फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की तिथि को पड़ने वाली एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है। जो मनुष्य भी विजया एकादशी का व्रत करते हैं और कथा सुनते है उन्हें हर कार्य करने में,हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है। उनके घर में सुख-समृद्धि का स्थाई वास रहता है।
विजया एकादशी का महत्व
वैसे तो साल भर में आने वाली एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व है। परन्तु फागुन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली विजया एकादशी व्रत का अपना अलग ही महत्व है। क्योंकि कहा जाता है जो मनुष्य भी विजया एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें हर कार्य में विजय प्राप्त होती है। जो मनुष्य एकादशी व्रत करने का संकल्प लेंते है उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
विजया एकादशी के दिन भगवान का पूजन करने से मुक्ति प्राप्त होती है। विजया एकादशी के दिन तुलसी से भगवान का पूजन करने से दस हजार जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। स्वयं श्रीराम ने भी विजया एकादशी का व्रत किया और रावन के साथ युद्ध में विजय प्राप्त की।
विजया एकादशी में किसकी पूजा करना चाहिए
विजया एकादशी फागुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है। सभी कार्यों में विजय और सफलता प्रदायक ईस एकादशी को भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है।
इसे भी पढ़ें - महाशिवरात्रि क्यो मनाई जाती है
विजया एकादशी व्रत मे क्या खाना चाहिए
एकादशी का व्रत वैसे तो निर्जल रखना चाहिए, लेकिन बहुत से लोग यह व्रत रखने में असर्मथत होते हैं। तो ऐसे मैं वह फलाहारी व्रत और जलीय व्रत भी रख सकते हैं। एकादशी व्रत की शुरुआत एकादशी के दिन सुर्योदय से लेकर अगले दिन यानी द्वादशी के दिन सुर्योदय तक किया जाता है। तो आप एकादशी व्रत कर रहे हैं तो एकादशी के दिन सुर्योदय के पहले तक जल ग्रहण कर सकते हैं। लेकिन उसके बाद आपको एक बूंद भी जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।
और आप फलाहार व्रत कर रहे हैं तो आप जल और फल दोनों ग्रहण कर सकते हैं। आप फलों का रस, सुखा मेवा, दुध, चाय का सेवन कर सकते हैं।
एकादशी व्रत करने वालो को शाम को भोजन नहीं करना चाहिए। और यदि करते भी हैं तो रात को अच्छे से कुल्ला करके सोएं। दांतों में कोई भी अन्न कन अटका हुआ ना रहे।
साल 2023 में विजया एकादशी कब है
साल 2023 में विजया एकादशी 16 फरवरी 2023 दिन गुरुवार को है।
एकादशी तिथि प्रारम्भ - 16 फरवरी 2023 को सुबह 5 बजकर 32 मिनिट पर।
एकादशी समाप्ती - 17 फरवरी 2023 को सुबह 2 बजकर 49 मिनिट पर।
वहीं वैष्णव विजया एकादशी का व्रत रखा जाएगा 17 फरवरी 2023 दिन शुक्रवार को।
व्रत तोड़ने ( पारण ) का समय सुबह 8 बजकर 1 मिनिट से लेकर सुबह 9 बजकर 13 मिनिट तक।
पारणा तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय सुबह 8 बजकर 1 मिनिट पर।
विजया एकादशी व्रत मे पूजा कैसे कीया जाता है
- एकादशी के दिन प्रातः काल जल्दी उठे। स्नान आदि से निवृत होकर दाहिने हाथ में जल और थोड़े स फुल लेकर भगवान के समक्ष खड़े होकर संकल्प लें और कहे से विष्णु भगवान मैं (अपना नाम ले) गोत्र बोले, शहर का नाम ले, विजया एकादशी के दिन व्रत कर रहा हु। मेरे व्रत को निरवीघ्न मुक्त से संपन्न करना और अपनी मनोकामना कहे।
- हे भगवान विष्णु मैं इस मनोकामना से ईस व्रत को कर रहा हूं। और वह जल फुल सहित भगवान के समक्ष छोड़ दें।
- फागुन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी विजया एकादशी कहलाती है। विजया एकादशी के दिन प्रातः काल जल्दी उठे। स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं और भगवान को पिले पुष्प अर्पित करें और तुलसी दल अर्पित करें।
- भगवान के समक्ष शुद्ध देसी घी का दीपक जलाएं और एकादशी व्रत कथा सुनें। भगवान विष्णु की कथा सुनें। और भगवान विष्णु का चालिसा सुनें। जो मनुष्य ऐसे करेंगे उनके जीवन में हर कार्य में सफलता प्राप्त होगी।
- विजया एकादशी के दिन उन दिन भगवान विष्णु के मंत्र जाप को करते रहे और शाम को तुलसी जी की 11 परिक्रमा करें और शुद्ध घी का दीपक लगाएंव। और रात को भगवान विष्णु कै समक्ष अखण्ड दिपक लगाए और भगवान विष्णु के मंत्र का जाप करते रहे। भजन कीर्तन करें।
- यदि आप ऐसा करेंगे तो सचमुच आप देखना की कैसे आपको जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
- फागुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का शास्त्रोक्त नाम है विजया एकादशी। भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करते समय रावण पर विजय प्राप्त की। विजय प्राप्ति की कामना से एकादशी का व्रत किया।
