आप सबने पौराणिक कथाओं में ऐसे ऋषि मुनियों के बारे में कहा, सुना, देखा और पढ़ा होगा, जिनके पास अद्भुत अलौकिक शक्तियां थीं। जो आम इन्सान की समझ से परे है। ऐसे में आपके मन में ये प्रश्न अवश्य आया होंगा की उनके पास ऐसा क्या था की उनको सुख और दुःख बराबर लगता था। वो किसी को वरदान भी देते थे तो वो सच हो जाता था और श्राप देते थे वो भी। दरअसल वो अपनी कुंडलिनी जागृत कर लेते थे यानी की अपने सातो चक्रों को जागृत कर लेते थे। जिसके बाद एक साधारण मनुष्य के भीतर भी असाधारण शक्तिया आ जाती है। और वो एक आम मनुष्य नहीं रहता बल्कि एक दिव्य पुरुष बन जाता है।
कुंडलिनी शक्ति क्या है
मेरुदंड के भीतर इड़ा और पिंगला नाम के दो स्नायु शक्ति प्रवाह और मेरुदंडस्थ मज्जा के बिच सुषुम्ना नाम की एक शुन्य नली है और इस शुन्य नली के सबसे नीचे कुंडलिनी का आधार भुत पद्म अवस्थित है। कुंडलिनी शक्ति उस स्थान पर कुंडलाकार हो विराज रहती है। जब यह कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है तब वह शुन्य नली के भीतर से एक मार्ग बनाकर उपर उठने का प्रयास करती है और ज्यों ज्यों वह एक एक सोपान उपर उठती जाती है त्यों त्यों मन के स्तर पर स्तर मानो खुलते जाते हैं और योगी को अलौकिक दर्शन होने लगते हैं तथा अद्भुत शक्तियां प्राप्त होने लगतु है। जब वह कुंडलिनी मस्तक पर चढ़ जाती हैं तब योगी सम्पूर्ण रूप से शरीर और मन से पृथक हो जाते हैं।
मेरुरज्जा एक विशेष प्रकार से गठित है। इसके बाई ओर इडा है, दाई ओर पिंगला और जो शुन्य नली मेरूमज्जा के ठीक बिच में से गई है वही सुषुम्ना है। कटी प्रदेश में स्थित मेरुदंड की कुछ अस्थियो के बिच में से ही मेरुमज्जा समाप्त हो गई है। परन्तु वहां से भी धागे के समान एक बहुत ही शुक्ष्म पदार्थ बराबर नीचे उतारता गया है। सुषुम्ना नली वहां भी स्थित है। परंतु वहां बहुत सुक्ष्म हो गई है।
नीचे की ओर उस नली का मुंह बंद हो जाता है। उसके निकट ही कटी प्रदेश स्थित नाडी जाल अवस्थित है जो आजकल के शरीर शास्त्र के अनुसार त्रिकोनाकार है। इस विभीन्न नाडी जालों के केन्द्र मेरुरज्जा के भीतर अवस्थित है। वे नाडी जाल योगीयो के भीन्न भीन्न पद्मो या चक्रो के तौर पर लीए जा सकते हैं। सबसे नीचे मुलाधार से लेकर मस्तिष्क में स्थित सहस्त्रार या सहस्त्र दल पद्म तक कुछ चक्र है।
योग शास्त्र में जिन सात चक्रों के बारे में बताया गया है वो इस प्रकार है -
1. मुलाधार चक्र - ये रीढ का पहला चक्र है। ये जननेन्द्रिय के नीचे स्थित होता है। और इसे आधार चक्र माना गया है। 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है। मुलाधार चक्र वो है जो भोजन और नींद के लिए तरसाया है और अगर आपने सही तरीके से इस चक्र में जागरूकता पैदा कर ली तो आप इन चीजों से पुरी तरह से मुक्त हो सकते हैं। इस चक्र को जागृत करने के लिए भोग सम्भोग और निद्रा पर संयम रखना होता है। आपने की लोगो को देखा होंगा जो सौ वर्ष तक जी लेते हैं। दरअसल वो लोग चक्र को जागृत करने वाले लोग होते हैं और आपका भी ये भाव जागृत हो गया तो आपके अन्दर विरता का भाव आ जाएगा, और वैसे भी सिद्धी या प्राप्त करने के लिए निर्भय होना बहुत जरूरी है।
