षटतिला एकादशी व्रत की पुजा विधी।
षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। सभी एकादशी की तरह षटतिला एकादशी व्रत के नियम भी दशमी तिथि से ही आरंभ हो जाते हैं इसलिए दशमी तिथि को दूसरे प्रहर के भोजन के पश्चात कुछ ना खाएं । दशमी के दिन सबसे पहले गाय के गोबर में तिल मिलाकर 108 उपले बना ले एकादशी व्रत संकल्प के समय इन्हीं उपलो का उपयोग से श्री हरि विष्णु की पूजा करें ।
षट्तिला एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर तिल के स्नान आदि से निवृत होकर साफ वस्त्र धारण करें श्री हरि विष्णु का स्मरण करें व्रत का संकल्प लें । घर के मंदिर में श्री हरि विष्णु की मूर्ति या फोटो के सामने गंगाजल में तिल मिलाकर तस्वीर समेत चारों तरफ छींटे भगवान विष्णु को पंचामृत में तिल मिलाकर स्नान कराएं घटस्थापना करें इसके बाद देसी घी का दीपक जलाएं भगवान विष्णु की प्रतिमा या फोटो को वस्त्र पहनाएं पूजा के दौरान भगवान को धूप दीप नैवेद्य आदि चढ़ाएं फूल अर्पित करें । उड़द व तुलसी व फलों का भोग लगाएं षट्तिला एकादशी के दिन काले तिल के दान का बड़ा महत्व है अन्न तिल आदि दान करने से आरोग्य जीवन व धन - धान्य में वृद्धि होती है शाम के समय भगवान विष्णु का पूजन कर उन्हें तिल का तिलक लगाएं फिर 5 मुद्री तिल लेकर 108 बार ( ओम नमो भगवते वासुदेवाय ) मंत्र का जाप करें।
षटतिला एकादशी की व्रत कथा भी सुने भगवान विष्णु की प्रिय तुलसी के समीप घी का दीपक जलाएं हो सके तो तिल की आहुति दे । रात में कीर्तन करे इसी के साथ भगवान से किसी प्रकार से हुई गलती के लिए क्षमा मांगे । एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर सुबह जल्दी स्नान करें भोजन बनाकर भगवान विष्णु को भोग लगाएं उसके बाद जरूरतमंद या फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएं।भोजन में तिल से बने किसी चीज को शामिल करें फिर दक्षिणा और तिल का दान करें इसके बाद व्रत खोलें भोजन करवाने के पश्चात दान दक्षिणा देकर विदा करें तत्पश्चात स्वयं भोजन ग्रहण करें।
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षटतिला एकादशी के उपाय।
मान्यता है कि षट्तिला एकादशी के दिन व्यक्ति अगर तिल का प्रयोग 6 प्रकार से करें तो पाप कर्मो से मुक्त होकर हजारों वर्षों तक स्वर्ग लोक में सुख भोगता है।
षटतिला एकादशी का महत्व।
पृथ्वी पर कर्म से ही हमारे पाप और पुण्य का लेखा-जोखा तैयार होता है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं संसार में कोई भी जिव एक पल भी कोई कर्म किए नहीं रह सकता। इसलिए जाने अनजाने कभी ना कभी हम सभी पाप कर्म कर बैठते हैं और पापों से मुक्ति के लिए भी कर्म करना पड़ता है।
शास्त्रों में कई ऐसे उपाय अर्थात कर्म बताएं गए हैं जिनसे पाप कर्मो के प्रभाव से मुक्ति मिल सकती है।ऐसा ही एक कर्म है षट्तिला एकादशी का व्रत।ईस एकादशी को षट्तिला एकादशी के नाम से जाना जाता है और अपने नाम के अनुसार इस एकादशी में 6 प्रकार से तिलों का उपयोग करना श्रेष्टतम बताया गया है जो की इस प्रकार है।
तिल के 6 प्रयोग और 6 लाभ।
1.तिल का स्नान - सबसे पहले तिल जल में मिलाकर स्नान के करने है। स्नान करने के बाद पिछले वस्त्र पहनते हैं। ऐसा करने से दुर्भाग्य का नाश होता है।
2.तिल का उबटन - तिल के दुसरे प्रयोग में तिल का का उबटन बनाकर उपयोग करते हैं। इससे शरीर को लाभ मिलता है। आरोग्य की प्राप्ति होती है। सर्दी के विकार दूर होते हैं और इस प्रकार व्रत को करने से नेत्रों के विकार भी दुर होते हैं।
3.तिल का हवन - पांच मुठ्ठी तिल से हवन करते हैं। हवन करते समय 108 बार 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें।इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4.तिल का तर्पण - ईसके लिए आप दक्षिण दिशा की ओर मुख करके खड़े हो जाएं और विधीवत रुप से तिल का तर्पण पित्रों के निमित्त करें। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है और संकट दूर होते हैं।
5.तिल का भोजन - संध्या के समय तिल, तिल युक्त भोजन बनाकर भगवान श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी को भोग लगाकर उसका सेवन करें।ईस दिन तिल युक्त फल आहार ही होना चाहिए।यह सभी प्रकार से शरीर के संताप को समाप्त करके आरोग्य प्रदान करता है।
6.तिल का दान - महाभारत में उल्लेख मिलता है की जो भी व्रती माघ मास में ऋषि मुनि या गरिबों को तिल का दान करता है वह नर्क के दर्शन नहीं करता।माघ मास में आप जितने भी तिलों का दान करेंगे उतने हजार वर्षों तक स्वर्ग में रहने का अवसर प्राप्त होता है।
षटतिला एकादशी व्रत करने से दुर्भाग्यनाश, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होते हैं तथा वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। षटतिला एकादशी व्रत करने से धन-धान्य और समृद्धि मिलती है। तिल से भरा कलश दान करने से आपके भण्डारे भरे रहते हैं।महिलाएं यह व्रत करती है तो उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और यदि जोड़े से व्रत किया जाता है तो उनका दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है।
षटतिला एकादशी पर कैसे करें पूजन।
एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि ये महाराज पृथ्वी लोक में मनुष्य ब्रम्हहत्या आदि महापाप करते हैं,पराये धन की चोरी और दुसरे की उन्नति देखकर ईष्र्या करते हैं।साथ ही की प्रकार के व्यसनों में फंसे रहते हैं फिर भी इनको नर्क प्राप्त नहीं होता उसका क्या कारण है।वे न जाने कौन सा दान-पुण्य करते हैं जिससे उनके पाप नष्ट हो जाते हैं।यह सब कृपा करके आप बतलाए।
पुलस्त्य ऋषि कहने लगे कि हे महानुभाव आप ने मुझसे अत्यंत ही गंभीर प्रश्न पुछा है। इससे संसार के जिवो का अत्यंत भला होंगा।ईस भेद को ब्रम्हा, विष्णु,रुद्र तथा ईन्द्र आदि भी नहीं जानते। परन्तु मैं आपको यह मुख्य तत्व अवश्य बताउंगा।
उन्होंने कहा कि माघ मास लगते ही मनुष्य को स्नान आदि नित्य कर्म करके शुद्ध रहना चाहिए।ईन्द्रीयो को वश में करके काम, क्रोध,लोभ, मोह, अहंकार, ईष्र्या तथा व्देष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए। पुष्य नक्षत्र में गोबर,कपास और तिल मिलाकर उसके कण्डे बनाने चाहिए। फिर उन कण्डों से 108 बार हवन करना चाहिए। हवन करते समय भगवान विष्णु के मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। जिस दिन मुल नक्षत्र हो तथा एकादशी तिथि भी हो तो अच्छा पुण्य फल देने वाले नियमों को ग्रहण करें। रात्रि को जागरण करें। उसके दुसरे दिन धुप,दिप, नैवेद्य आदि से भगवान का पुजन करके उनको खिचड़ी का भोग लगाएं।
ईसके बाद पेठा, नारियल,सिताफल या सुपारी का अर्ध्य देकर स्तुति करें।"हे भगवान आप दोनों को शरण देने वाले हैं।ईस संसार में फंसे हुओ को उध्दार करने वाले हैं।हे पुण्डरीकाक्ष , हे विश्वनाथन, हे रुद्रमण्यम , हे पूर्वज , हे जगतपत्थे आप लक्ष्मीजी सहित ईस तुक्ष अर्ध्य को ग्रहण करें"। ईसके बाद जल से भरा हुआ घड़ा ब्राम्हण को दान करें। ब्राह्मण को काली गाय और तिल का पात्र दान करना भी अति उत्तम माना गया है। तिल का स्नान और भोजन दोनों ही श्रेष्ठ है।
