हम सब जानते है कि एकादशी व्रत सबसे अधिक पुण्य फल प्रदान करने वाला और पवित्र होता है।यहां तक कि शिवपुराण में भी कहा गया है।"ये करोती नरोभक्त्या एकादशी म पोषण
संग्याती विष्णु शालोक्यम प्राप्त विष्णु स्वरूपम। "अर्थात जो व्यक्ति एकादशी व्रत पूर्ण भाव से करता है, वह भगवान विष्णु के समान रूप प्राप्त करके उनके साथ निवास करता है।और ऐसी एकादशी जब कार्तिक मास में आए तो फिर उसके विषय में क्या कहा जाए।
आज हम बात कर रहे हैं कार्तिक मास में आने वाली देवोत्थान एकादशी की।ईस एकादशी को देवउठनी एकादशी,हरिबोधनी , प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पद्मपुराण में कार्तिक महात्म अध्याय में सुंदर के का वर्णन मिलता है।
एक बार जब भगवान श्रीविष्णु के मंदिर में एक मुषक रहता था। ये मूषक प्रतिदिन भगवान विष्णु को जो दिप अर्पित कीमा जाता था, उसमें से बचें हुए घी को अपना भोजन बना लेता था।एक दिन उसे बहुत भुख लगी हुई थी।जब वह दीए के पास आया तो दीया अभी पुरी तरह से बुझा नहीं था, लेकिन भुख इतनी ज्यादा तीव्र थी कि मुषक ने दिए के सम्पूर्ण बुझने के बिना ही बाति को खाना शुरू कर दिया।
अब ऐसा करने से स्वाभाविक ही गर्म बाति उसके दांतो में लग गई और अंदर अग्नि प्रज्वलित होनै के कारण वह जलने लगा।आग की पीडा के कारण वह मुषक भगवान विष्णु के समक्ष उछलने लगा और अधिक अग्नि सह न पाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।वास्तव में तो गर्म बाती के जलने के कारण उसकी मृत्यु हुई थी, और पीड़ा के कारण वह उछल कूद कर रहा था।
लेकिन भगवान ईतने दयालु हैं कि उन्होंने सोचा कि ये मूषक कार्तिक मास में उन्हें दीप अर्पित कर रहा है और साथ में उछाल कूद करके कीर्तन भी कर रहा है।ये सोचकर भगवान विष्णु ने मूषक को मुक्ति और परमगती प्रदान की।
जरा सोचिए उस मूषक ने कार्तिक मास में अन्जाने में ही किसी और उद्देश्य से अप्रत्यक्ष रूप से भगवान की सेवा की थी, फिर भी उसे दिव्य गति प्राप्त हुई।तो सोचिए हम मनुष्य ईस परम पवित्र कार्तिक मास में प्रत्यक्ष रूप से भगवान की सेवा पूजा की तो भगवान हम पर कितने प्रसन्न होंगे।
एक दिन जब युधिष्ठिर महाराज भगवान श्रीकृष्ण से देवोत्थान एकादशी के विषय में चर्चा कर रहे थे,तो भगवान ने कहा 'हे राजन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली परम पवित्र देवोत्थान एकादशी के विषय में एक समय श्रृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी और नारद मुनि के बिच संवाद हो रहा था।इसी संवाद को मैं आपके लिए प्रस्तुत करता हूं, ध्यानपूर्वक सुनीए'।ये कहकर श्रीकृष्ण ने ब्रम्हा जी और नारद मुनि के बिच वार्तालाप को कहकर सुनाया।
एक समय की बात है जब ब्रम्हांड के विविध लोकों में विचरण करते हुए नारद मुनि अपने पिता ब्रम्हा के पास पहुंचे । वहां जाकर उन्होंने ब्रम्हा जी से देवोत्थान एकादशी के विषय में जिज्ञासा की।इसके विषय में ब्रम्हा जी ने कहा 'हे नारद कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष को आने वाली उत्थान एकादशी के पारण से मिलने वाला पूण्य फल सहस्र अश्वमेध यज्ञ या सौ राजसुय यज्ञ में अर्जित पूण्य फलसे भी कई गुना अधिक है।
जो व्यक्ति नियम पूर्वक एकादशी उत्थान का पालन करता है, उसके सौ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। इतना ही नहीं जो भगवान श्री हरि का किर्तन करते हुए रात्रि में जागरण करता है, उसे भुत, भविष्य और वर्तमान की पिढीया भी वैकुंठ को प्राप्त करती है।जो भी व्यक्ति इस एकादशी के दिन मध्यान्ह में एक समय भोजन लेता है, उसके पुर्व जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं।जो व्यक्ति संध्या कै समय भोजन लेता है,उसके पिछले दो जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। लेकिन जो व्यक्ति इस दिन सम्पूर्ण उपवास का पालन करता है, उसके सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
लेकिन इसके विपरित कुछ ऐसा भी होता है, अर्थात जो व्यक्ति इस व्रत और उपवास का अपमान करता है,अनादर करना है,,वेदों और शास्त्रों का तिरस्कार करता है, किसी और कि पत्नी का संग करता है।जो दुष्ट बुद्धि और कपटी है,जिसका चरित्र मलीन है, और साधु लोगों की निंदा करता है। ऐसे तमाम जिवात्मा मृत्यु के बाद नर्क में प्रवेश करते हैं। लेकिन ऐसे तमाम पापी लोग भी यदि श्रध्दा और निष्ठा पूर्वक उत्थान एकादशी व्रत पालन करते हैं, तो वे अपने समस्त पाप कर्मो से मुक्त हो सकते हैं।
हमारे शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि जिनके पूर्वजों ने भयंकर पाप किए हैं और नर्क कुछ यातना भोग रहे हैं,उनका भी उध्दार ईस एकादशी के पालन से हो सकता है।
देवोत्थान एकादशी व्रत पालन करने की विधि।
ईस व्रत का पालन करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को एकादशी के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए, और यदि संभव हो तो पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार ये कार्य थोड़ा मुश्किल है। इसलिए स्नान करने समय हाथो में जल लेकर सात पवित्र उयो का नाम लेकर उच्चारण करना चाहिए।और उनका आव्हान करना चाहिए। स्नान इत्यादि से निवृय होकर भगवान के समक्ष उनकी मंगल आरती करना चाहिए अथवा दर्शन तो अवश्य करना चाहिए। चाहे प्रत्यक्ष रूप से मंदिर में जाकर करें या आनलाइन करें।
उसके बाद हाथों में गंगाजल लेकर भगवान के समक्ष इस एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए और उनसे प्रार्थना करते हुए यह कहना चाहिए। "हे कमलनयन भगवान श्री हरि मैं अपना आपका अत्यंत प्रिय ऐसी उत्थान एकादशी व्रत पालन करने का संकल्प लेता हूं।आप हि मेरा एकमात्र आश्रम स्थान हो।क्रुपया मेझे शुद्ध प्रेमाभक़्ति प्रदान करें और अपने श्री चरणों में स्थान दें।
ईस प्रकार प्रार्थना करके भगवान के विग्रहों की अगरू,पुष्प और सुगंधित द्रव्यों से पूजा अर्चना करे इस एकादशी पर जो व्यक्ति भगवान श्रीकृष्ण को विशेष रूप से कदम का पुष्प अर्पित करता है , उसे कभी यम लोक का दर्शन नहीं करना पड़ता।जो व्यक्ति गुलाब का पुष्प अर्पित करता है, उसे बुध्दि प्राप्त होती है।जो अशोक वृक्ष का फल अर्पित करता है, उसे दुखों का सामना नहीं करना पड़ेगा।जो शमी वृक्ष के पत्तों से भगवान की पूजा अर्चना करता है , उसे यमराज कभी दण्ड नहीं देते।जो चम्पक पुष्प से पूजा करता है, उसे भोतिक जगत में दुबारा जन्म नहीं लेना पड़ता और जो लाल वर्णक के सहस्र दलीय कमल पुष्पो से भगवान की सेवा करता है,वह भगवान के स्वेत दीप को प्राप्त करता है।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कार्तिक मास की ईस एकादशी के दिन व्रत पालन के साथ भगवान श्रीकृष्ण के पवित्र महामंत्र'हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे'ईसका अधिक से अधिक जप करता है उसे सात व्दीपो का दान देने का पुण्य फल प्राप्त होता है।
इसलिए भगवान की यथाशक्ति पुजा अर्चना करने के बाद तुलसी देवी के समक्ष बैठकर अधिक से अधिक मात्रा में 'हरे कृष्णा' महामंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए।ईस दिन जो तुलसी देवी को जल अर्पित करता है,उनकी पुजा आराधना करता है,उनकी प्रदक्षिणा करता है।,उनका दर्शन करता है, उन्हें प्रणाम करता है।वह निश्चित रूप से भक्ति प्रदायीनी तुलसी देवी की कृपा से भगवान श्रीहरि के नाम में वास करता है।