2. स्वाधिष्ठान चक्र - स्वाधिष्ठान चक्र जननेन्द्रिय से चार उंगली उपर स्थित होता है। अगर आपकी उर्जा इस चक्र में सक्रिय है तो आपके जीवन में मौज मस्ती और मनोरंजन की प्रधानता होंगी। आप भौतिक सुखों का भरपूर मजा रैने की फिराक में रहेंगे और आप जीवन में हर चीज का आनंद उठाएंगे। जीवन में मनोरंजन जरुरी है। लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं, क्योंकि आवश्यकता से अधिक मनोरंजन भी मनुष्य की चेतना को काफी प्रभावित करता करता है। जो मनुष्य इस चक्र को जागृत कर लेता है उसके अंदर से क्रुरता, प्रमाद यानी कि फालतू की बहस में उलझना, अवस्था यानी कि बड़ों की आज्ञा को न मानना और अविश्वास जैसे दुर्गुणों का नाश हो जाता है।
3. मनणिपुरक चक्र - नाभी की मुल में स्थित रक्तवर्णिका लोचक शरीर के अन्तर्गत आने वाला मणिपुरी चक्र तिहरा चक्र है। इस चक्र में सभी नाडीया आती है और बंट जाती है। जिस मनुष्य की चेतना या उर्जा यहां एकत्रित है उस पर काम करने की एक अजीब सी धुन सवार रहती है। ऐसे लोगो को कर्मयोगी कहा जाता है। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। इस चक्र के सक्रिय होने से लज्जा , मोह , घृणा आदी दुर्गुण भी समाप्त हो जाता है।
4. अनाहत चक्र - हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र कहलाता है। अगर आपकी उर्जा अनाहत चक्र में सक्रिय है तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ नया रचने की सोचते होंगे अर्थात आपका मन रचनात्मक कार्य में खुब लगता होंगा। आप बड़े चित्रकार , महान कवि और एक कहानीकार बन सकते हैं। और यही नहीं जो मनुष्य अनाहत में महारत हासिल कर लेता है तो वह अलग अलग की ध्वनियां सुनने में भी सक्षम हो जाता है।
5. विशुद्ध चक्र - ये हमारे शरीर में उपर याने गले के भाग और हमारे स्वर यंत्र में स्थित होता है। कंठ में सरस्वती का स्थान माना गया है जहां विशुद्ध चक्र है। सामान्य तौर पर यदि आपकी उर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित हो तो आप अति शक्तिशाली होंगे। कंठ में संयम रखने और ध्यान लगाने से ये चक्र जागृत होने लगता है और इसके जागृत होने पर सोलह कलाओं और सोलह विभुतियों का ज्ञान हो जाता है। इतना ही नहीं जो मनुष्य इस चक्र को जागृत कर लेता है वह अपनी भुख - प्यास को रोक लेता है और उसको वाणी की सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
6. आज्ञा चक्र - जिस मनुष्य की उर्जा इस चक्र पर सक्रिय है या आप आज्ञा चक्र पर पहुंच गए हैं तो इसका मतलब है कि बौद्धीक स्थर पर आपने सिद्धी प्राप्त कर ली है। बौद्धिक सिद्धी आपको मानसिक शांति प्रदान करती है। आपके अनुभव ये वास्तविक नाम हो लेकिन जो बौद्धिक सीद्धी आपको हासिल की है वह आपने स्थिरता और शांति लाती है। आपके आसपास जौ भी हो रहा हो या फिर कैसी भी परिस्थितियां हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता यानी कि इसके जागृत होने पर कोई भी मनुष्य सिद्ध पुरुष की श्रेणी में आ जाता है।
