हिंदी पंचांग के अनुसार पौष माह के शुक्ल पक्ष की पुर्णिमा को पौष पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि पौष पूर्णिमा के दिन स्नान, दान, जप, तप करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
पौष पूर्णिमा व्रत महत्व
पूर्णिमा तिथि का हिन्दू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष में जब चन्द्रमा बढ़ते हुए पुर्ण कलाओं में आ जाता है तो पुर्णिमा तिथि होती है। अर्थात शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पुर्णिमा तिथि कहते हैं। वहीं ईस पुर्णिमा तिथि के अगले दिन से ही नया महिना शुरू हो जाता है।
पुर्णिमा तिथि के दिन दान, पवित्र नदियों में स्नान का बहुत अधिक महत्व माना जाता है।ईस दिन दान पुण्य करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।पुर्णिमा तिथि को चन्द्रमा अपनी पुर्ण कलाओं के साथ उदय होता है। पुर्णिमा तिथि के दिन चन्द्र पुजा करने से चन्द्रमा आपके कुण्डली में मजबूत होता है। जिससे मानसिक और आर्थिक समस्याएं दुर होती है। माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। और सुखों की प्राप्ति होती है। पुर्णिमा तिथि पर व्रत रखकर भगवान विष्णु का पूजनऔर चन्द्रमा को अर्घ्य देने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। यदि धर्म शास्त्रों की मानें पुर्णिमा तिथि मां लक्ष्मी को अती प्रिय होती हैं। इसलिए ईस दिन श्री हरि विष्णु के साथ माता लक्ष्मी का पूजन करने से दरिद्रता का नाश हो जाता है।
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पौष पूर्णिमा व्रत कब है
साल 2023 में पौष पूर्णिमा व्रत 6 जनवरी 2023 दीन शुक्रवार को है। चन्द्रोदय का समय रहेगा शाम को 5 बजे। शुक्ल पूर्णिमा तिथि का आरंभ होंगा 5 जनवरी की रात 2 बजकर 14 मिनिट पर और समाप्ति 7 जनवरी की सुबह 4 बजकर 37 मिनिट पर होंगी।
पुर्णिमा व्रत कि पुजा विधी
> पुर्णिमा के दिन स्नान आदि से निवृत होकर एक चौकी पर पिला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी जी की प्रतिमा स्थापित करें।
> ईसके बाद हाथ में गंगाजल और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लें।
> ईसके बाद मौसमी फल और पान सुपारी नैवेद्य भगवान को अर्पित करें। पंचामृत भगवान को अर्पित करें।भुने हुए चने से भगवान का भोग लगाएं।मां लक्ष्मी को श्रृंगार सामग्री साथ में उनकी प्रिय चिजे अर्पित करें।
> ईसके बाद पुर्णिमा की कथा अवश्य सुनें।
> ईस प्रकार पुर्णिमा तिथि के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा, आराधना करते हैं, कथा सुनते हैं तो आपके घर की दरिद्रता सदा के लिए दुर हो जाएंगी। पुर्ण विश्वास और सच्ची निष्ठा के साथ ही पुर्णिमा के दिन स्नान,दान करें,जप करें।जप जितना अधिक किया जाएगा श्रीहरि उतना ही अधिक प्रसन्न होंगे और आपकी झोली खुशियों से भर देंगे।आपकी दुःख दरिद्रता सदा के समाप्त हो जाएंगी।
पौष पूर्णिमा की कथा
पुर्णिमा की कथा सुनने से आपको मन चाहा वर प्राप्त होगा। आपको सौभाग्य की प्राप्ति होगी। जिनके यहां पुत्र नहीं है उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी।
