रंगों के त्योहार के तौर पर मशहूर ये त्योहार फाल्गुन महीने की पौर्णिमा के दिन बसंत ऋतु के आगमन मे मनाया जाता है।ईस त्योहार में नृत्य, संगीत और ढोल के बिच एक दूसरे को रंग लगाया जाता है।
होली का पर्व हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। क्योंकि आज के दिन सभी लोग बहुत ही प्रेम पूर्वक व्यवहार हैं। सभी लोग आज के दिन एक दूसरे को बहुत ही प्रसन्नता पुर्वक रंग लगाते हैं। और उनसे गले मिलते हैं।
होली कब मनाया जाता है
सम्पूर्ण भारत वर्ष में होली का दिवस प्रत्येक वर्ष में एक बार मनाया जाता है। होली का दिवस प्रत्येक वर्ष बसंत ऋतु के समय फाल्गुन माह में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। हम यदि अन्य शब्दों में कहें तो यह दिवस मार्च महीने में मनाया जाता है। यह त्योहार खुशी का त्योहार माना जाता है, ईस त्योहार को होलिका दहन से ही शुरू कर दिया जाता है और लोग आपस में गले मिलते हैं और एक दूसरे को रंग लगाते हैं।
साल 2023 में होली कब है
साल 2023 में होली 8 मार्च दिन बुधवार को है।
होलिका दहन शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 24 मिनिट 34 सेकंड से रात 8 बजकर 51 मिनिट 30 सेकंड तक है। कुल अवधि 2 घंटे 26 मिनिट है।
भद्रा पुंछा रात 1 बजकर 2 मिनिट 9 सेकंड से रात 2 बजकर 19 मिनिट 29 सेकंड तक है।
भद्रा मुखा रात 2 बजकर 19 मिनिट 29 सेकंड से सुबह 4 बजकर 28 मिनिट 23 सेकंड तक है।
होली का त्योहार कैसे मनाया जाता है
होली का पर्व दो दिनों तक मनाया जाता है। फाल्गुन मास की पुर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होली का दहन किया जाता है। पहले दिन होलि जलाई जाती है। जिसे होलिका दहन कहते हैं। और दुसरे दिन एक दूसरे को रंग लगाया जाता है। जिसे रंगवाली होली कहा जाता है। इस दिन लोग एक दुसरे को रंग लगाते हैं, गले मिलते हैं। मिठाईयां खिलाते हैं और एक दूसरे को होली की बधाई देते हैं।
होली की पूजा विधि कैसे करे
होली पूजा की सामग्री - रोली, माला, रंगीन अक्षत, गंध के लिए धुप या अगरबत्ती, पुष्प, गुड, कच्चे सुत का धागा, साबुत हल्दी, मुंग, बत्तासे, नारियल एवं नई फसल की बालियां, पके चने आदि।
होली का दहन कब करें
होली का दहन पूर्णिमा तिथि मे प्रदोष काल के दौरान किया जाता है, इसके अलावा भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पुर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिए बहुत ही शुभ मानी गई है। शास्त्रों में बताया गया है कि भद्रा पूंछ प्रदौष से पहले और मध्य रात्रि के पश्चात होलिका दहन नहीं करना चाहिए। यह शुभ नहीं माना जाता है। इसलिए होलिका दहन शुभ मुहूर्त सुर्यास्त और मध्य रात्रि के बिच ही निर्धारित किया जाता है। नन
होली कि त्योहार क्यो मनाया जाता है
एक समय कि बात है जब ईस पुरी धरती पर एक बहुत ही आतंकी असुर राज हीरण्यकश्यप राज करना चाहता था। वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के साथ साथ तिनों लोकों पर भी। अपना अधिकार जमाना चाहता था। इसके लिए उसने पृथ्वी वासियों को काफी हद तक डराया और उनसे यह कहता था कि वह ही भगवान है और वह लोगों से अपनी जबरदस्ती पूजा करवाता था।
लोग अपने जीवन की रक्षा में उस अहंकारी असूर की पूजा करते थे। परंतु हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था, जिसका नाम प्रल्हाद था, जो कि इस समय में भक्त प्रह्लाद के नाम से प्रसिद्ध है। भक्त प्रह्लाद अपने पिता के अहंकार के कारण उनकी कभी भी पूजा नहीं की। भक्त प्रह्लाद ने भगवान के रूप में श्री विष्णु जी को चुना और वह श्री विष्णु जी की ही पूजा अर्चना करता था।
भक्त प्रह्लाद की ईस अटुट निष्ठा की भक्ति से उसके पिता को बहुत ही गुस्सा आता था। धीरे धीरे उसके पिता उनसे नफरत करने लगे और वह अपने अहंकार में इतनाअंधा हो चुका था कि कई बार तो भक्त प्रह्लाद की जान लेने का भी प्रयास किया था, परन्तु वह असफल रहा। भक्त प्रह्लाद कुछ भक्ति से श्री विष्णु जी बहुत प्रसन्न थे और भगवान भक्त प्रह्लाद की सदैव रक्षा करते थे।