7. सहस्त्रार चक्र - एक बार मनुष्य की उर्जा सहस्त्रार तक चली जाती है तो वह मनुष्य आनंद में झुमता है। अगर आप बिना किसी कारण ही आनंद में झुमते है तो इसका मतलब है आपकी उर्जा ने वो चरम शिखर को छु लिया है। इसको जागृत करने का अर्थ हुआ की आप जिवित ही मोक्ष की स्थिति में पहुंच चुके हैं। क्योंकि हमारी शारीरिक संरचना विद्युत और जैविक विद्युत से मिलकर बनी है और अगर आपने इसे जागृत कर लिया तो समझिए आपके लिए मोक्ष का द्वार आपके लिए खुल गया है।
कुंडलिनी जागरण क्या है
कुंडलिनी जागरण एक सात्विक तंत्र की एक साधना है, क्योंकि हम चक्रों पर सीधे तौर पर काम करते हैं। मनुष्य के अन्दर मुलाधार चक्र में निवास करने वाली शक्ति यदि किसी मनुष्य की जागृत हो जाए तो वह अन्दर ही अन्दर रुपान्तरित होता है। ये शक्ति मनुष्य को महापुरुष बनाती है। कुंडलिनी शक्ति मुलआधार से उपर उठाते हूंए सहस्त्रार चक्र अर्थात मस्तिष्क तक जाती है। मस्तिष्क में निहित ब्रम्हरंध ही उसका प्रमुख स्थान है। सहस्त्रार कमलदल का जागरण होते ही मनुष्य के अन्दर की अनेकों सिद्धीया जागृत होती है। वो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का ज्ञान अपने भीतर प्राप्त करने लग जाता है और उसका अस्तित्व उर्जा से भर उठता है।
हमारे सप्त चक्रो में से माथे के ठीक बिचो बिच आज्ञा नाम का चक्र है जो स्वभाव से ही दिव्य प्रकाश से प्रकाशित होता रहता है। उस चक्र पर ध्यान लगाने से उर्जा का प्रवाह बढ़ता चला जाता है, और प्राणायाम, योगासन, मंत्र का जाप , गुरु से शक्ति पाता पाने पर ये शक्ति मुलाधार चक्र की ओर जाने लगती है। जहां मुलाधार का अनन्त रहस्यमय संसार धीरे प्रकट होने लगता है। सबसे रहस्यमय, सबसे कठिन और सबसे दिव्य मचलिधार चक्र को माना जाता है। इसी मुलाधार चक्र के जागरण के लिए हमें सर्वप्रथम आज्ञा चक्र का भेदन करना होता है।दोनों नासिकाये माथे के पास एक बिंदु पर मिलती है और ये बिंदु मुलाधार चक्र के प्रकाश से जाकर जुड़ता है, जहां रहस्यमय कुंडलिनी शक्ति एक सर्पिण के भीतर छिपी होती है। जैसे जैसे ध्यान प्रगाढ़ होता जाता है वैसे वैसे ब्रम्हांडीय उर्जा मनुष्य को भीतर महसूस होने लगती है और एक लाल रंग के प्रकाश में अस्तित्व भी भीग जाता है।वहीं मुलाधार का दिव्य प्रकाश है। जहां जाकर अपने सत्ता से उस पार ईश्वरीय सत्ता का बोध मनुष्य को होने लगता है, वो आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त कर लेता है।
निष्कर्ष
तो ये थे वो 7 चक्र जिनको जागृत करने से एक मनुष्य भी सर्वज्ञानी बन सकते हैं। लेकिन इसको जागृत करना बहुत ही कठिन है या फिर लगभग असंभव है। क्योंकि कुंडलिनी जागृत करने के लिए उच्चकोटी का ध्यान और साधना करनी पड़ती है। परंतु आज के समय में ऐसा करना बहुत ही मुश्किल है। मैं आशा करता हूं कि What is kundlini? Awakening shakti within. कुंडलिनी क्या है : भीतर की शक्ति को जागृत करना, आपके समझ में आ गया होगा। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे।