जैसा कि आप सभी जानते हैं भारत में शुरुआत के समय से ही प्रकृति को देवो का स्थान दिया गया है और मकर संक्रांति का पर्व प्रकृति को समर्पित है। दरअसल यह एक पुरी तरिके से वैज्ञानिक त्योहार है और सुर्य की स्थिति बदलने से उस त्योहार को मनाया जाता है।
जैसा कि आप जानते हैं कि सनातन धर्म और हिन्दू धर्म में अधिकतर जो परंपराएं और मान्यताएं हैं वो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बनाई गई है। मकर संक्रांति को भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है और अलग-अलग तरीको से मनाया जाता है।
गुजरात में मकर संक्रांति को लोग उत्तरायण के नाम से जानते हैं तो वहीं राजस्थान, बिहार और झारखंड में उसे सुकरात कहा जाता है। तामिलनाडु में ईसे पोंगल के नाम से, आंध्रप्रदेश, केरला और कर्नाटका में केवल संक्रांति के नाम से जाना जाता है,तो उत्तरप्रदेश में इसे खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। हरीयाना में मांघी के नाम से जानते हैं।असम में बिहु के नाम से जानते हैं। कश्मीर में शिशुर संक्रांत के नाम से जानते हैं।
मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है
हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध त्यौहार है और यह त्योहार भारत के की राज्यों में मनाया जाता है और यह की अन्य देशों में भी मनाया जाता है। मकर संक्रांति को 14 या15 जनवरी को मनाया जाता है। पौष मास में जब सुर्य मकर राशि में आता है तभी ईस त्योहार को मनाया जाता है।ईस दिन खिचड़ी खाने, खिचड़ी दान देने का विशेष महत्व होता है।
मकर संक्रांति का त्यौहार किसानों का मुख्य त्योहार है।ईस त्योहार में सभी लोग भगवान सुर्य की पुजा करते हैं।यह पर्व खेती और किसानी से जुड़े लोगों व्दारा बहुत ही
हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। वसंत ऋतु की आगमन की खुशी में भी यह पर्व मनाया जाता है। अधिकतर राज्यों में इस दिन लोग पतंग उड़ाते हैं ताकि सुर्य भगवान प्रसन्न हो सके।मकर संक्रांति के दिन लोग अपने घरों में तिल की मिठाईयां बनाकर बांटते हैं और खाते भी है। तिल से बनी मिठाइयां बहुत ही स्वादिष्ट और सेहत के लिहाज से भी बहुत अच्छी होती है।
मकर संक्रांति क्यो मनाई जाती है वैज्ञानिक कारण
हिन्दू धर्म में माह को दो पक्षों में बाटा गया है, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। ठिक इसी तरह से वर्ष को दो आयामों में बाटा गया है एक है उत्तरायण और एक है दक्षिणायन। अगर दोनों को मिला दिया जाए तो एक वर्ष पुरा हो जाता है। मकर संक्रांति के दिन से सुर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ हो जाती है। इसलिए मकर संक्रांति को उत्तरायण भु कहा जाता है।
इसके अलावा पोष मास में जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। क्योंकि सुर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति एक ऐसा त्यौहार है जो सम्पूर्ण भारतवर्ष में धुम्रधाम से मनाया जाता है।
मकर संक्रांति का क्या अर्थ है
जब सुर्य गोचरवश भ्रमन करते हुए मकर राशि में प्रवेश करतै हो तब इसे मकर संक्रांति कहते हैं। सुर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाने को संक्रांति कहते हैं। एक संक्रांति से दुसरे संक्रांति की अवधि ही सौरमास है। वैसे तो सुर्य संक्रांति बारह है लेकिन इनमें से चार संक्रांति महत्वपूर्ण है, जिनमें मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रान्ति है।
हर साल मकर संक्रांति अलग अलग दुनिया पर , विभिन्न प्रकार के वस्त्र पहनकर , विविध शस्त्र, भोज्य पदार्थ और अन्य पदार्थो के साथ आती है।
मकर संक्रांति किस तिथि को मनाया जाता है
हर साल जनवरी की 14 तारीख को मनाया जाता है।
मकर संक्रांति कहा मनाई जाती है
मकर संक्रांति भारत ही नहीं दुनिया के अन्य देश जैसे नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, कम्बोडियाई, थाईलैंड आदि देशों में बड़े धुम धाम से मनाया जाता है।
मकर संक्रांति पुजा विधी।
- मकर संक्रांति के दिन पुजन सामग्री लेकर स्नान के बाद भगवान सुर्य देव की और मुख करके बैठ जाएं। इसके बाद गंगा जल वाले लोटे में तिल और चावल डाले।
- इसके बाद उस लोटे में थोड़ी शक्कर, मौली और लाल पुष्प डाल दें।लोटे में घी और एक चम्मच दूध डालें।इन सभी सामग्री को लोटे में डालकर भगवान सुर्य देव की और मुख करके उन्हें अर्घ्य दें और इस बात का ध्यान रखें कि अर्ध्य का जल जमीन पर ना गिरे और अर्ध्य देते हुए भगवान सुर्य के मंत्र का जाप जरुर करे। (ॐ सुर्याय नमः,ॐ भास्कराय नमः)।सुर्य देव को अर्ध्य देने के बाद उसी स्थान पर तीन माला सुर्य मंत्र का जाप करें।
- इसके बाद पिंपल के वृक्ष कि जड़ में देशी घी का दीपक जलाएं और मौली लेकर पिंपल के वृक्ष पर लपेट दें और पिंपल के वृक्ष को अपनी मनोकामना बताए और लौंग भी दीपक म डाल दें। इसके बाद अपने पित्रों के नाम से किसी वस्तु का दान करें। मकर संक्रांति के दिन अपने पित्रों का तर्पण करें।ईस उपाय को करने से मनोकामना पूरी हो जाएगी।
मकर संक्रांति कैसे मनाई जाती है।
मकर संक्रांति के पर्व को विभिन्न राज्यों में अलग अलग नामों से जाना जाता है और मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है। इस दिन सुर्य देव की पुजा की जाती है और चावल, दाल की खिचड़ी बनाई जाती है और दान भी किया जाता है।
गुजरात और राजस्थान में मकर संक्रान्ति को उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन दोनो ही राज्यों में बडै धुम से पतन उत्सव का आयोजन किया जाता है।
आंध्रप्रदेश में तिन दिन का पर्व मनाया जाता है। वहीं तामिलनाडु में खेती किसानी के पूर्व के रूप में संक्रांति को पोंगल के नाम से भी मनाया जाता है। इस दिन घी में दाल चावल की खिचड़ी बनाई और खाई जाती है।
महाराष्ट्र में भी इसे संक्रांति या मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यहां लोग गजक और तिल के लड्डू खाते एवं दान करते हैं। एक दुसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते है। तो वहीं पश्चिम बंगाल में मकर संक्रान्ति के दिन हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है। तो असम में इसे भौगोली बिहु के नाम से जाना जाता है।
मकर संक्रांती के पिछे क्या कहानी है
प्राचीन समय में सगर नाम के राजा हुए, जिनको हम भगीरथ के नाम से भी जानते हैं। जो अपने परोपकार और पुण्य कर्मो के कारण तिनों लोकों के साथ चारों दिशाओं में बहुत प्रसिद्ध है। राजा सगर की इतनी किर्ति को देखते हुए देवताओं के राजा इन्द्र को यह चिंता होने लगी की कही राजा सगर स्वर्ग पर अपना अधिकार ना जमा लें और स्वर्ग के राजा ने बन जाए। जब इन्द्र इन्हीं सब चिंता में डुबे हुए थे। तब राजा सगर ने अपने राज्य में एक अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करवाया। इस यज्ञ में कि देशों के राजा शामिल हुए।
राजा सगर ने यज्ञ में इन्द्र को है आमंत्रित किया। जब यज्ञ की पुजा समाप्त हुई और घोड़े को छोड़ा गया तो देवताओं के राजा इन्द्र ने घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। जब राजा सगर को इस बात की सुचना हुई तो उन्होंने अपने सभी साठ हजार पुत्रों को घोडे की खोज के लिए भेज दीये। अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को खोजते हुए जब राजा सगर के सभी पुत्र कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे तो उन्होंने देखा कु उनके द्वारा अश्वमेध यज्ञ की पुजा के लिए छोड़ा गया घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम में बंधा हुआ है।
यह सब देख राजा सगर के पुत्रो ने कपिल मुनि पर घोड़ा चोरी करने का आरोप लगाया। अपने उपर लगे झुठे आरापों के कारण कपिल मुनि बहुत क्रोधित हो गए और अपने तप शक्ति से श्राप देकर राजा के पुत्रो को जलाकर भस्म कर दिया। जब राजा सगर को इस घटना का पता चला तो वो तुरंत ही भागकर कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे। आश्रम पहुंचकर राजा सगर ने कपिल मुनि से अपने पुत्रों को जीवनदान देने प्रार्थना की। लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ।
बहुत बार निवेदन करने पर कपिल मुनि ने कहा हे राजन् आपके सभी पुत्रो के मोक्ष का एक ही रास्ता है। आप स्वर्ग में बहने वाली मोक्षदायिनी गंगा को स्वर्ग से धरती पर ले आएं। यह सुनकर राजा सगर के पोते अंशुमन ने यह प्रण लिया की जब मोक्षदायिनी गंगा को पृथ्वी पर नहीं लाते वह और उनके वंश का कोई राजा शांति से नहीं बैठेंगा। गंगा को धरती पर उतारने के लिए राजकुमार अंशुमन कड़ी तपस्या करने लगे। लेकिन राजकुमार अंशुमन की मृत्यु के बाद जब राजा भगीरथ कड़ी तपस्या करनी पड़ी।
अपने कड़ी तप से राजा सगर ने मां गंगा को प्रसन्न कर दिया। लेकिन मां गंगा का वेग बहुत ज्यादा था यदि मां गंगा अपने वेग से उतरती तो पृथ्वी पर सब सर्वनाश हो जाता। गंगा के वेग को रोकने के लिए राजा भगीरथ अपने कठीन तप से भगवान शिव को प्रसन्न करने लगे और भगवान शिव से गंगा के वेग को रोकने के लिए सहायता मांगी। भगीरथ से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गंगा को अपने जटाओं में धारण कर लिया। जिससे गंगा का वेग कम हो गया और गंगा सामान्य रूप से पृथ्वी पर अवतरित हो गई। गंगा को अपने जटाओं में धारण करने के कारण ही भगवान शिव गंगाधर कहलाए।
जब राजा भगीरथ मां गंगा को कपिल मुनि के आश्रम में लेकर खेतों कपिल मुनि ने राजा के साथ हजार पुत्रों को एक प्रदान किया। कहां जाता है है इस दिन राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ। उस दिन मकर संक्रांति का त्योहार था।
मकर संक्रांति 2023 में कब है ?
आमतौर पर हर साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। लेकिन इस साल तिथि को लेकर थोड़ा सा असंजस है। क्योंकि इस साल सुर्य देव शाम के समय मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार सुर्य देव 14 जनवरी 2023 की रात 8 बजकर 31 मिनिट पर मकर राशि में प्रवेश कर रहे,, हैं। ऐसे 15 जनवरी को उदंया तिथि को मकर संक्रांति का पर्व होंगा। मकर संक्रांति का पुण्य काल सुबह 7 बजकर 15 मिनिट से शाम के 7 बजकर 46 मिनीट तक रहेगा । महा पुण्य काल होंगा सुबह 7 बजकर 15 मिनिट से 9 बजकर 15 मिनिट बजे तक।
> वसंत पंचमी क्यो मनाई जाती है
मकर संक्रांति का महत्व।
मकर संक्रांति से प्रकृति भी करवट बदलती है।ईस दिन लोग पतंग भी उड़ाते हैं। उन्मुक्त आकाश में उड़ती पतंगें देखकर स्वतंत्रता का अहसास होता है
शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतिक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। ईस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन प्राप्त होता है।
ईस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसे कि ईस श्लोक से स्पष्ट होता है।"मांगे मासे महादेव यो दास्यामि घृत कम्बलम्।स भुक्त्या सकलाम भोगान कसमें मोक्ष प्राप्यति।।"
मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा स्नान तथा गंगा तट पर दान को अंत्यंत शुभ माना गया है। ईस पर्व पर तिर्थराज प्रयाग एवं गंगा सागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है। मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्ध की और आना शुरू हो जाता है। अतः एवं ईस दिन रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं। सम्पूर्ण भारत में लोगों व्दारा विविध रूपों में सुर्य देव की उपासना, आराधना एवं पुजन कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है।
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं कि मकर संक्रांति क्यो मनाई जाती है हैं ये आपके समझ में आ गया होगा। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर है शेयर करें।