सभी प्रकार के दुःख दूर करके सभी कार्यों में विजय और सफलता प्रदायक ईस विजया एकादशी को भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है।
विजया एकादशी की कथा
विजया एकादशी कुछ कथा सुनने के बाद धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की हे वासुदेव फागुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है, एकादशी का व्रत करने से किन फलों की प्राप्ति होती है।ईसके विधि विधान क्या है। कृपया मुझे विस्तार से बतलाईये।
योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे राजन फागुन मास के कृष्ण पक्ष की ईस सरस सिद्धी प्रदायक एकादशी का का नाम विजया है।उसका व्रत करने वाले मनुष्य को सभी कार्यों में विजय मिलती है। ईस विजया एकादशी के महात्म को सुनेंने, पढ़ने मात्र से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
एक प्राचीन कथा सुनाते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने आगे कहा एक समय देवॠषि नारद ने ब्रम्हाजी से यही प्रश्न किया था। तब ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था से नारद ध्यानपूर्वक सुनो ईस विजया एकादशी का व्रत।
मैं पुराने और पिछले जन्मों के पापों का हरन करके प्रत्येक क्षेत्र में व्रत करने वाले को विजय दिलाती है। रामायण के प्रसंग का वर्णन करते हुए ब्रम्हाजी ने आगे कहा त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया तब अनुज लक्ष्मन और सियाजी सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहां से दुष्ट रावण ने सीता जी का हरण कर लिया तब श्रीराम चंद्र जी और लक्ष्मण जी अत्यंत व्याकुल हुए और सिताजी कुछ खोज में चल दिए।
चुभते घुमते जब वे मरनासन्न जटायु के पास पहुंचे तो जटायु उन्हें सिताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमान जी ने लंका में जाकर सियाजी का पता लगाया। और उनसे श्रीरामचन्द्र जी एवं सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया।
वहां से लौटकर हनुमान जी श्रीरामचन्द्र जी के पास आए और सब समाचार सुनाया। श्रीरामचन्द्र जी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सहमति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्रीराम चंद्र जी समुद्र के किनारे पहुंचे तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त अथाह समुद्र को देखकर लक्ष्मनजी से कहा ईस समुद्र को हम किस प्रकार पार कर सकेंगे।
श्रीलक्ष्मनजी कहने लगे हे पुरुषोत्तम आप सबकुछ जानते हैं। यहां से आधा योजन दूर कुमारे व्दीप में वकदालभ्य नाम के मुनी रहते हैं। उन्होंने अनेको ब्रम्ह देखे हैं। आप उनके पास जाकर ईसका उपाय पुछिए। लक्ष्मन के ईस प्रकार के वचन सुनकर श्रीराम चंद्र जी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रनाम करके बैठ गए।
मुनि ने उनसे पुछा से राम आपका आना कैसे हुआ। रामचन्द्र जी कहने लगे हे ऋषिवर मैं अपनी सेना सहित यहां आया हूं और राक्षसों को जितने के लिए लंका जा रहा हु। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाईए। मैं उसी कारण आपके आया हु।
महर्षि वकदालभ्य बोले हे दशरथ पुत्र राम फागुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करने से निश्चित ही आपकी विजय होंगी। साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे। ईस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन स्वर्ण, चांदी, तांबा या मिट्टी का एक घड़ा लेकर उसे जल से भरकर उस पर पंचपल्लव रखने के बाद उसे वेदों पर स्थापित करें।
सात अनार एक जगह लाकर घड़ा रखने हेतु वेदी बनाए और घड़े के उपर जौ रखे। जौ के उपर भगवान श्रीनारायण की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित करें। एकादशी के दिन स्नान आदि से निवृत होकर धुप, लिप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करके वह दिन भक्ति पूर्वक घड़े के सामने व्यतीत करें।
रात्रि को भी उसी जगह बैठे रहे। और जागरण करें। व्दादशी के दिन नदी या तालाब के किनारे स्नान आदि से निवृत होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे दें। यदि तुम ईस व्रत को सेना पतीयो के साथ करोंगे तो अवश्य ही विजयी होंगे। ईसके बाद श्रीराम चंद्र जी ने विधी पुर्वक विजया एकादशी का व्रत किया।
उसके प्रभाव से लंका में राक्षसों पर विजय पाई। अतः हे राजन जो मनुष्य इस व्रत को विधिपूर्वक करेंगा उसे दोनो लोकों में विजय प्राप्त होंगी। अंत में ब्रम्हाजी ने नारदजी से कहा ईस व्रत को करने वाला तो हर जगह विजय पाता ही है। जो इस व्रत के महात्म को पढ़ता है उसे भी वाजपेई यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं कि विजया एकादशी व्रत की पुजा विधी और महत्त्व, आपके समझ में आ गया होगा और आपको ये पोस्ट अच्छी लगी होंगी। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।