पौष मास का महत्व
अगर हम पौष मास की बात करें तो यह हिन्दू पंचांग के अनुसार 10 वे महिने को पौष मास कहते हैं। ईस महिने हेमंत ऋतु रहता है। इसलिए थंड अधिक होती है। ईस महीने सुर्य अपनी विशेष प्रभाव में रहता है और इस महीने सुर्य देव उपासना अधिक फलदाई होती है। ऐसी मान्यता है कि ईस महीने सुर्य 11 हजार रश्मियों के साथ व्यक्ति को ऊर्जा प्रदान करता है। इस महीने व्यक्ति को प्रकाश की आवश्यकता अधिक होती है।
इस महिने अगर आप नियमित रूप से सुर्य देव की उपासना करें तो आप साल भर स्वास्थ्य रहेंगे और सुर्य देव की कृपा आप पर बनी रहेगी।
पौष मास में पुजा कैसे करें
1. - स्नान प्रतिदिन करें।
2. - स्नान करने के बाद ईस मंत्र को बोलकर सुर्य देव को जल अर्पित करें।
3. - जल तांबे के लोटे से एक लाल पुष्प डालकर चढ़ाएं। अगर आपको लाल पुष्प नहीं मिल रहा है तो आप चावल या हल्दी या लाल रोली डालकर जल अर्पित करें।
4. - यह मंत्र बोलते हुए जल गिराए, "ॐ मित्रायं नमः,ॐ रविये नमः,ॐ हिरण्यगर्भाय नमः,ॐ मारिचाये नमः,ॐ आदित्याय नमः,ॐ सवित्रे नमः,ॐ आर्काय नमः,ॐ भास्कराय नमः"। ऐसी मान्यता है कि ॐ भास्कराय नमः मंत्र से जल अर्पित करने से चेहरे का तेज बढ़ता है।
अगर आप रविवार का व्रत करना चाहते हैं तो फलाहार खाकर रह सकते हैं या तो सुर्यास्त से पहले बिना नमक का कोई भी भोजन जैसे खीर और पुरी का सकते हैं। इस महिने आपको तेल,घी का प्रयोग कम करना चाहिए और नमक का प्रयोग भी कम करना चाहिए।
पौष मास में रविवार का व्रत करना चाहिए। इसके बाद ही व्रत का उद्यापन करें। उद्यापन में पांच सुहागिन स्त्रीयों या पांच कुंवारी कन्या का पुजन कर यथाशक्ति प्रसाद रुप से भोजन खिलाएं व दक्षिणा दे। तभी व्रत पुर्ण फलदाई होता है।
पौष मास की कथा
किसी राज्य में एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी रहते थे उनके पास कोई संतान न थी।वे दोनों गरीबी में जीवन बिता रहे थे। ब्राह्मण भिक्षा मांगकर लाता था।उसी से उनका जीवन यापन होता था।एक दिन उसने सुना कि आज राजा दोपहर में ब्राह्मणो को मुंहमांगा दान देंगेतो वह अपने भिक्षावृत्ति से निपटकर राजा के महल की ओर चल दिया।रास्ता बहुत लम्बा और कठीन था। जिससे उसे वहां पहुंचने में देर हो गई।
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जब वह वहां पहुंचा तो वहां देखता है कि राजा दान कर चुके थे। ब्राह्मण ने महल के व्दार पर पहुंच कर व्दारपाल से अरज किया वह राजा से मिलना चाहता है, तो व्दारपाल ने कहा कि दान का कार्य पुरा हो चुका है।यह सुनकर वह ब्राह्मण वहीं पर निराश होकर शिर पर हाथ रखकर बैठ गया और कहने लगा कि हाय ये मेरी किस्मत यहां भी मुझे कुछ नहीं मिला,देर हो जाने के कारण वह दु:की हो गया। उसकी दशा देखकर व्दारपाल को उसकी दया आ गई। परन्तु वह भी क्या कर सकता था।
थोड़ी देर बाद राजा का मंत्री महल से निकला तो व्दारपाल ने उसे उस ब्राह्मण के बारे में बताया और दान न मिलने के कारण ब्राह्मण के निराश होने और दुःखी होने कि बात बताई।
