कुंडलिनी शक्ति जैसी चीजो का जैसी ही जिक्र आता है। हर कोई सोच में पड़ जाता है क्या वाकई मनुष्य के शरीर में कोई ऐसी रहस्यमय शक्ति होती है जो किसी इंसान के अन्दर जाग जाए तो किसी भी आम मनुष्य को बहुत ज़्यादा खास बना सकती है। उसको दुनिया के महान ज्ञानी लोगों में शुमार कर सकती है। और ऐसे मनुष्य से कुछ ऐसा काम करवा सकती है जो आज से पहले कभी भी नहीं किया गया हो और मनुष्य को इतना खुश करती है की जिसकी सीमा ना हो।
कुंडलिनी शक्ति की धारणा इस दुनिया में लगभग सबसे पुरानी धारणा है। और अगर आप जितनी गहराई से इसका रहस्य जानने जाओंगे तो आप पाओंगे की आधे से ज्यादा चीजे तो केवल इसी धारणा को समझाने के लिए लोगों को बताई गई थी और आधी चीजें छिपाने के लिए।
कुंडलिनी शक्ति क्या है
धरती पर जन्मे हर मनुष्य में एक शक्ति सुप्तावस्था में कार्यरत होती है। इस शक्ति को हमारे शास्त्रों में कुंडलिनी शक्ति या सर्प शक्ति कहा गया है। कुंडलिनी शक्ति हमारे भौतिक शरीर में मानसिक शरीर से आगे की शरीर घटना है। ये आपकी उसी शरीर कुछ घटना है जहां समय, आकाश और कर्ता के बिच फरक बिल्कुल खत्म हो जाता है। हमारे शरीर में शरीर एक शक्ति रहती है जो इस तरह से सोई रहती है जैसे कोई सांप कुंडलिनी मारकर सो रहा हो। इसलिए इसका नाम कुंडलिनी शक्ति कहा जाता है और यही वो शक्ति है जिसकी मदद से मनुष्य अपने काम पुरे करता है। यह शक्ति का असिमित भंडार होता है। जिसके जागृत हो जाने के बाद इंसान के पास कुछ खास तरह की शक्ति आ जाती है। और जितने भी रहस्यवादी लोग होते हैं वो इसी शक्ति के दम पर spiritual attainment तक पहुंचे होते हैं।
और ये शक्ति जागृत होती है तो इस तरह से उठती है जैसे दो सांप आपस में लिपटे हो और जहां जहां ये दो सांप आपस में लिपट हुए मिलते हैं जहां पर उनका एक बिंदु होता हे उसे पाॕइंट कहा जाता है। और मनुष्य शरीर में इस तरह के साथ मुख्य पाॕइंट होतै है। और इन्हीं मुख्य पाॕइंट को चक्र कहा जाता है। जिनमें से पहला चक्र मुलाधार कहा जाता है और सातवां चक्र सहस्त्रार कहा जाता है।
पुराने समय में गुरु अपने शिष्यों को यह विद्या उनको जवानी में ही सिखा देते थे। क्योंकि तभी उनका सही समय होता है। क्योंकि इस कुंडलिनी शक्ति को जगाने और संभालने के भरपूर ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। क्योंकि युवावस्था में ही इस शक्ति को सही दिशा दी जा सकती है। और पुरा तंत्र का विज्ञान इस कुंडलिनी शक्ति को जगाने पर ही अलग अलग तरीके से जोड़ देता है और तंत्रमयी शक्ति को कुंडलिनी कहा जाता है।
कुंडलिनी शक्ति कैसे जागृत करें
कुंडलिनी जागृति धीरे धीरे घटित होने वाली प्रक्रिया है। कुंडलिनी शक्ति एक एक चक्र से होते हुए सहस्त्रार चक्र तक पहुचती है। इसलिए कुंडलिनी जागृती में कम से कम एक महिने से लेकर छं महिने तक नियमित ध्यान और सतुलित दिनचर्या को अपनाना पड़ता है। इसी कारण कोई आपसे कहे की वो दस मिनट में कुंडलिनी जागृत कर सकता है तो वो सिर्फ और सिर्फ ठगने का काम कर रहा है।
धरती पर जन्मे हर मनुष्य में कुंडलिनी शक्ति सुप्तावस्था में होती है। ध्यान और योग के माध्यम से इस शक्ति को जागृत कर सकते हैं।
कुंडलिनी शक्ति जागृत होने पर क्रमशः मुलाधार, स्वाधिष्ठान, मनिपुर, अनाहत, विशुद्धी, आज्ञा और सहस्त्रार चक्र का भेदन कर परमेश्वर से एकाग्रता प्रदान कराती है। कुंडलिनी शक्ति जागृति के लिए कोई विशेष ध्यान, ना कोई योग था। चित्त को एकाकार करना ही कुंडलिनी जागृति में उपयुक्त ध्यान है।
उर्जा या प्राणशक्ति एक विशेष नियम हैं। आपका या फिर ध्यान जहां जहां जाता है वहां उर्जा प्रवाह होने लगती है। अगर आप अपने चक्रों पर निचे से उपर तक चिंता को ले जाते हैं तो आपकी कुंडलिनी शक्ति एक चक्र से होते हुए उपर उठती है। इसके लिए व्रम्ह मुहुर्त में उठकर ध्यान करने बैठ जाएं। प्रथम तो अपने चित्त को अपने सांसों पर केन्द्रित करें। इसके बाद धीरे धीरे चित्त सांसो से हटाकर मुलाधार चक्र पर ले जाएं। मुलाधार चक्र पर ही कुंडलिनी शक्ति का निवास होता है। यहां कल्पना करें कि आप अपनी शक्ति को उपर उठा रहे हैं।
धीरे धीरे चित्त को रिंढ की हड्डी से होते हुए मुलाधार चक्र से स्वाधिष्ठान चक्र पर ले आएं। कल्पना करें कि आप अपने कुंडलिनी को धीरे धीरे उपर उठा रहे हैं। इसके बाद एक एक चक्र से होते हुए चित्त को सहस्त्रार में स्थित करें। सहस्त्रार चक्र पर कम से कम 15 मिनट बिना कोई विचार करें ध्यान करना है।
कुंडलिनी जागरण के फायदे
1. जिस व्यक्ति की कुंडलीनी शक्ति जागृत हो जाती है वह भुत काल, भविष्य काल की बातें जान सकता है।
2. कुंडलिनी शक्ति जागृत होने पर आपको अपने शुक्ष्म शरीर की अनुभूति हो जाती है। और आपका जो सुक्ष्म शरीर है वह आपके स्थुल शरीर से पृथक होने लगता है और आपको अपने भीतर जैसे दो शरीर है ऐसा अनुभव होने लगता है। और जब आप ध्यान करते हैं तब आपका सुक्ष्म शरीर इस स्थुल शरीर से बाहर निकलकर सारे ब्रम्हांड की यात्रा करता है।
3. जिस व्यक्ति को कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है वह व्यक्ति दुसरे व्यक्ति के मन में क्या विचार चल रहे हैं। उसके क्या भाव है वह जान सकता है।
4. जिस व्यक्ति की कुंडलिनी शक्ति जागृत हो जाती है वह अपने दिव्य शक्ति से अपने सकारात्मक ऊर्जा से किसी भी व्यक्ति के दुःख - दर्द ठीक कर सकता है।
5. कुंडलिनी शक्ति जागृत होने पर मनुष्य के एक निस्वार्थ प्रेम का प्राकट्य होता है। सभी का अच्छा हो, सभी का कल्याण हो ऐसी उसके भीतर शुद्ध भावना प्रकट होती है।
6. कुंडलिनी शक्ति जागृत होने पर मनुष्य किसी दूसरे व्यक्ति के सम्पर्क में आता है तो उस व्यक्ति को भी उस व्यक्ति के साथ अच्छा लगता है।
निष्कर्ष
यदि आप क्रिया महना भर भी करते हैं तो आप पाएंगे कि आपके शरीर में कुछ घटित हो रहा है। अलग अलग तरह के sensetion आज्ञा चक्र पर प्रकाश, थोड़ी हवा का बहना इत्यादि अनुभव आपको भी जरूरी आएंगे। कुंडलिनी जागृती में हर एक मंत्रों का उपयोग भी किया जाता है। अगर आप उपरोक्त विधि से ध्यान प्रारंभ करें। इससे धीरे धीरे आपका ध्यान लग जाएंगा तो आपकों आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होगी।
मैं आशा करता हूं कि कुंडलिनी शक्ति क्या है और कुंडलिनी शक्ति कैसे जागृत करें , ये समझ में आ गई होंगी और आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे