जया एकादशी क्या है
जया एकादशी का क्या महत्व है
जो मनुष्य भी जया एकादशी का व्रत करते हैं वे अवश्य ही हजार वर्ष तक स्वर्ग में निवास करते हैं।जया एकादशी का व्रत रखने कि बहुत अधिक महत्व है।जौ मनुष्य जया एकादशी का व्रत नहीं कर पा रहे हैं वै जया एकादशी की कथा को अवश्य सुनें। उन्हें भी पुण्य की प्राप्ति होगी। वैसे तो साल में 24 एकादशीयां होती है, परन्तु जब अधिक मास आ जाता है , तब ये एकादशीयां 26 हो जाती है।मास में आने वाली सभी एकादशियों कि व्रत रखना बहुत ही अधिक पुण्यकारी होता है।जो मनुष्य भी एकादशी का व्रत करते हैं। भगवान विष्णु अपनी भार्या लक्ष्मी जी सहित उनकी मनोकामना शीघ्र पूरी करते हैं।जिस पर जगत नियंता भगवान और धन-धान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी जी प्रसन्न हो उसके लिए कुछ भी प्राप्य नहीं रह जाता। सभी देवी-देवताओं में और ग्रह नक्षत्रों के स्वामी हैं भगवान विष्णु। अतः आपकी पुजा आराधना और एकादशी का व्रत करने वाले पर सभी देवी-देवता कृपालु बने रहते हैं और वह व्यक्ति इस जीवन में सभी उपलब्धियों और सुखों को भोगता हुआ अन्त में अक्षकाल तक करता है विष्णु लोक निवास।
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जया एकादशी का व्रत कैसे रखें
जो मनुष्य भी एकादशी का व्रत करते हैं। उन्हें दशमी की शाम को खाना खाने के बाद मुंह को भली प्रकार से साफ कर लेना चाहिए । जिससे कोई अन्न कन दांतों में फसा हुआ ना रह जाए।रात्रि को भुमी पर शयण करें और एकादशी को प्रातः काल ब्रह्म मुहुर्त में उठकर नित्यकर्म और पुजा आराधना के बाद विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा आराधना करें।पुरा दिन भगवान के पुजन तथा भागवत के श्रवण , विष्णु पुराण के श्रवण , श्रीमद्भागवत गीता के श्रवण में लगाए और भगवान विष्णु के भजन कीर्तन में संलग्न रहे और साथ ही पुरा दिन जीव्हा पर भगवान विष्णु के जाप करते रहे।एकादशी की रात को जागरण अवश्य करें। भगवान विष्णु के समक्ष शुद्ध घी का दीपक या तिल के तेल का दीपक लगाएं।ये दीपक भगवान विष्णु के समक्ष सारी रात जलता रहे। ऐसा करने से भी भगवान विष्णु अपने भक्तों की मनोकामना शीघ्र पूरी कर देते हैं।व्दादशी को प्रातः काल स्नान,ध्यान करने के बाद सबसे पहले किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं औ उसे भगवान विष्णु के निमित्त दान व दक्षिणा देकर विदा करने के बाद ही भोजन ग्रहण करें।
शास्त्रों का कथन है कि दशमी के नाम से व्दादशी के मध्यान्ह तक निराहार रहने और एकादशी की रात्रि को जागरण करने पर ही एकादशीयो के व्रत का पुर्ण फल मिलता है।जो व्यक्ति एकादशी को निराहार रहते हैं और रात्रि भर जागरण नहीं करते उनको आधा फल ही प्राप्त होता है।जो व्यक्ति एकादशी को एक समय फलाहार करते हैं और जागरण नहीं करते उनको मात्र एक चौथाई फल की प्राप्ति होती है।सरल सिद्धी प्रदायक माघ मास के शुक्ल पक्ष की ईस एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है।ईस व्रत में भगवान कृष्ण की केशव नाम से पुजा की जाती है।ईस व्रत को करने वाले को भुत, प्रेत, पिशाच आदि निकृष्ट योनियों में जाने का भय नहीं रहता और अनेक जन्म के पाप नष्ट होकर ईस लोक और परलोक सभी सुख प्राप्त होते हैं।
साल 2023 मे जया एकादशी कब है
साल 2023 में जया एकादशी 1 फरवरी 2023 दिन बुधवार को है।
एकादशी तिथि प्रारम्भ - 31 जनवरी 2023 को सुबह 11 बजकर 53 मिनिट पर।
एकादशी तिथि समाप्त - 1 फरवरी 2023 को दोपहर 2 बजकर 1 मिनिट पर।
व्रत का पारण - व्रत का पारण 2 फरवरी को सुबह 7 बजकर 9 मिनिट से 9 बजकर 19 मिनिट तक।
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय दोपहर 4 बजकर 26 मिनिट है।
जया एकादशी के दिन क्या दान करना चाहिए
