महाशिवरात्रि का दीन शिवभक्तों के लिए बड़ा हि खास और महत्वपूर्ण होता है।ईस दिन लोग भगवान शिव के नाम व्रत रखते हैं। महीलाओं के ये दिन काफी खास होता है। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने से अविवाहित महिलाओं की शादी जल्दी हो जाती है।
वहीं विवाहित महिलाएं अपनी पति के सुखी जीवन के लिए महाशिवरात्र का व्रत रखती है।पुरे साल में 12 शिवरात्रि होती है। इसमें से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है
शिवरात्रि से जुड़ी दो कथाएं हैं जो उत्तर भारत और दक्षिण भारत में प्रचलित है।
हीन्दु पुराण में शिवरात्रि से जुड़ी एक नहीं बल्कि अनेक वजह बताई गई है। पौराणिक कथाओं में अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। ईस दिन पहली बार शिवलिंग की भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने पुजा की थीं। ईस कारण महाशिवरात्र के दिन शिवलिंग की विशेष पूजा की जाती है। ईसके अलावा ये भी माना जाता है कि ब्रम्हाजी ने महाशिवरात्रि के दिन ही शिवजी के रुद्र रूप को प्रकट किया था।
दुसरी कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। ईसी वजह से नेपाल में महाशिवरात्रि के तिन दीन पहले से ही मंदिरों को मंडप की तरह सजाया जाता है और भगवान शिव और माता पार्वती को दुल्हा दुल्हन बनाकर घर घर घुमाया जाता है और महाशिवरात्रि के दिन उनका विवाह किया जाता है।
उसी कथा के चलते ये माना जाता है कि कुंवारी कन्याओ व्दारा महाशिवरात्रि का व्रत रखने से शादी का संयोग जल्दी बनता है। उसी प्रचिलित कथा के अनुसार भगवान शिव व्दारा विष पीकर पुरे संसार को इससे बचाने की घटना के उपलक्ष में महाशिवरात्रि मनाई जाती है।
दरअसल समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत के लिए देवताओं और राक्षसों के बिच युद्ध चल रहा था। तब अमृत के निकलने से पहले कालकुट नाम का विषैला विष निकला था। ये विष इतना भयंकर था कि इससे पुरा ब्रम्हांड नष्ट किया जा सकता था।
केवल भगवान शिव ही उस विष को नष्ट कर सकते थे। तब भगवान शिव ने कालकुट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। इससे उनका कंठ निला पड़ गया और उसी घटना के बाद भगवान शिव का नाम निलकंठ पड गया।
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शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में क्या अंतर है
हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को सिर्फ शिवरात्रि कहा जाता है लेकिन फाल्गुन मास की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा जाता है।
हर महीने कृष्ण पक्ष की चर्तुदशी वाले दिन शिवरात्रि होती है। लेकिन मान्यता है फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन आने वाली शिवरात्रि सबसे बड़ी शिवरात्रि होती है। इसलिए ईसे महाशिवरात्रि भी कहा जाता है।
महाशिवरात्रि व्रत पूजा विधि कैसे करें
ईस दीन पवित्र नदीयो में विशेष रूप से गंगा जी में स्नान करने के बाद हाथ में जल या पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लिया जाता है और फिर भगवान शिव की पुजा की जाती है। चाहे तो आप शिवलिंग की पूजा कर सकते हैं या भगवान शिव की मुर्ति या तस्वीर की भी पूजा कर सकते हैं।
ईस दिन जो लोग शिवलिंग का अभिषेक कच्चा दूध, घी, दही आदि से करते हैं। उन्हें ये सब अर्पित करने के बाद साफ स्वच्छ जल शिवलिंग पर जरुर अर्पित करना चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को प्रिय वस्तुओ का भोग लगाया जाता है, उन्हें प्रिय वस्तुएं अर्पित की जाती है।
भगवान शिव को गंगाजल, भांग, धतुरा, बेलपत्र और बेर, क्योंकि ईस मौसम में जो भी फल मिलते हैं वो भी आप अर्पित कर सकते हैं। लेकिन बेर आज के दिन भगवान शिव को विशेष रूप से अर्पित कीए जाते हैं। ध्यान रखना है भगवान शिव को कभी भी हल्दी या मेंहदी या सिंदुर अर्पित नहीं किया जाता है।
आप भगवान को चंदन अर्पित कर सकते है और सफेद फूल उन्हें अर्पित कर सकते हैं। भगवान शिव की पुजा करने के लिए आज के दिन आप अगर उन्हें श्रद्धा से, विश्वास से केवल एक लोटा गंगाजल या सादा जल भी अर्पित करते हैं तो वो इससे प्रसन्न हो जाते हैं।
धुप लिपट जलाकर फल फूल अर्पित करने के बाद आप भगवान शिव के मंत्रो का जाप करें। पंचाक्षर मंत्र का ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप, महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी आप कर सकते हैं। जब भी आप बेलपत्र अर्पित करते हैं ध्यान रखना है की बेलपत्र कटे हुए नहीं होना चाहिए, पुराने नहीं होना चाहिए और तिन पत्ते वाले बेलपत्र ही भगवान शिव को अर्पित किया जाता है।
जो लोग शिवलिंग की पूजा ईस दिन करते हैं उन्हें इस बात का भी ध्यान रखना है कि शिवलिंग की पूजा हमेशा आधी की जाती है। भगवान शिव की पूजा करते समय कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना होता है। क्योंकि अगर आपने इन बातों का ध्यान नहीं रखा तो की गई पूजा का फल भी नहीं मिलता बल्कि भगवान शिव नाराज भी हो सकते हैं।
इसलिए आप जब भी शिवलिंग कुछ पुजा करें तो उससे जूडे नियम अवश्य जान ले। ऐसे तो हमारे हिन्दू धर्म में जितने भी देवी देवता हैं उन सभी की प्रतिमाओ कि पुरी परिक्रमा कुछ जाती है। लेकिन शिवलिंग की परिक्रमा कभी पूरी नहीं करना चाहिए ।
यदि भगवान शिव कि प्रतिमा है तो प्रतिमा की आप परिक्रमा पुरी कर सकते हैं। शिवलिंग की परिक्रमा आधी करने के साथ ही आपको दिशा का भी ध्यान रखना है। शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बायी ओर से प्रारंभ की जाती है। और जलाधारी यानी के जहां से गंगाजल जौ शिवलिंग पर आपने अर्पित किया है वो जहां से निकलता है, नाली सी बनी होती है। उसे आपको क्रोस नहीं करना है, उसी से वापस आपकौ मुड़ जाना है।
आपने जहां से परिक्रमा प्रारंभ की है। आपको शिवलिंग कि आधी परिक्रमा वहीं पर आकर समाप्त करनी है। ईस बात का आपको ध्यान रखना है। कभी भी दाईं ओर से परिक्रमा शिवलिंग की नहीं कि जाती है। और जलाधारी को कभी भुल से भी लांघना नहीं चाहिए। इससे घोर पाप लगता है।
आप शिवलिंग पर जो भी प्रसाद चढ़ाते हैं उसे घर पर लेकर नहीं आना चाहिए। आपको वही प्रसाद या तों शिवलिंग पर छोड़ देना चाहिए या वहीं आसपास लोगों में बांट देना चाहिए। सबसे अच्छा तरीका है कि आप शिवलिंग पर हि प्रसाद चढ़ाए।
तांबे के लोटे से आप गंगाजल भगवान शिव को अर्पित कर सकते हैं। लेकिन उसमें आपको दूध डालकर भगवान शिव को अर्पित नहीं करना चाहिए। क्योंकि माना जाता है कि तांबे के लोटे में रखिए गया दुध विष बन जाता है। और अनजाने में आप भगवान शिव को गंगाजल के बजाय विष अर्पित करते हैं।
