स्वाधिष्ठान चक्र क्या है
कुंडलिनी की रहस्यमई और विलक्षण यात्रा का जो दुसरा पड़ाव है, जो मानव शरीर में स्थित दुसरा प्रमुख चक्र है वो स्वाधिष्ठान है। जननेन्द्रिय से उपर और नाभी के नीचे पेडु नाम की एक जगह है जहां पर ये चक्र अवस्थित है। ये पुरुषों के विर्य और स्त्रियों में रज का स्थान कहां गया है। पंचमहाभूतों में ये जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है यानी की ये जल तत्व का मुख्य स्थान है। इस चक्र का गुण रस है। जननेन्द्रिय इसीके प्रभाव में आते हैं। इसका आकार चंद्र की तरह है और रंग सफेद है। इसके यंत्र का रुप आधे चंद्र के समान है।इसकी छं पंखुड़ियां होती है। इसके अपने छं अक्षर हैं। बं, भं, मं, यं, रं और लं।
स्वाधिष्ठान चक्र का बिज मंत्र क्या हैं
स्वाधिष्ठान चक्र का बिज मंत्र वं है। और ध्वनि म की आती है। इस बिज का वाहन मकर ( मगरमच्छ ) है। इसका बिज वर्ण स्वर्णिम सफेद है। इसका लोक भुवलोक है।
स्वाधिष्ठान चक्र के देवता कौन है
स्वाधिष्ठान चक्र के देवता विष्णु है, और जो शक्ति चलती है वो राकिनी है।
स्वाधिष्ठान चक्र कैसे जागृत करें
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने ध्यान का आसन ले। पुर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे। अपने हाथ घुटनों पर रखें और अपने आंखे बन्द करें। अपनी आंखें बंद करके आप सागर, सरोवर या किसी नदी का चिंतन करें क्योंकि जल का चिंतन करते ही आपके अन्दर शुद्धता और पवित्रता आएंगी। आपके विचार कम होने लगेंगे और आपको निर्विचार स्थिति प्राप्त होंगी। अपना ध्यान स्वाधिष्ठान के स्थान पर ले जाएं और वं मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से आपका स्वाधिष्ठान चक्र जागृत होने लगेगा।
स्वाधिष्ठान चक्र के जागरण से क्या होता है
1. स्वाधिष्ठान चक्र जागृत होने पर छं पंखुड़ियां वाले कमलखिलता है यानी हमारे भीतर जो छं अवगुण क्रोध, घृणा, वैमनस्य, क्रुरता, अभिलाषा और गर्व है वो दुर होते हैं और छं गुण प्रसन्नता, निष्ठा, आत्मविश्वास, उर्जा, सकारात्मकता और शुद्धता मिलते हैं और ये छः गुण के पंखुड़ियों वाला कमल हमारे भीतर खिलता है।
2. स्वाधिष्ठान चक्र जागृत होने से आप गद्य, पद्य रचना करने में भी समर्थ हो जाते हैं।
3. शरीर का तेज बढ़ता है। कभी सुने ना हो ऐसे शास्त्रों का रहस्य साधक उजागर कर उजागर कर सकता है।
4. स्वाधिष्ठान चक्र के जागरण पर आलस्य , हिनभावना, आत्मविश्वास में कभी, आत्मबल में कमी नकारात्मकता, रोग , दोष , कमजोरी, मोटापा, शारीरिक असंतुलन, आभामंडल की नकारात्मकता, भुत प्रेत वायव्य बाधाएं, देवी देवताओं के दोष सत्व विरोधी समाप्त अथवा नष्ट हो जाते हैं।
5. पाशविक प्रवृत्ति, काम आदि पर विजय प्राप्त होती है।
6. तेजस्वीता, वाकपटुता, चंचलता, क्रियाशीलता, कर्मठता, साहस, आत्मबल, आत्मविश्वास बढ़ जाता है।
7. जो मिलता है प्रभावित होता है। जहां भी जाएं, जो भी कार्य करें सफलता मिल जाती हैं ।
8. ग्रहों के प्रभाव परीवर्तीत हो जाते हैं। किसी भी नकारात्मकता, रोग, भुत प्रेत हटाने की क्षमता आ जाती है।
9. वाक् सिद्धि आ जाती है और कहीं बाते अपने आप सच होने लगती है। आशीर्वाद और श्राप फलीभूत होते हैं। सभी क्षेत्रों में विजय मिलने लगती है।
10 सुख सुविधाओ की आपने आप वृद्धि होने लगती है। जीवन का असंतुलन दूर होता है।
निष्कर्ष
मै आशा करता हूं कि स्वाधिष्ठान चक्र क्या है, ये आपके समझ में आ गया होगा। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।