एक ओखली में गेरु से चित्र बनाकर फल, मिठाई,बेर, सिंघाड़े,ऋतु फल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे दडीयो से ढाक देना चाहिए।ईस रात्रि में घरों से बाहर और पुजा स्थल पर दिये जलाना चाहिए। रात्रि के समय परीवार के सभी सदस्यो को भगवान विष्णु समेत सभी देवी देवता का पूजन करना चाहिए। उसके बाद भगवान को शंख, घंटा,घडीयाल आदि बजाकर उठाना चाहिए।
एकादशी के दिन अधिक से अधिक मात्रा में हरि कथा का श्रवण या पढण करना चाहिए। इसके लिए आप श्रीमद्भागवतम और भागवत गीता का पाठ कर सकते हैं। एकादशी महात्म की कथा सुन सकते हैं,और अन्यों को भी सुना सकतें हैं।
अगले दिन व्दादशी पर निर्धारीत पारण तिथि पर आप अपने घर में ब्राह्मण या वैष्णव को आमंत्रित करें। उन्हें भगवान को अर्पित भोग को प्रसाद रुप में अर्पित करें और अपने क्षमतानुसार दान देकर स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करेके एकादशी व्रत का पारण करें। एकादशी के दिन सुयोग्य व्यक्ति को दान देने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। इसलिए प्रयास करें की अपने जदीक के मंदिर में किसी सुयोग्य वैष्णव को अपनी क्षमता नचसार दान अवश्य करें।
देवउठनी एकादशी कब मनाते हैं।
कार्तिक मास की शुक्लपक्ष में आने वाली एकादशी को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है।
शुभ मुहूर्त कब है।
देवउठनी एकादशी व्रत 2021 में 14 नवंबर, दिन -रविवार।
देवउठनी एकादशी व्रत पारणा मुहूर्त - 15 नवंबर,
समय - 13 : 09 : 56 बजे से 15 :18 :49 तक।
पूजा करने की अवधि - 2 घंटे 8 मिनट।
हरिवासर समाप्त होने का समय - 15 नवंबर को 13 : 02 : 41 पर।
तुलसी विवाह कब मनाते हैं।
तुलसी विवाह का आयोजन करना शुभ माना जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पीत करने की परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह कराने वाले के जिवन से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष को तुलसी विवाह किया जाता है।ईस दिन को देवउठनी एकादशी के रुप में भी मनाया जाता है।माना जाता है इस दिन भगवान विष्णु चार माह की लम्बी निन्द्रा के बाद जागते हैं,और ईसके साथ ही सारे शुभ मुहूर्त खुल जाते हैं।ईस भगवान विष्णु स्वरूप शालीग्राम का विवाह तुलसी से किया जाता है।
तुलसी विवाह का महत्व।
तुलसी विवाह का आयोजन करना बहुत शुभ माना जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पीत करने की परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम तुलसी विवाह संपन्न कराने वाले के जिवन से सभी कष्ट दुर हो जाते है।और उस पर भगवान हरि की विशेष कृपा होती है। तुलसी विवाह को कन्यादान जितना पुण्य कार्य माना है।कहा जाता है की तुलसी विवाह संपन्न कराने वाले को वैवाहिक सुख मिलता है।
तुलसी विवाह की पुजा विधी।
एक चौकी पर तुलसी का पौधा और दुसरी चौकी पर शालीग्राम को स्थापित करें। इसके बगल में एक जल भरा कलश रखें और उनके उपर आम के 5 पत्ते रखे। तुलसी के गमले में गेरु लगाए और घी का दीपक जलाएं। तुलसी और शालिग्राम पर गंगाजल का छिड़काव करें और रोली चंदन का टीका लगाए।
तुलसी के गमले में ही गन्ने का मण्डप बनाए और तुलसी को विवाह का प्रतीक लाल चुनरी ओढ़ाए। गमले को साड़ी लपेटकर चुडा चढ़ाएं और उनका दुल्हन की तरह श्रृंगार करें। इसके बाद शालीग्राम को हाथ में लेकर तुलसी की सात बार परिक्रमा की जाती है। आरती करें।उसके बाद तुलसी विवाह संपन्न होने के बाद सभी लोगों को प्रसाद बांटें।
2021मे तुलसी विवाह की तिथि - तुलसी विवाह 15 नवंबर सोमवार को है।
व्दादश तिथि प्रारंभ होंगी 06:39:00 बजे 15 नवंबर 2021 से।
व्दादश तिथि समाप्त होंगी 08:01:00 बजे 16 नवंबर 2021 तक।