पुत्रदा एकादशी व्रत क्या होता है
पुत्रदा एकादशी जो पौष माह की शुक्ल पक्ष की ग्यारस तिथि को आती है। ये एकादशी पुत्र प्रदान करने वाली एकादशी है। अर्थात जिन दंपतियों के यहां संतान नहीं है वे यदी पुत्रदा एकादशी व्रत को करते हैं तो इनके यहां जल्दी ही संतान की प्राप्ति होगी। भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा से उनकी झोली भर जाएंगी।
पुत्रदा एकादशी व्रत कैसे करें
नये साल की शुरुआत पौष पुत्रदा एकादशी से होने जा रही है। पौष पुत्रदा एकादशी के दिन आपको भगवान विष्णु की पुजा की जाती है। इस दिन संतान प्राप्ति के लिए पुजा की जाती है। मान्यताओ के अनुसार एकादशी का व्रत करने वाले जातकों को जीवन भर सुख की प्राप्ति होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पौष पुत्रदा एकादशी के समान दुसरा कोई व्रत नहीं है। जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएं आती हो या जिन्हें पुत्र पाने की कामना हो उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत जरुर करना चाहिए। ये व्रत बहुत शुभ फलदाई होता है। इसलिए संतान प्राप्ति के इच्छुक व्यक्ति को ये व्रत जरुर करना चाहिए। जिससे की उसे मनवांछित फल की प्राप्ति हो सके।
जो जातक एकादशी का व्रत करता हे उसे एक दिन पहले ही अर्थात दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पुर्ण रुप से पालन करना चाहिए। सुबह सुर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करके शुद्ध और स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करके श्रीहरि विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
अगर आपके पास गंगाजल है तो पानी में गंगाजल डालकर नहाना चाहिए।
इस पुजा के ऊ श्रीहरि विष्णु की फोटो के सामने दिप जलाकर व्रत का संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करनी चाहिए। फिर कलश को लाल वस्त्र से बांधकर उसकी पुजा करे।
भगवान श्रीहरि की प्रतिमा रखकर उसे स्नान आदि से शुद्ध कर नया वस्त्र पहनाए।
इसके धुप, दीप आदि से विधिवत भगवान श्रीहरि विष्णु का पूजा अर्चना और आरती करना चाहिए। और नैवेद्य, फलों का भोग लगाकर प्रसाद वितरण करें। श्रीहरि विष्णु को अपने सामर्थ्य के अनुसार फल ,फूल, नारीयल, पान, सुपारी, लौंग,बेर, आंवला आदी अर्पित किए जाते हैं।
इस दिन दिपदान करने का भु विशेष महत्व है।
इसे भी पढिए - महाशिवरात्रि क्यो मनाई जाती है
पुत्रदा एकादशी के दिन क्या खाना चाहिए
पुरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के बाद फलाहार करें । दुसरे दिन ब्राह्मणो को भोजन और दान - दक्षिणा देनी चाहिए। उसके बाद भोजन करना चाहिए।
पुत्रदा एकादशी करने से क्या फल मिलता है
व्रतो में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का होता है। एकादशी का नियमित व्रत रखने से मन की चंचलता समाप्त होती है। धन और आरोग्य की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति तथा संतान की समस्या के निवारण के लिए किया जाने वाला व्रत है। सभी एकादशी में पौष पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व है। मान्यता के अनुसार इस व्रत को रखने से पुत्र की प्राप्ति होती है। साथ ही सुख सुविधाओ में बढ़ोत्तरी होती है।
पुत्रदा एकादशी व्रत कब है
पुत्रदा एकादशी 2 जनवरी 2023 को मनाई जा रही है।
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
मान्यता है कि इस व्रत को रखने से संतान की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसे वैकुंठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। महिलाएं संतान प्राप्ति और उनकी सुरक्षा की कामना के लिए इस व्रत को करती है। इसलिए पौष पुत्रदा एकादशी व्रत किया जाता है। कहते हैं कि इस दिन भगवान की पुजा विधी विधान के साथ करनी चाहिए। इस दिन साफ सुथरे कपड़े पहनने चाहिए। और इस दिन निर्जला व्रत रखना चाहिए और शाम की पुजा के बाद आप कुछ खा सकते हैं
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
पौष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी सफलता एकादशी का सारा वृत्तांत सुनने के बाद महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा हे भगवान आपने सफलता एकादशी का महात्म्य बताकर बड़ी कृपा की। अब कृपा करके यह बतलाइये की पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है, उसकी विधि क्या है, और उसमें कौन से देवता का पुजन किया जाता है। महाराज युधिष्ठिर के पुछने पर भक्त वत्सल भगवान श्रीकृष्ण बोले हे राजन् इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है।