किसी नगर में चंद्रहास नाम का राजा था। उसकी पत्नी का नाम किर्तिका था। वहीं नगर में एक ब्राह्मण और ब्राम्हणी रहते थे। उनके यहां धन धान्य कि कोई कमी नहीं थी पर उनकी कोई संतान नहीं थी उस वजह से वे बहुत दुःखी थे।एक समय एक तपस्वी उस नगरी में आया। वह तपस्वी उस ब्राह्मण के घर को छोड़कर सभी घरों से लेकर भोजन करता।पर वह रुपवती से भिक्षा नहीं लेता था।एक दिन जब तपस्वी ने किसी अन्य घर से भिक्षा दी और गंगा के किनारे जाकर प्रेम पुर्व क खाने लगा तब ज्ञानेश्वर ने तपस्वी के सभी कार्यों को देखा और अपनी भिक्षा के अनादर को देखकर ज्ञानेश्वर तपस्वी से जाकर बोले आप सभी घरों से भिक्षा लेते हैं पर मेरे घर से नहीं लेते।तब तपस्वी ने कहा उसके घर की भिक्षा बड़ी पापदायीनी मानी जाती है।पतितो का अन्न खाने से आप मनुष्य पतित हो जाता है। क्योंकि तुम निसंतान हो मैं तुम्हारे घर की भिक्षा नहीं ले सकता। ज्ञानेश्वर ने तपस्वी के पैर पकड़ लिए और बोला मुझे आप पुत्र प्राप्ति का उपाय बताईए।मेरे ईस दुःख को खत्म करें।आप मेरे दुःख को खत्म करने में समर्थ है।तब उसके व्दारा प्रार्थना करने पर तपस्वी कहने लगा। तुम चण्डी की आराधना करो।और आकर उसने ब्राम्हणी को सारी बात बताई। और खुद चण्डी की तपस्या करने के लिए वन में चला गया।
उसने चण्डी की उपासना की, उपवास किया और सोलहवें दिन चण्डी ने उसे दर्शन दिया और कहा तुम्हें पुत्र होगा।जब वह सोलह वर्ष का हो जाऊंगा तो मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगा।पर तुम 32 पुर्णिमा के व्रत करोंगे तो वह दिर्घायु प्राप्त करेंगा।जितनी तुम्हारी समर्थता हो उतनै घी के दिपक बनाकर शिवलिंग के सामने जलाना।पर ऐसा 32 पुर्णिमा को ही करना।प्रातःकाल होने पर ईस स्थान पर तुम्हें एक आम का पेड़ दिखाई देना।पेड़ पर चढ़कर एक आम तोड़ना और घर पर ले जाकर पत्नी को सारी बात बताना और स्नान करके पत्नी को खिलाना।उसके संतान होंगी।
जब वह सबेरे उठा उसने वहां एक आम के पेड़ देखा और आम लगा देखा।पर वह आम तोड न पाया क्योंकि आम बहुत ऊंचे लगा था। वह गणेश जी से प्रार्थना करने लगा की से गणेश जी मेरा कार्य सिद्ध करें और मैं मेरा मनोरथ पूर्ण कर सकु। गणेश जी की कृपा से वह पेड़ पर चढ़ गया।उस फल को देखा उसे महसूस हुआ कि ये तो वहीं वरदान वाला फल है। उसने फल तोड़ा और पेड़ के नीचे उतर आया और फिर घर पर जाकर उसने अपनी पत्नी को दिया।
नौंवे महिने उसके पुत्र हुआ और पुत्र बहुत ही सुन्दर और सुशील था। उसके माता-पिता ने 32 पुर्णिमा का व्रत करना शुरू किया। सोलहवां वर्ष लगते ही माता-पिता को चिंता होने लगी कि कहीं सोलह वर्ष होने पर बेटे कि मृत्यु तो नहीं हो जाएंगी। इसलिए उन्होंने अपने मन में विचार किया कि ये घटना अगर उनके सामने घटित हुई तो क्या होगा।
उन्होंने उस बच्चे के मामा को बुलवाया और कहा कि हमारी ईच्छा है कि देविदास को तुम एक वर्ष के लिए काशी में ले जाकर विद्या ग्रहण करवाओ।उसे अकेला बिल्कुल नहीं छोड़ना , तुम सदा उसके साथ रहना।ईस तरह से उन्होंने अपने बेटे को एक वर्ष के लिए काशी भेज दिया। किन्तु उन्होंने यह बात मामा को नहीं बताई। ज्ञानेश्वर ने अपनी पुत्री की मंगल कामना के लिए भगवती की आराधना शुरू कि और फिर 32 पुर्णिमा का व्रत पुरा कर लिया।
कुछ दिनों के बाद मामा भांजा किसी गांव में ठहरे हुए थे। जिस धर्मशाला वे ठहरे हुए थे वहां एक बारात ठहरी हुई थी। लग्न के समय वर को कोई रोग हो गया।वर के पिता ने कुटुंबियों के साथ विचार विमर्श किया कि वे देवीदास को अपने साथ ले जाते हैं और बाद में विवाह के अन्य काम अपने पुत्र के साथ करवा दे।