एकादशी के के दिन अन्न का दान करते हैं तो सबसे ज्यादा शुभ और सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है। इसके अलावा आप किसी गरीब को , किसी जरुरत मंद को या आसपास कोई मंदिर है, वहां पर भी आप दान करना चाहते हैं, वहां पर भी आप अनाज का दान कर सकते हैं। इस दिन ब्राह्मण को छतरी का दान करते हैं। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। इस दिन चप्पल का दान भी किया जाता है। इससे जन्मजन्मांतर के पितृ दोष मुक्ती मिलती है। एकादशी के दिन जल का दान करना बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।
एकादशी व्रत कथा
श्रीकृष्ण बोले हे पांडु पुत्र ईस एकादशी का नाम जया है इस का व्रत करने से मनुष्य ब्रम्हहत्या आदि पापों से छुटकर स्वर्ग को प्राप्त करता है। पिशाच आदि योनियों से भी मुक्ति मिल जाती है। इसलिए सभी को यह व्रत विधि पुर्वक करना चाहिए।
देवराज इन्द्र स्वर्ग में राज करते थे और अन्य सभी देवगण सुखपूर्वक स्वर्ग में रहते थे। एक समय इन इन्द्र अपने नन्दनवन में अप्सराओं के साथ क्रिडा कर रहे थे और गंधर्व गाण कर रहे थे।उन गंधर्वो में प्रसिद्ध पुष्पदत्त और उसकी कन्या पुष्पावती, चित्रसेन तथा उसकी स्त्री मलिन भी थी।मलिन का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित था।उस पुष्पवती माल्यवान को देखकर मोहित हो गई और काम बातों से चलायमान होने लगी। उसने रुप सोंदर्य हाल भाव आदि व्दारा माल्यवान को वश में कर लिया।
पुष्पवती की सुंदरता को देखकर माल्यवान भी उस पर मोहित हो गया।ये दोनों कामदेव के वश में हो गए। परन्तु इन्द्र के बुलाने पर नृत्य और गायन के लिए आना ही पड़ा। उन्होंने अप्सराओं के साथ गाना शुरू किया परंतु कामदेव के प्रभाव से उनका मन ना लगा और अशुद्ध गायन करने लगे।ईनकी भाव भंगिमाओ को देखकर इन्द्र ने इनके प्रेम को समझ लिया।और इसमें अपना अपमान समझकर इन दोनों को शाप दे दिया कि तुम मृत्यु लोक में जाकर पिशाच का रुप धारण करो और अपने कर्मों का फल भोगों।
इन्द्र का शाप सुनकर वे दोनों अत्यंत दुखी हुए और हिमाचल पर्वत पर पिशाच बनकर अपना जीवन व्यतीत करने लगे। रात-दिन में उन्हें एक क्षण भी निंद्रा नहीं आती थी।उस स्थान पर अत्यंत सर्दी थी। उनके दांत सर्दी से कटकटा रहे थे।एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा क्या मालूम हमने पिछले जन्म में ऐसे कौन से पाप किए हैं जिससे हमें इतना दुःख दायी ये पिशाच योनि प्राप्त हुई।दैवयोग से एक दिन माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी आई।उस दिन उन दोनों ने कुछ भी भोजन न किया ना कोई पाप किया।वे दोनों अत्यंत दुखी मन से पिंपल के वृक्ष के नीचे बैठे रहे जब सुर्य नारायण अस्ताचल को चले गए तब रात्रिभर इन दोनों को सर्दी के कारण निद्रा ना आई।
दुसरे दिन प्रातः काल होते ही ईस व्रत और रात्रि जागरण के प्रभाव से उनकी पिशाच देह छुट गई और अत्यंत सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से अलंकृत होकर दोनों ने स्वर्ग लोक को प्रस्थान किया।उस समय आकाश में देवगण तथा गंधर्व उनकी स्तुति और पुष्प वर्षा करने लगे। स्वर्ग में जाकर उन्होंने ने देवराज इन्द्र को प्रणाम किया। इन्द्र ने इनको उनके प्रथम रूप में देखकर अत्यंत चकित होकर पुछा तुमने अपने पिशाच योनि से किस प्रकार छुटकारा पाया।सब हाल बतलाओ।माल्यवान बोले हे देवेन्द्र भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से हमारी पिशाच देह छुटी है।
तब इन्द्र बोले हे माल्यवान भगवान की कृपा और एकादशी के व्रत करने से ना केवल तुम्हारी पिशाच योनि छुट गई वरन हमारे लिए भी वंदनीय हो गए हो। भगवान विष्णु और शिव के भक्त हम लोगों के लिए भी वंदनीय है। अतः आपको धन्य है।अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो। श्रीकृष्ण ने अंत में कहा हे राजा युधिष्ठिर ईस तरह जया के व्रत से बुरी योनि छुट जाती है। जिस मनुष्य ने एकादशी का व्रत किया है उसने मानो यज्ञ,जप , तप , दान आदि पुण्य कार्य कर लिए।जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करते हैं।वे अवश्य ही हजार वर्ष तक स्वर्ग में निवास करते हैं।
निष्कर्ष
मैं आशा है कि जया एकादशी कब है, व्रत विधि, महत्व और कथा, ये आपको समझ में आ गया होगा। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।