जो मनुष्य जितने तिलों का दान करता है , उतने ही हजार वर्ष स्वर्ग में निवास करता है। षटतिला एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण का नाम मंत्र 8 या 20 या 108 बार या 1000 बार अवश्य जाप करें।
षट्तिला एकादशी को किसकी पूजा करनी चाहिए
ईस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाने के लिए व्रत का पालन किया जाता है।
षट्तिला एकादशी को क्या दान करना चाहिए
शास्त्र कहते हैं कि 8 या 80 वर्ष तक के सभी को एकादशी व्रत करना चाहिए। लेकिन जो लोग किसी कारण से व्रत नहीं कर सकते उन्हें क्या करना चाहिए।
षटतिला एकादशी के दिन काली गाय दान करने का विशेष महत्व है। शास्त्र कहते हैं कि कलयुग में मनुष्य के प्राण अन्न में बसते है। अतः व्रत , उपवास सभी के लिए संभव नहीं है। अतः ईसका उपाय है सुपात्र को दान।अन्न दान अर्थात प्राणदान, अतः आवश्यकतानुसार व्रत , उपवास को दान में बदल सकते हैं।जो भुखे है उन्हें अन्न दान करें,प्यासे हैं उसे जल दान करें, जिन्हें वस्त्रों की आवश्यकता है। उन्हें वस्त्र दान करें।
आप व्रत करें ना करें प्रत्येक एकादशी या व्दादशी को अन्नदान अवश्य करें। पुराणों में वर्णित है कि विधी पुर्वक या अविधी पुर्वक व्दादशी को जो भी दान किया जाता है वो मेरु पर्वत के समान हो जाता है।
2023 में षट्तिला एकादशी कब है।
षटतिला एकादशी 18 जनवरी दिन बुधवार कृष्ण पक्ष को है।
एकादशी तिथि प्रारम्भ - 17 जनवरी 2023 मंगलवार को शाम 06 बजकर 06 मिनट पर।
एकादशी तिथि समाप्ति - 18 जनवरी 2023 को शाम 04 बजकर 03 मिनट पर।
पारण - 19 जनवरी गुरूवार को सुबह 07 बजकर 14 मिनट से सुबह 09 बजकर 21 मिनट तक है।
षट्तिला एकादशी व्रत कथा
एक समय नारद मुनि भगवान नारायण धाम वैकुंठ पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान विष्णु से षट्तिला एकादशी के व्रत के महत्व के बारे में पुछा। नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने बताया कि प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी। उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी। वह मेरी अनन्य भक्त थीं और श्रद्धा भाव से मेरी पूजा करती थी। एक बार उसनै एक महीने तक व्रत रखकर मेरी उपासना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया परंतु वह कभी ब्राह्मण और देवताओं के निमित्त दान नहीं करती थी।
इसलिए मैंने सोचा कि वह स्त्री वैकुंठ में रहकर भी अतृप्त। रहेंगी। अतः एक दिन मैं स्वयं उसके यहां भिक्षा मांगने गया। जब मैंने उससे भिक्षा की याचना की तो उसने एक मिट्टी का पिंड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया। मैं वह पिंड लेकर अपने धाम लौट आया। कुछ समय बाद वह देह त्यागकर मेरे लोक में आ गई। यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और बोली कि मैं तो धर्मपरायण हुं फिर मुझे खाली कुटिया क्यु मिली। तब मैंने उसे बताया की यह अन्नदान न करने और मुझे मिट्टी का पिंड देने से हुआ है।
फिर मैंने उसे बताया कि जब देव कन्याए आपसे मिलने आए तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षट्तिला एकादशी व्रत का विधान ना बताए। उस स्त्री ने ऐसा ही किया और जो विधियों को देव कन्याओं ने कहा था उस स्त्री ने षट्तिला एकादशी का व्रत किया। षट्तिला एकादशी के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्नधन से भर गई। इसलिए हे नारद इसे सत्य मानो की जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्नदान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं कि षट्तिला एकादशी कब है, पुजा विधी महत्व, आपके समझ में आ गया होंगा। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।