वर का पिता देविदास के पास गया और बोला तुम थोड़ी देर के लिए अपने भांजे को हमें दे दो ताकि लगन का काम सुचारू रूप से हो सके। उसके मामा बोले वर को जो मिले वो है देना।मेरा भांजा वर बन जाएंगा।
अब वे मान गए और देविदास को वर बनने के लिए भैज दिया। विवाह कार्य विधि पुर्वक सम्पन्न हो गया। पत्नी के साथ भोजन ना किया और पत्नी ने देखा कि उसकी पत्नी की आंखों में आंसू हैं।वह बोली आप उदास क्यों है।लड़के ने सारी बात बताई। उस कन्या ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है। अग्नि के सामने फेरे लेकर मैंने आपके साथ विवाह किया है।
देविदास ने कहा ऐसा मत कहिए। अभी मेरी आयु बहुत छोटी है।मेरी मृत्यु के बाद तुम्हारा क्या होगा। पत्नी बोली जो होगा सो देखा जाएगा। दोनों ने साथ में भोजन किया और सो गए।देविदास ने जाने से पहले अपनी पत्नी को तिन रत्नों से जड़ी अंगुठी दी। और एक रुमाल दिया और कहा इसे मेरा संकेत समझकर स्थिर चित्त हो जाना।मेरा जन्म मरण जानने के लिए एक पुष्प वाटिका लगाओ और वहां नौ मलिका लगाओ। और उसे जल से सिंचित करते रहो।
जिस दिन यह सुख जाएगा समझ लेना मेरे प्राण का अन्त हो गया,मेरे प्राण निकल गए और फिर से हरे भरे हो ए समझ लेना मैं जिवीत हो गया।और उसे मेरा संकेत समझना। प्रातः होतै ही विवाह कार्य सम्पन्न हुए तो कन्या ने अपने पिता से कहा यह मेरा पति नहीं है।मेरा पति वहीं है जिसका रात्रि में मेरे साथ विवाह हुआ था। यदि यह मेरा पति है तो मुझे बताएं कि रात्रि में हमारी क्या बातें हुई।ईसने मुझे क्या दिया।
ये बातें सुनकर वर बोला मैं कुछ नहीं जानता वह लज्जित होकर वहां से चला गया और बारात भी वापस लौट गई। मामा भांजा काशी अध्ययन के लिए चले गए।एक दिन काल से प्रेरित होकर एक सर्प देविदास को काटने के लिए वहां पहुंचा।जहर की ज्वाला से सांरे स्थान जहरीला हो गया। पुर्णिमा व्रत कि कृपा से सांप उसे कांट ना पाया।काल वहां आया उसके चरणों से उसके प्राण को निकालने कि कोशिश करने लगा और वह मुर्छित हो गया। भगवान शिव पार्वती भी वहां आए।
उसे मुर्छित दशा में देखकर माता पार्वती ने शिव जी से कहा ईसकी माता ने 32 पुर्णिमा का व्रत किया था।ईसे प्राण दे। भक्त वत्सल भगवान ने उसे प्राण दान दिए।व्रत के प्रभाव से काल को भी पिछे हटना पड़ा। उसकी स्त्री उसकी प्रतिक्षा करती थी।उसे दिखा कि पुष्प वाटिका में कुछ भी न रहा।साथ ही देखा कि सब हरा भरा हो गया। ऐसा देखकर वह बहुत हर्षित हुई और अपने पिता से बोली पिताजी मेरे पति ठीक है। उन्हें डुंडिए।उधर मामा भांजा भी सोलहवां वर्ष पुर्ण होने पर काशी से वापस चल पड़े और कन्या के घर पहुंच गए। कन्याने अपने वर को पहचान लिया।
ज्ञानेश्वर 32 पुर्णिमा के व्रत करने से पुत्रवान हो गया ओर जो भी स्त्री ईस व्रत को करती है वह कभी विधवा नहीं होती, सौभाग्यवती रहती है।यह व्रत पुत्र पौत्रों को सुख देने वाला और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। भगवान शिव कि कृपा से 32 व्रत करने वालों की हर इच्छा पूरी हो जाती है ।
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं कि पौष पूर्णिमा व्रत कब है, महत्व, पुजा विधी,कथा, आपको बहुत पसंद आई होगी। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे जरूर शेयर करें।