साध ही शिवलिंग के उपर जो कलश होता है। उसमें से बूंद बूंद करके गंगाजल शिवलिंग पर गिरता रहता है। उसपे भी आपको गलती से कच्चा दूध नहीं डालना चाहिए।
शास्त्रों में पुजा करते समय सभी देवी देवताओं की परिक्रमा करने की परंपरा भी है। सभी देवी देवताओं की परिक्रमाओ की संख्या भी अलग अलग है। भगवान शिव को भांग, धतुरा बेलपत्र अर्पित करते समय ध्यान रखना है मुख कि पका अंगुठा बिल्कुल भी शिवलिंग को स्पर्श ना करें। परिक्रमा करते समय शिव स्त्रोत का जाप करें।
महाशिवरात्रि की कथा
एक बार शिवजी और सतीजी जा रहे थे तभी उन्होंने दण्डकारण्य में राम और लक्ष्मण को देखा, जो देवी सीता को ढुंढ रहे थे। तभी शंकर जी ने उन्हें प्रणाम किया और मां सती को भ्रम हो गया की ऐसा कैसे हो सकता है की निराकार भगवान साकार हो जाए और साकार हो भी जाए तो अपनी स्त्री को ढूंढ रहा है। वह तो सर्वज्ञ है, अन्तर्यामी हैं। उसको मालूम होना चाहिए की पत्नी कहा है। अस्तु उन्हें भ्रम हो जाता है। शंकर जी उन्हें समझाती है पर सती जी नहीं मानती है।
तब शंकर जी कहते हैं जाओ परीक्षा ले लो। शंकर जी जब परीक्षा लेने को कहते हैं तो मां सती सीता माताजी का रुप धारण करके बैठ जाती है। तभी रामजी उन्हें तुरंत पहचान लेते हैं और कहते हैं की माताजी पीताजी कीधर है। सती को और भ्रम हो जाता है कि क्या बात है। जब सती शिव के पास वापस आ जाती है तो वह झुंड बोल देती है की श्रीराम की परीक्षा नहीं ली है। लेकिन शिव जी अन्तर्यामी हैं। इसलिए वो जान गए की यह मेरी माता सीता का रुप धारण करके परीक्षा लेने गई थी।
इसलिए इस जन्म में पत्नी का रीश्ता नहीं रख सकता। इसलिए उन्होंने मन ही मन माता सती को त्याग दिया था। बाद में सती को यह शंका हो ही गई थी की शिव जी ने मुझे मन ही मन त्याग दिया। एक दिन जब दक्ष जो सतु के पिता थे, वह यज्ञ करवा रहे थे, लेकिन शिव जी को नहीं बुलाया था। सती जी शिव जी से जिद्द करने लगी थी की मैं भी जाऊंगी तो शंकर जी ने कहा कि ठीक है जाओ, गणों को साथ भेजा। सती जब वहां पहुंची तो वहां पर उनकी बहनों के साथ ज्यादा बातचीत नहीं की। लेकिन मां ने उनका आदर सत्कार किया।
जब सती जी यज्ञ में जाती है तो देखती है की वहां पर शिव जी का आसन नहीं रहता है तो वह अपने पति का अपमान समझकर वहीं पर अपने आप को योग अग्नि में भस्म कर लेती है। इसके बाद स्वयं राम शिव जी के पास जाते हैं और कहते हैं कि जब शादी का प्रस्ताव आएगा तो आप हां कह दिजिए। बाद में यही सती जी मां पार्वती का अवतार लेकर पिता हिमनरेश और माता मैना के घर में आती है। इसके बाद फिर नौवैग्यक्षरो ने मां पार्वती की परीक्षा लेते हैं तो पार्वती जी ने उन्हें कहा मैं या तो शिव जी शादी करुंगी या अनंत काल तक कुंवारी रहुंगी। ऐसा जवाब मिलकर भगवान शिव जी का विवाह तय हुआ और जिस दिन भगवान शिव का विवाह हुआ वह महाशिवरात्रि के पर्व में मनाई जाती है।
निष्कर्ष
आज हमने जाना कि महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है मै आशा करता हूं कि यह पोस्ट आपको बहुत पसंद आई होगी। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।