाटक व महाराष्ट्र में इसे लेकर काफी उत्साह और उल्लास होता है। सृष्टि के निर्माण का यह दिन एक भारतीय के लिए अहम है। जिसमें बारह महीने इस प्रकार है चैत्र, वैशाख , ज्येष्ठ , आषाढ़ , श्रावण, भाद्रपद , आश्विन , कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष , माघ , फाल्गुन।
तो अगर हम भारतीय संस्कृति यानी कि हिन्दू केलेंडर की बात करें तो हमारा नव वर्ष गुड़ी पड़वा से ही शुरू होता है। एक धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसलिए गुड़ी पड़वा नवसंवत्सर भी कहलाता है । इसके अलावा महान गणितज्ञ भास्कराचार्य जी ने भी इसी तिथि पर सुर्योदय से सुर्यास्त तक के दिन , महिने और वर्ष की रचना करते हुए पंचांग भी रचा था।
कुछ विद्वानों का मानना है कि शालीवाहन नाम के कुम्हार के बेटे को शत्रु बहुत परेशान करते थै। लेकिन अकेला होने के चलते वह उसका विरोध करने में सक्षम नहीं था। तब उसने एक युक्ति निकाली और सेना से लडने के लिए मिट्टी के सैनिको का निर्माण किया और उनकी एक सेना बनाकर उसके उपर पानी का छिड़काव किया और सैनिकों में प्राण फूंक दीए। ऐसा कहा जाता है कि जब शत्रु आए तो कुम्हार के बेटे ने जिस सेना को बनाया था , उस सेना के साथ मिलकर उन्होंने शत्रु के साथ युद्ध किया और विजय प्राप्त की। तब से शालीवाहन शक का आरंभ हुआ।
गुड़ी पड़वा कयो मनाया जाता है, क्या महत्व है
गुड़ी पड़वा के दिन भक्त भगवान ब्रह्मा कु पुंजा अर्चना करते हे जो ब्रम्हांड के परम निर्माता है। शास्त्रों के अनुसार उन्होंने गुड़ी पड़वा के दिन ब्रम्हांड का निर्माण किया था। इसका पहला महिना चैत्र यानी चैतन्य , खुशहाली का होता है। हिन्दी पंचांग का आखिरी महिना फागुन होता है। फागुन के महिने में होली का त्योहार मनाया जाता है। चैत्र के महिने से पेड़ों पर नये - नये पत्ते आते हैं। इसलिए इस महिने को भी बहुत खास माना जाता है।
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गुड़ी पड़वा किन राज्यों में मनाया जाता है
भारत के महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में इस पर्व को नौ दिनो तक विशेष विधि विधान और पुजा के साथ मनाने का चलन है। इस दिन से महाराष्ट्र में मराठी पंचांग के अनुसार नया साल आरंभ हो जाता है। आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में भी इसे नये साल के रूप में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा पर्व को लेकर जहां अलग अलग तरह की कथाएं प्रचलित हैं वहीं आंध्रप्रदेश में गुड़ी पड़वा के अवसर पर इस दिन विशेष प्रकार का प्रसाद भी वितरित किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो भी बिना कुछ खाए पीए इस प्रसाद को ग्रहण करता है वह सदैव निरोगी रहता है। बिमारीया उससे दूर रहती है। इस उत्सव का समापन रामनवमी के दिन होता है। चैत्र महिने में आने वाली नवरात्रि को वासंतिक नवरात्र और चैत्र नवरात्रि भी कहा जाता है।
गुड़ी पड़वा कैसे मनाया जाता है
गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं। रंगोली और तोरन दिवार बनाकर घरों को सजाते हैं। गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घर के मुख्य द्वार के आगे एक गुड़ी यानी झंडा रखते हैं। गुड़ी के उपर नीम के पत्ते और बतासे दोनों लगाना बहुत शुभ माना जाता है। क्योंकि नीम से मन की सारी कड़वाहट दुर हो जाती है और बतासो से आने वाली जिंदगी में ओर भी मिठास बढ जाती है। गुड़ी पड़वा के इस पर्व पर तरह तरह के पकवान घर पर ही बनाए जाते है जैसे कि श्रीखंड पुरी, बासुदी पुरी, खीर पुरी या पुर्ण पोली जैसे कइ पकवान बनते हैं। इस पर्व पर लोग विशेष तौर पर पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं । जिसमें औरतें नववारी साड़ी या पठानी साड़ी पहनकर सजती संवरती है। जबकी पुरुष कुर्ता पैजामा या धोती कुर्ता पहनते हैं।
गुड़ी पड़वा पुजा के लिए लगने वाली चीजें
फुल और कलरसी रंगोली , कुछ खीले फुल आम के पत्ते लाल कपड़ा , शुभ के पत्ते , नारियल, नया ब्लाउज का पीस, बोर्डर वाली साड़ी या फिर चुनरी, पत्तासे की माला , तोरण और आम के पत्तों की माला, मिठाई , पितल तांबे का कलश चौकी और लम्बी बास की डंडी।
गुड़ी पड़वा की पुजा विधी
गुड़ी पड़वा के दिन सुबह उठकर स्नान आदि किया जाता है। लोग सबसे पहले नीम का पत्ता खाते हैं। कहा जाता है कि इस नीम के पत्ते को खाने से शरीर की सब बिमारिया दुर हो जाती है। रंगोली और तोरण लगाने के बाद भगवान की पुजा कुछ जाती है। इसके बाद गुड़ी लगाने या उभारने की तैयारी की जाती है। सबसे पहले एक बांस की डंडी लेकर के उसे साफ करके एक नया ब्लाउज का पीस बार्डर वाली साड़ी या चुनरी लगाई जाती है। उसके उपर आम के पत्ते , नीम के पत्ते फुलों की माला और बत्तासो की एक माला एक साथ बांद दी जाती है। इसके बाद गुड़ी के उपर तांबा , पितल या चांदी का कलश को रखा जाता है। कलश के उपर स्वास्तिक चिन्ह और हल्दी कुमकुम लगाया जाता है। फिर दरवाजे के उपर बाहर या बालकनी में पुर्व की दिशा में चौकी बिछाई जाती है। उस चौकी के उपर लाल कपड़ा बिछाया जाता है। उस लाल कपड़े पर एक नारियल और फुल रखा जाता है। इसके बाद कुछ लोग गुड़ी स्थापित करने के लिए गमले का इस्तेमाल करते हैं फिर गुड़ी के सामने मिठे पकवान का भोग लगाते हैं। किसी किसी घर में गुड़ी की पुजा पँडीतजी करवाते हैं और कुछ घरों में घर के बड़े बुजुर्ग पुजा करवाते हैं। गुड़ी पड़वा का त्योहार सब लोग मिलकर खुशी खुशी मनाते हैं। अपने अपने रिश्तेदारों के यहां जाकर उन्हें नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं। इस तरह से गुड़ी पड़वा का यंह त्योहार पुरे महाराष्ट्र में धुम्रपान से मनाया जाता है। साथ ही शाम होने से पहले गुड़ी को उतारा जाता है और उस पर लगी बतासे की माला को पुरे घर में बाटा जाता है।
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं कि गुड़ी पड़वा क्या है, कैसे मनाते हैं, क्यो मनाते हैं , पुजा विधी और महत्त्व के बारे में आपको जानकरी मिल गई होंगी । अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।