मंत्री ने उस ब्राह्मण की गरीबी और दिन हीन दशा देखकर मन में दयाभाव लाते हुए अपने घर से एक बकरी का बच्चा लाकर उसे दे दिया। ब्राह्मण कुछ नहीं बोला और बकरी के बच्चे को लेकर घर पर आ गया। पहले तो बकरी के बच्चे को देखकर उसकी पत्नी बहुत नाराज़ हुई परन्तु बाद में उसने सोचा कि चलो यह जी बहलाने का एक अच्छा खिलौना है। समय बितता गया और ब्राह्मण व उसकी पत्नी बकरी के बच्चे से अधिक प्रेम करने लगे।मानो वह उनका अपना ही बच्चा हो।वे उसे उसु लाड़-प्यार से रखने लगे। ब्राह्मण जहां भी जाता उस बच्चे को अपने साथ ले जाता।
एक दिन जब ब्राह्मण नदी में स्नान कर संध्या पुजन कर रहा था।तब बकरी का बच्चा उछल कूद करता हुआ नदी में जा गिरा।जब तक ब्राह्मण कि संध्या पुजन पुरी हुई तब तक बच्चा पानी में दुर जा चुका था।उसे बहता देखकर वह ब्राह्मण विलाप करने लगा और जोर जोर से रोने लगा। तभी संयोग से शिवजी और माता पार्वती जी भ्रमण करते हुए उधर से निकले। उन्होंने उस ब्राह्मण को रोता देखकर उससे पुछा "से ब्राह्मण देवता आप क्यों रो रहे हैं, आपको कौन सा दुःख आन पड़ा"।
तो ब्राह्मण ने शिव पार्वती को देखकर उनके चरणों में गिरकर गिड़गिड़ाते हुए कहा हे प्रभु मेरे पास कोई संतान नहीं है, लेकिन मैं बकरी के बच्चे को ही अपना समझकर प्यार करता था।वह नदी में गिरकर बह गया। शायद वह मर भी गया होंडा।अब मैं घर जाकर अपनी पत्नी से क्या कहुंगा।वह तो बहुत दुःखी होंगी और बहुत विलाप करेंगी।तब मैं उसे कैसे समझाऊंगा।
ब्राह्मण कि बात सुनकर शिवजी बोले हे ब्राह्मण तुम घर जाओ और विलाप मत करो। तुम दोनों पति-पत्नी मिल कर पौष माह के रविवार का अलुना व्रत करना। जिसकी कृपा से तुम्हें एक सुन्दर कन्या प्राप्त होंगी।तब ब्राह्मण दुःख त्यागकर खुशी खुशी घर वापस आ गया और घर आकर सारी घटना अपनी पत्नी को बताई।उसकी पत्नी दुःखी तो हुईं लेकिन क्षशिवजी और पार्वती जी के आशीर्वाद की बात सुनकर वह खुश हो गई। ब्राह्मण व उनकी पत्नी के व्रत करने के 3 महिने बाद सुन्दर कन्या का जन्म हुआ।तो उन्होंने खुब खुशीया मनाई।
प्रभु के वरदान से होने के कारण वह कन्या चमत्कारी थी।जब वह बच्ची सोती तब उसके मूंह से लार निकलती थी।जब उसकी मां उसे दुध पिलाने के लिए उठाती तो वह इकठ्ठा हुईं लार सोने की हो जाती ।ईस प्रकार उस सोने की लार से वे लोग धन्यवान हो गये। उनका घर धन से भर गया। किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी।
अब वह कन्या दिनों दिन चन्द्रमा की कलाओ के समान बड़ी होने लगी।वह बचपन से शिवजी और माता पार्वती जी की पूजा करती,सब प्रकार के व्रत करती थी। उसने पौष मास के फलाहार रविवार का व्रत भी किया। बड़े होने पर उसके माता-पिता को विवाह की चिंता हुई। ब्राह्मण अपनी पुत्री का विवाह किसी विद्वान ब्राह्मण के साथ करना चाहता था, परन्तु उसकी माता क्षकी ईच्छा ऐसे लड़के से विवाह करने की थी जो घर जमाई बनकर रहे।
अतः पत्नी की इच्छा अनुसार ब्राह्मण लड़का ढुंढने के लिए अनेक गांवों में गया। परन्तु उसे कोई लड़का नहीं मिला जो घर जमाई बनने के लिए तैयार हो।तब एक दिन निराश होकर एक कुएं की पाल पर बैठ गया। कुछ देर बाद एक युवक कुएं पर पानी भरने आया । ब्राह्मण को प्यास लगी थी तो उसने लड़के के ललाट पर तिलक छापा देखकर पानी पिलाने को कहा।जब ब्राह्मण पानी पी चुका तब उसने लड़के से पुछा कि तुम क्या करते हो, कहा तक पढ़े लिखे हों,उसके माता-पिता का कुशल-क्षेम पुछा और पुछा तुम्हारा विवाह हो चुका है।