इसमे भगवान नारायण की पुजा की जाती है प्रत्येक मनुष्य को विधी पुर्वक पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य ही धारण करना चाहिए। क्योंकि इस चक्र और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी व्रत के समान दुसरा कोई व्रत नहीं है।इस मनुष्य के पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान और लक्ष्मी वान होता है। इसकी मैं एक कथा कहता हु जो तुम ध्यान पुर्वक सुनो।
भद्रावती नामक नगरी में सेकुतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसका कोई पुत्र नहीं था। उसकी स्त्री का नाम सज्ञा था। वह निपुत्री होने के कारण सदैव ही चिंतित रहा करती थी, और राजा के पीतर भी रो रोकर पिंडलियों दिया करते थे और सोचा करते थे। इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा को भाई, बांधव, धन, हाथी चौड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें किसी से भी संतोष नहीं होता था। वह सदैव यही विचार किया करता था की मेरे मरने के बाद मुझको कौन पींड दान करेंगा।
बिना पुत्रों के देवताओं और पीत्रो का ऋण मैं कैसे चुका सकुंगा। जिस घर में पुत्र न हो उस घर में सदैव अंधेरा ही रहता है। इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। राजा सोचा करता था की जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है वह धन्य है। ऐसे मनुष्य को इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है। अर्थात उनके दोनो लोक सुधर जाते हैं। पुर्व जन्मों के कर्मों से ही इस जन्म में पुत्र और धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार दिन रात चिंता में लगा रहता था।
एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्यागने का निश्चय किया। परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन राजा ऐसे ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चले दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा की वन में मृग्र, व्याघ्र, सुअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमन कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनीयो के बिच घुम रहा है। इस वन में कहीं तो हिरण अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं कहीं उल्लु ध्वनि कर रहे हैं।
वन में दृश्य देखकर राजा सोचा विचार में लग गया। इसी प्रकार आधा दिन बित गया। वह सोचने लगा की मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणो को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दुःख प्राप्त हुआ ऐसा क्यों? राजा प्यास के मारे अत्यंत दुखी हो गया और पानी की तलाश में इधर उधर फिरने लगा। थोड़ी दुरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदी विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे।
उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ सकुन समझकर घोड़े से उतर कर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके निचे बैठ गया। राजा को देखकर मुनियों ने कहा हे राजन् हम तुम से अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है सो कहो। राजा ने पुछा महाराज आप कौन हैं और किसलिए यहां आए हैं। हे महाराज कृपा करके आप अपने विषय में मुझे बतलाईये । मुनि कहने लगे कि हे राजन् आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है। हम लोग विश्व देव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।
मुनि के वचनों को सुनकर राजा कहने लगा कि हे महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है। यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो मुझे भी एक पुत्र का वरदान दिजीए। मुनि बोले हे राजन् आज पौष मास की शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इस एकादशी का व्रत करें तो भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होंगा। मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उस व्रत का पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया।
कुछ समय बिताने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उसे एक उत्तम पुत्र की प्राप्ति हुई। जो बड़ा होकर अत्यंत वीर, यशस्वी और प्रजापालक चक्रवर्ती सम्राट बना। भगवान श्रीकृष्ण बोले हे राजन् पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत के करने वाले यशस्वी और पितृ भक्त पूत्र तो पाते ही है। इसके महात्म्य का श्रवण करने मात्र से ही मनुष्य को सुंदर संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं कि पुत्रदा एकादशी कैसे करे, व्रत विधि, महत्व ,कथा आपको पसंद आई होगी। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।