हिरण्यकश्यप को एक वरदान प्राप्त था, यह वरदान ऐसा था कि "ना तो उसे कोई मानव मार सकता है और ना कोई जानवर, न ही घर में न ही बाहर, न ही किसी शस्त्र से ना ना ही किसी अस्त्र से, ना इस धरती पर और ना आकाश में, ना ही दिन में और ना ही रात में" उसे ऐसा वरदान प्राप्त होने के कारण कोई भी देवता या असुर कोई भी उसका कुछ नहीं कर पा रहा था।
वरदान प्राप्त होने से वह निर्भिक हो गया था। हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रह्लाद के प्राण लेने के अनेक प्रयास किए, परंतु वह असफल रहा। ईसके पच्शात उसने अपनी बहन होलिका की सहायता ली, उसकी बहन होलिका को भी ऐसा वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि छू नहीं सकती। उसी कारण होलिका भक्त प्रह्लाद को लेकर जलती चिता में बैठ गई।
जैसा कि हमने आपको बताया कि होलिका को भी वरदान प्राप्त था, परंतु उसे ऐसा वरदान प्राप्त था कि जब वह अकेली होंगी, तब उसे ही अग्नि नहीं छुआ सकती। परंतु होलिका तो उस चिंता भक्त प्रह्लाद के साथ बैठी थी, इसलिए वरदान प्राप्त होने कै बावजूद भी वह जल गई और भक्त प्रह्लाद प्रल्हाद को भगवान विष्णु जी के व्दारा बचा लिया गया।
होलिका के जल जाने के उपरांत एक बार फिर से हिरण्यकश्यप भक्त प्रह्लाद की हत्या करने का प्रयास किया, परंतु श्री हरि विष्णु जी ने हिरण्यकश्यप को नर सिंह अवतार धारण करके सभी वरदान के विपरित उसे अपने घुटनों पर सुलाकर अपने नाखूनों से उसकी हत्या कर दी, ईस प्रकार से हिरण्यकश्यप की मृत्यु भी हो गई और वरदान भी खंडित नहीं हुआ।
ईस कहानी के अनुसार होली का पर्व हिरण्यकश्यप कुछ बहन होलिका की मृत्यु के उपलक्ष में मनाया जाता है, उसी कारण होली के त्योहार के एक रात्रि पहले होली का दहन किया जाता है। होलिका दहन से यह ज्ञान होता है कि किस प्रकार से अनेक वर्षों पहले बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी। अर्थात होली के दिन को हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के उपलक्ष में मनाया जाता है।
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होली का और महत्त्व
होली का आध्यात्मिक महत्व - होली भारत का एक विशिष्ट सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक त्योहार है। आध्यात्म का अर्थ है मनुष्य का ईश्वर से संबंधित होना या स्वयं का स्वयं के साथ संबंधित होना है। इसलिए होली मानव का परमात्मा एवं स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार कि पर्व है। होली रंगों का त्योहार है। सिर्फ रंग हि नहीं प्रकृति और चित्रों में भी हमारी आंतरिक उर्जा में छिपे होते हैं होली के रंग।
जिसै हम आभामंडल कहते हैं। एक तरह से यही आभामंडल विभिन्न रंगों का समवाय है, संघटन है, हमारे जीवन पर रंगो का गहरा प्रभाव होता है। हमारा चिंतन भी रंगों के सहयोग से ही होता है। हमारी गति भी रंगों के सहयोग से ही होती है। हमारा आभामंडल जो सर्वाधिक शक्तिशाली होता है। वह भी रंगों के ही अनुगती है।
पहले आदमी की पहचान चमड़ी और रंग रूप से होती थी। आज वैज्ञानिक दृष्टि इतनी विकसित हो गई है कि पहचान त्वचा से नहीं आभामंडल से होती है। होली का अवसर अध्यात्मिक लोगों के लिए ज्यादा उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है। इसलिए अध्यात्म और योग के विशेषज्ञ विभिन्न रंगों के ध्यान एवं साधना से, प्रयोगो से आभामंडल को शसक्त बनाते हैं।
होली का वैज्ञानिक महत्व - होली का त्योहार जिसमें रंग है, उमंग है और ढेर सारी मस्ती है।ईस मस्ती और उल्लास में सेहत की भी बात है। होली ऐसे समय पर आती है। जब मौसम में बदलाव के कारण लोग सुश्ती या थकान महसूस करते हैं। प्राकृतिक रंग इसी आलस्य कौन दुर करने में मदत करते हैं।
साइंटिफिक थ्योरी कहती हैं कि हमारा शरीर अलग अलग रंगों से बना हुआ है। ईस थ्योरी के मुताबिक होली एक ऐसा त्यौहार है जो कई तरह के रंगों की कमियों को दूर कर सकता हैं।
होली पर ढाक के फुलों से तैयार किया गया रंग विशुद्ध रूप अबीर, गुलाल डालने से शरीर पर इसका सुकुन देने वाला प्रभाव पड़ता है। और शरीर को ताजगी प्रदान करता है। वैज्ञानिक का मानना है कि गुलाल या अबीर शरीर की त्वचा को उत्तेजित करता है। और शारीर के आयनमंडल को मजबुती प्रदान करने के साथ साथ स्वास्थ्य को बेहतर करते हैं।
रंगों के खेलने से स्वास्थ पर उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। क्योंकि रंग हमारे शरीर तथा मानसिक स्वास्थ्य पर पुरी तरिके से असर डालते है। शरद ऋतू की समाप्ति और वसंत ऋतु के आगमन का यह काल पर्यावरण और शरीर में बेक्टेरीया की वृद्धि को बढ़ा देता है।
लेकिन जब होली जलाई जाती है तब परंपरा के अनुसार लोग जलती होली की परीक्रमा करते हैं। होलि से निकलता ताप शरीर और आसपास के पर्यावरण में मौजुद बेक्टेरिया को नष्ट कर देता है। और इस प्रकार यह शरीर और पर्यावरण को स्वच्छ करता है।
होली पर निबंध
होली देश का लोकप्रिय त्योहार है। होली को रंगो और खूशीयो का त्योहार कहा जाता है। यह त्योहार बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। होली के त्योहार के उपलक्ष्य में सभी लोग एक दुसरे के घर जाकर नाचते, गाते और रंग लगाते है। होली के दिन पर लोग अपने घरों में अलग अलग तरह के पकवानों को बनाते हैं और मेहमानों को बुलाते हैं। यह त्यौहार हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार दो दिन तक मनाया जाता है। जिसके अन्तर्गत पहले दिन होलिका दहन होता है और दुसरे दिन होली मनाई जाती है।
होली का त्योहार मनाने के पिछे एक प्राचीन इतिहास है। प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नाम के एक असुर हुआ करता था। उसकी एक दुष्ट बहन थी , जिसका नाम होलिका था। हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानता था। हिरण्यकश्यप के एक पुत्र थे जिसका नाम प्रल्हाद था। वे भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के विरोधी था। उन्होंने प्रल्हाद को भगवान विष्णु की पूजा करने से बहुत रोका। लेकिन प्रल्हाद ने उसकी एक भी बात नहीं सुनी। इससे नाराज होकर हिरण्यकश्यप ने प्रल्हाद को जान से मारने का प्रयास किया।
इसके लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। क्योंकि होलिका को आग में न जलने का वरदान मिला हुआ था। उसके बाद होलिका प्रह्लाद को लेकर चिंता में बैठ गई लेकिन जिस पर विष्णु कु कृपा हो उसे क्या हो सकता है और प्रल्हाद आग में सुरक्षित बचे रहें जबकि होलिका उस आग में जलकर भस्म हो गई। यह कहानी यह बताती है कि बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है। होली सिर्फ हिन्दूओं ही नहीं बल्कि सभी समुदाय के लोगों द्वारा उल्लास कै साथ मनाया जाता है।
होली का त्योहार लोग आपस में मिलकर , गले लगकर और एक दूसरे को रंग लगाकर मनाया जाता है। इस दौरान धार्मिक और फागुन गीत भी गाए जाते हैं। इस दिन हम लोग खासतौर से बने भुजिया, पापड़ , हलवा आदि खाते हैं। होली भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अन्य देश नेपाल, पाकिस्तान, बंग्लादेश, श्रीलंका, मोरीशस में भारतीय परंपरा के अनुसार ही मनाई जाती है। होली सच्चे अर्थों में भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। जिसके रंग अनेकता में एकता को दर्शाते हैं।
होली पर बहुत सी दुर्घटना भी जाती है। लोगों द्वारा होली के दिन गुलाल का प्रयोग न करके रासायनिक और कांच मिले रंगों का प्रयोग किया जाता है। जिससे चेहरा खराब हो जाता है। की लोग मादक पदार्थों का सेवन व भांग मिलाकर नशा करते हैं जिससे की लोग दुर्घटना का शिकार हुई हो जाते हैं। ऐसे ही होली के दिन बच्चे गुब्बारो में पानी भरकर गाड़ीयों के उपर फेंकते हैं ऐसी हरकतें ना करें जिससे दुसरे आदमी के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़े। सभी लोग इस दिन अपने सारे गीले सिकवे भुलाकर एक दूसरे को गले लगाते हैं।
होली का रंग हम सभी को आपस में जोड़ता है और रिश्तों में प्रेम और अपनत्व के रंग भरता है।
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं कि होली कब, क्यों और कैसे मनाई जाती है, ये आपको मालूम हो गया होगा और आपको ये पोस्ट अच्छी लगी होंगी। अगर आपको ये पसंद आई है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।