तब युवक ने उत्तर दिया मैं पढ़ा-लिखा तो हुं।काम पंडीताई का करता हु। परन्तु मेरे माता-पिता नहीं है,मैं अकेला हुं।तो विवाह कौन करवाए।युवक की बात सुनकर ब्राह्मण बोला मैं तुम्हारा विवाह अपनी कन्या से करने को तैयार हु, किन्तु मेरी एक शर्त है कि तुम्हें घर जमाई बनना पड़ेगा। तुम्हे किसी बात कि कोई कमी नहीं होगी।ईस बात को सुनकर युवक ने हां कर दी। ब्राह्मण ने युवक को अपने गांव का पता बता दिया और उसे घर आने को कहा ।
कुछ दिन बाद युवक ढुढते-ढुंढते बताए हुए पते पर आ गया। तब ब्राह्मण क्षकि पत्नी ने उसका खुब आदर सत्कार किया । ब्राम्हणी ने कहा बेटा मेरी एक शर्त है।रात को सोने के बाद सुबह होने पर तुम मेरी बेटी को मत जगाना ।मैं ही आकर उन्हें जगाऊंगी। युवक ने सोचा ईस घर में सब सुख सुविधा है तो ईस बात को मानने में क्या हर्ज है युवक ने शर्त मान ली। ब्राह्मण ने शुभ मुहूर्त में बेटी का विवाह उस युवक से कर दिया और वह युवक घर जमाई बनकर रहने लगा। प्रतिदिन मां अपनी बेटी ज्ञको जगाती और जो लार सोने की बनती उसे चुपचाप ले आती ।
बेटी और जमाई को ईस बात का पता क्षभी चलने नहीं देती। एक दिन सांस को आने में देर हो गई।जमाई ने सोचा कि मैं की मैं ही अपनी पत्नी को जगा दु। ऐसा सोचकर वह कमरे में गया तो देखा कि उसकी पत्नी की मुंह पर लार इकठ्ठा हो रही है। जैसे ही उसने लार को हटाया तो वह सोने की हो गई पत्नी की नींद खुली तो मां भी आ गई थी। उसने अपनी बेटी को जगा हुआ देखकर मन ही मन तो उसे बहुत गुस्सा आया। परन्तु कुछ बोल नहीं पाईं।
जमाई ने लार से बना सोना अपने पास रख लिया और सोचा अब हमें अलग रहना चाहिए।वह ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को लेकर अब गांव में अलग-अलग रहने लगा।ईस बात से सांस अपने जमाई से चिढ़ने लगी और जमाई को जान से मारने की सोचने लगी। उसने एक दिन कुछ लोगों को सोने की अशर्फि देकर भैजा परन्तु शिव,पार्वती और सुर्य देव की कृपा से ऐसा करने में सफल नहीं हुए।हर बार दामाद जिवित वापस घर आ जाता। बहुत प्रयास करने के बाद एक दिन अपनी बहू और जमाई को अपने घर पर भोजन करने के लिए बुलाया।
जमाई को परोसी गई थाली की खीर में जहर मिला दिया। बेटी क्ष, जमाई जब भोजन करने बैठे तो बेटी बोली मुझे ज्यादा खीर खाने की इच्छा हो रही है। मां मुझे और खीर दे दो।ईस पर जमाई ने अपनी पत्नी से कहा कि तुम मेरी खीर खां लो। तब सांस नै जमाई से कहा यह खीर तो विशेष रूप से आपके लिए बनाईं हुं।आप इसे खाना।इतने में दो मक्खियां उड़ती हुई आईं और खीर में गिर गई।यह देखकर जमाई ने उस खीर को हाथ भी नहीं लगाया।अन्त में जब सब भोजन कर चुके तब सांस ने कहा जमाई जी आपने तो खीर खाई ही नहीं।
जमाई ने कहा ईस खीर में दो मक्खियां गीर गई है, इसलिए ईसे छोड़ दिया।तब सांस ने सोचा यह एक अच्छा मौका भी हाथ से निकल गया। भगवान की कृपा से अचानक उसे याद आया कि मेरी बेटी तो भगवान की ही देन है और वह भी भगवान की ही भक्त है। निश्चित ही मेरी बेटी के व्रत के प्रभाव से भगवान शिव और माता पार्वती जी और सुर्य देव ने उसकी रक्षा की है।यह विचार आते ही उसका मन बदल गया और वह बहुत रोई, बहुत पछताई।रोते हुए वह भगवान से माफी मांगने लगी।
हे सुर्य देव मेरी रक्षा करो।हे शिव और से पार्वती माता मुझे क्षमा करो। मेरी गलती माफ करो।हे माता मैंने अनजाने में बहुत बड़ा अपराध किया। मुझे क्षमा करो। ऐसा कहते हुए वह पश्चाताप के आंसू रोते रही और उसका पाप धुल गया।