सहस्त्रार चक्र सिर के सबसे ऊपरी भाग में ब्रम्हरंध नाम की ग्रंथि होती है उसके उपर सहस्त्रार चक्र स्थित होता है। इसे आध्यात्मिक संसार का दरवाजा भी कहा जा सकता हैं। यह उन 7 चक्रो में से सर्वोच्च तथा सातवा चक्र है जो मनुष्य के शरीर में रिंग की हड्डी में स्थित होते हैं। प्रथम चक्र मुलाधार चक्र है जहां कुंडलिनी शक्ति सुप्तावस्था अवस्था में विद्यमान रहती है। सहस्त्रार का शाब्दिक अर्थ हजारों अथवा अनन्त पंखुड़ी वाला कमल होता है। सभी चक्रों की भांति इसका कोई रंग नहीं होता है। बल्कि यह शुद्ध सफेद होता है। इसकी पंखुड़ियां इंन्द्रधनुषी रंग की होती है। दुसरे शब्दों में इसे मूकुट चक्र भी कहा जाता है।
इस चक्र का तत्व बिज विसर्ग है। इसके तत्व बिज की गती बिन्दु है, और बिन्दु ही इसका वाहन है। इस चक्र का लोक सत्यम् हैं। इस चक्र के देवता परब्रह्म ( शिव ) है और शक्ति कुंडलिनी है। इस चक्र का आकार चंद्राकर है। इसका रंग शुभ्र वर्ण है।
इसी सहस्त्रार चक्र के अनुसार ही मनुष्य का आॕरा ( आभा ) बनता है। इस चक्र के सक्रिय होते ही अनंत की अनुभूति होने लगती है। सारे चक्रों से गुजरती हुई कुंडलिनी शक्ति जब इस चक्र तक पहुंचती है तो अविस्मरणीय और अद्भुत अनुभव होने लगते हैं। जब व्यक्ति ध्यान अथवा किसी अन्य साधना व्दारा इन चक्रों को खोलने की कोशिश करता है एक एक कर सारे चक्र सक्रिय होने लगते हैं। इन चक्रों के सक्रिय होने के साथ हमें की सारे अद्भुत अनुभव भी देखने को मिलते हैं।
सहस्त्रार चक्र कैसे जागृत करें
आप ब्रम्ह मुहूर्त में उठें, अपने ध्यान का आसन ले, अपना मुख उत्तर दिशा में रहे ऐसा बैठे, अपने दोनों हाथ घटनो पर फैलाए रखें, और अपनी आंखें बंद करके सिर के शीखर पर अपना दाहिना हाथ रखे। अपने सिर के ठीक उपर स्थित सहस्त्रार चक्र और वो जिस चीज़ के लिए है उस पर ध्यान केंद्रित करें और ॐ मंत्र का उच्चारण करें। जिससे आपके सिर के उपरी हिस्से में कंपन मिलने प्रारंभ हो जाएंगे।
सहस्त्रार चक्र के सक्रिय होने के लक्षण कैसे होते हैं
सहस्त्रार चक्र सक्रिय होने का अर्थ होता है की हमारी अध्यात्मिक जाग्रति में प्रगति हो रही है। कुंडलिनी शक्ति जब मुलाधार चक्र से उठकर सहस्त्रार चक्र तक पहुचती है तो अविस्मरणीय और अद्भुत अनुभव होने लगता है। सिर के उपरी भाग में चुनचुनाहट का अनुभव होने लगता है। ऐसा लगता है जैसे सैकड़ों चिटियां सिर में चारों तरफ रैंग रही हो । यह कोई डरावना नहीं बल्कि सुहाना सा अनुभव होता है। मन बुद्धि में दबे संस्कार, पुरानी भावनाएं जो आपकी आध्यात्मिक प्रगति में बाधक होती है। सब ब्रम्हांड में विलीन होने लगती है। जब इस तरह से सिर में अनुभव होने लगे तो समझ जाए की आपका क्राउन चक्र सक्रिय हो रहा है।
उर्जा इसी प्रक्रिया के दौरान आपके शरीर और जीवन से सारी नकारात्मकता निकाल आपको शुद्ध करती है। परीणाम स्वरूप आपका मन शांत तथा पवित्र होने लगता है। सबसे अधिक मनुष्य आसक्ति में डुबा रहता है। बात चाहे दौलत की हो या कोई ओर आसक्ति की यह आपकी आध्यात्मिक प्रगति में सबसी बड़ी बाधक होती है। जैसे ही सहस्त्रार चक्र सक्रिय होने लगता है, आसक्तिया अपने आप टुटने लगती है। दुसरे शब्दों में कहा जाए तो आप एक अविरल बहती हुई नदी सा बन जाते हैं। जिसे अपना रास्ता बनाकर आगे बढ़ना आता है। कोई भी बाधा या रुकावट उसे बहने से रोक नहीं सकती।
आपके पुराने और सिमित सोच उठने लगती है। विचारधारा बदल जाती है। संक्षिप्त में कहें तो आपकी आसक्तिया टुटकर आपमें सारी सृष्टि कौन एक नजर देखने की क्षमता आ जाती है। जैसे ही चक्र सक्रिय होता है, आपका उर्जा के साथ संबंध अधिक घनिष्ठ हो जाता है। आपको उर्जा महसूस होने लगती है। आप अनुभव कर सकते हैं की किस बात या मनुष्य से नकारात्मक ऊर्जा आ रही है। परिणाम स्वरूप आपकी भोजन प्रणाली बदल जाती है। भौजन से मिलने वाली उर्जा को भी आप अनुभव कर लेते हैं। अतः शाकाहार या ताजे फलो की तरफ आपका रुझान बढ़ जाता है।
आपकी दिनचर्या चाहे जैसी भी रही हो क्राउन चक्र के सक्रियता के बाद उसमें बदलाव आ ही जाता है। समय और जीवन के प्रति आपकी सजगता बढ जाती है। परिणाम स्वरूप समय पर काम करना, खाना, पिनाक, सोना आदि सब अपने आप समय अनुसार होने लगते हैं। की बार आपको सिर के उपर दबाव के साथ पिडा का भी अनुभव हो सकता है। जब आप अपने मन के विरुद्ध में जाकर या समाज को खूश करने के लिए कुछ करते हैं तो ऐसा अनुभव होता है जैसा की हमने जाना यह चक्र आपको अध्यात्म के सर्वोच्च स्तर पर ले जाता है।
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं कि सहस्त्रार चक्र कैसे जागृत करें आपको समझ में आ गया होगा। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर